जे सुलगे ते बुझ गए -रहीम

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जे सुलगे ते बुझ गए, बुझे ते सुलगे नाहिं।
‘रहिमन’ दाहे प्रेम के, बुझि-बुझिकैं सुलगाहिं॥

अर्थ

आग में पड़कर लकड़ी सुलग-सुलगकर बुझ जाती है, बुझकर वह फिर सुलगती नहीं। लेकिन प्रेम की आग में दग्ध हो जाने वाले प्रेमीजन बुझकर भी सुलगते रहते है।[1]


left|50px|link=कहा करौं वैकुण्ठ लै -रहीम|पीछे जाएँ रहीम के दोहे right|50px|link=टूटे सुजन मनाइए -रहीम|आगे जाएँ

टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. ऐसे प्रेमी ही असल में ‘मरजीवा’ हैं।

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