रहिमन लाख भली करो -रहीम

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‘रहिमन’ लाख भली करो, अगुनी न जाय ।
राग, सुनत पय पिअतहू, साँप सहज धरि खाय ॥

अर्थ

लाख नेकी करो, पर दुष्ट की दुष्टता जाने की नहीं। सांप को बीन पर राग सुनाओ, और दूध भी पिलाओ, फिर भी वह दौड़कर तुम्हें काट लेगा। स्वभाव ही ऐसा है। स्वभाव का इलाज क्या?


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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