जो रहीम मन हाथ है -रहीम
जो ‘रहीम’ मन हाथ है, तो तन कहुँ किन जाहि ।
जल में जो छाया परे ,काया भीजति नाहिं ॥
- अर्थ
मन यदि अपने हाथ में है, अपने काबू में है, तो तन कहीं भी चला जाय, कुछ बिगड़ने का नहीं। जैसे काया भीगती नहीं है, जल में उसकी छाया पड़ने पर।[1]
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ जीत और हार का कारण मन ही है, तन नहीं : ‘मन के जीते जीत है, मन के हारे हार।
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