कदली सीप भुजंग मुख -रहीम

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कदली, सीप, भुजंग मुख, स्वाति एक गुन तीन।
जैसी संगति बैठिए, तैसोई फल दीन॥

अर्थ

स्वाति नक्षत्र की वर्षा की बूँद तो एक ही हैं, पर उसके गुण अलग-अलग तीन तरह के देखे जाते हैं। कदली में पड़ने से, कहते हैं कि, उस बूंद का कपूर बन जाता है। ओर, अगर सीप में वह पड़ी तो उसका मोती हो जाता है। साँप के मुहँ के में गिरने से उसी बूँद का विष बन जाता है। जैसी संगत में बैठोगे, वेसा ही परिणाम उसका होगा।[1]


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. यह कवियों की मान्यता है, ओर इसे ‘कवि समय’ कहते हैं।

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