विश्वमूर्ति शास्त्री

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thumb|250px|विश्वमूर्ति शास्त्री विश्वमूर्ति शास्त्री (अंग्रेज़ी: Vishwamurti Shastri) भारत के जानेमाने संस्कृताचार्य हैं। वह वर्षों से संस्कृत के उत्थान एवं प्रचार-प्रसार में जुटे हैं। उनका पूरा जीवन संस्कृत को समर्पित है। विश्वमूर्ति शास्त्री को संस्कृत सेवाओं के लिए 'राष्ट्रपति सम्मान' मिल चुका है। उन्हें साहित्य तथा शिक्षा श्रेणी के अंतर्गत भारत सरकार ने पद्म श्री, 2022 से सम्मानित किया है।

  • विश्वमूर्ति शास्त्री सर्वश्रेष्ठ अध्यापक सम्मान के अलावा कई संस्थाओं द्वारा सम्मानित हो चुके हैं।
  • प्रो. विश्वमर्ति शास्त्री राष्ट्रीय संस्कृत संस्थान श्री रणबीर कैंपस जम्मू के वर्ष 2006 से 2011 तक प्रिंसिपल रहे। इससे पहले साहित्य के विभागाध्यक्ष रहे। वर्ष 2011 के बाद वह मनोनित चांसलर रहे।
  • उनके अब तक आठ ग्रंथ आ चुके हैं जबकि दो प्रकाशन प्रक्रिया में हैं। उनके 37 लेख राष्ट्रीय, अंतरराष्ट्रीय पत्र पत्रिकाओं में प्रकाशित हो चुके हैं।
  • वह माता वैष्णो देवी गुरुकुल, चरण पादुका, कटड़ा के निर्देशक रहे। बाबा अमनाथ श्राइन बोर्ड के सदस्य हैं।
  • हाल ही में प्रो. विश्वमूर्ति शास्त्री का अविनंदन ग्रंथ प्रकाशित हुआ है।
  • संस्कृत और संस्कृति की समझ और पकड़ का ही परिणाम है कि वर्ष 1971 से 1997 तक विश्वमूर्ति शास्त्री ने 16 बार सर्वश्रेष्ठ रंगमंच पुरस्कार प्राप्त किया।
  • वह माता वैष्णाे देवी श्राइन बोर्ड की ओर से विश्व कल्याण के लिए आयोजित 40 यज्ञ कर चुके हैं। कई प्रतिष्ठि धार्मिक अनुष्ठानों में महत्वपूर्ण भूमिका निभा चुके हैं।
  • विश्वमूर्ति शास्त्री अखिल भारतीय स्तर पर आयोजित कश्मीर शैव दर्शन व्याख्यान माला में भाग ले चुके हैं। शायद ही कोई प्रतिष्ठित अनुष्ठान ऐसा रहा होगा, जिसमें प्रो. विश्वमर्ति शास्त्री का परामर्श न लिया गया हो।
  • युवाओं में संस्कृत के लिए अपने तौर पर नियमित कई प्रयास करते रहते हैं। उनका यकीन है कि विश्व की पूर्ण भाषा संस्कृत एक दिन फिर से दुनिया की सबसे स्विकृत भाषा होगी।


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