ऐयनार: Difference between revisions
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*प्राय: प्रत्येक गाँव में ऐयनार चबूतरा पाया जाता है। मानवरूप में इसकी मूर्ति बनायी जाती है। ऐयनार मुकुट धारण करता है और घोड़े पर सवार रहता है। इसकी दो पत्नियों पूरणी और पुदकला की मूर्तियाँ इसके साथ पायी जाती हैं, जो रक्षण कार्य में इसकी सहायता करती हैं। | *ऐयनार का मुख्य कार्य है खेतों को किसी भी प्रकार की हानि न पहुँचाना, ऐयनार का काम विशेष तौर पर दैवी विपत्तियों से बचाना है। | ||
*[[कृषि]] परिपक्व होने के समय इनकी पूजा विशेष प्रकार से की जाती है। ऐयनार की उत्पत्ति हरिहर के संयोग से मानी जाती है। जब हरि ([[विष्णु]]) ने मोहिन रूप धारण किया था, उस समय हर ([[शिव]]) के तेज़ से ऐयनार की उत्पत्ति हुई थी। इसका प्रतीकत्वयह है कि इस [[देवता]] में रक्षण और संहार दोनों भावों का मिश्रण है।<ref> | *प्राय: प्रत्येक गाँव में ऐयनार चबूतरा पाया जाता है। | ||
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*ऐयनार मुकुट धारण करता है और घोड़े पर सवार रहता है। | |||
*इसकी दो पत्नियों पूरणी और पुदकला की मूर्तियाँ इसके साथ पायी जाती हैं, जो रक्षण कार्य में इसकी सहायता करती हैं। | |||
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Latest revision as of 08:00, 20 August 2011
- ऐयनार एक ग्रामदेवता, जिसकी पूजा दक्षिण भारत में व्यापक रूप में होती है।
- ऐयनार का मुख्य कार्य है खेतों को किसी भी प्रकार की हानि न पहुँचाना, ऐयनार का काम विशेष तौर पर दैवी विपत्तियों से बचाना है।
- प्राय: प्रत्येक गाँव में ऐयनार चबूतरा पाया जाता है।
- मानवरूप में इसकी मूर्ति बनायी जाती है।
- ऐयनार मुकुट धारण करता है और घोड़े पर सवार रहता है।
- इसकी दो पत्नियों पूरणी और पुदकला की मूर्तियाँ इसके साथ पायी जाती हैं, जो रक्षण कार्य में इसकी सहायता करती हैं।
- कृषि परिपक्व होने के समय इनकी पूजा विशेष प्रकार से की जाती है।
- ऐयनार की उत्पत्ति हरिहर के संयोग से मानी जाती है।
- जब हरि (विष्णु) ने मोहिन रूप धारण किया था, उस समय हर (शिव) के तेज़ से ऐयनार की उत्पत्ति हुई थी।
- इसका प्रतीकत्वयह है कि इस देवता में रक्षण और संहार दोनों भावों का मिश्रण है।[1]
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ पाण्डेय, डॉ. राजबली हिन्दू धर्मकोश, द्वितीय संस्करण-1988 (हिन्दी), भारत डिस्कवरी पुस्तकालय: उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान, 146।