सुमन: Difference between revisions

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*[[लंका]] की परम्परा में <ref>जिसका आख्यान 'दीपवंश' और 'महावंश' में हुआ है</ref> [[बिंदुसार]] की सोलह पटरानियों और 101 [[पुत्र|पुत्रों]] का उल्लेख है। पुत्रों में केवल तीन के नामोल्लेख हैं, वे हैं - सुमन <ref>उत्तरी परम्पराओं का [[सुसीम]]</ref> जो सबसे बड़ा था, [[अशोक]] और [[तिष्य (अशोक  का  भाई)|तिष्य]]। तिष्य अशोक का सहोदर भाई और सबसे छोटा था।
#REDIRECT [[सुसीम]]
*[[मौर्य  काल]] की परिपाटी के अनुसार साम्राज्य के एक दूर के प्रांत में [[अशोक]] को '''वाइसराय''' के रूप में नियुक्त किया गया था। यह प्रांत पश्चिमी भारत में था, जिसका नाम 'अवंतिरट्टम्‌' <ref>अर्थात अवंति राष्ट्र या [[अवंति]] का प्रांत। महाबोधिवंश पृ. 98</ref> था। लंका की परम्परा के अनुसार इसकी राजधानी '[[उज्जैन]]' थी, पर भारतीय परम्परा के अनुसार वह [[उत्तरापथ]] <ref>[[दिव्यावदान]]</ref>में '''स्वशों''' <ref> सम्भवत: मनु, 10, 22 और एपि. इंडिया i, 132 में उल्लिखित खसों से तात्पर्य है</ref> के राज्य में वाइसराय था, जिसकी राजधानी [[तक्षशिला]] थी।
*यहाँ अशोक को अस्थायी रूप में तब भेजा गया था, जब सुसीम तक्षशिला में विद्रोह का दमन न कर पाया था। यह विद्रोह सुसीम के कुप्रबंध के कारण हुआ था। तक्षशिला में सुसीम के समय में ही एक दूसरा विद्रोह उस समय हुआ था, जब [[पाटलिपुत्र]] का सिंहासन रिक्त हुआ, सुसीम इस विद्रोह को भी शांत ना कर सका, जब अशोक ने अवसर का लाभ उठा कर मंत्री 'राधगुप्त' की सहायता से सिंहासन पर अधिकार कर लिया।
*सिंहासन को लेकर सुसीम से अशोक का युद्ध हुआ, जिसमें सुसीम मारा गया।<ref> [[दिव्यावदान]] के अनुसार उत्तराधिकार की लड़ाई दो भाइयों के बीच ही हुई थी, जबकि 'महाबोधिवंश' में इस युद्ध में एक ओर [[अशोक]] था और दूसरी ओर 98 भाई थे, जिन्होंने अपने सबसे बड़े भाई सुसीम का साथ दिया था, जो उस समय 'युवराज' और दरअसल सिंहासन का वास्तविक अधिकारी था। दिव्यावदान अशोक के दावे के समर्थन में कहता है कि जब [[बिंदुसार]] जीवित था तो उसने एक बार [[आजीविक]] साधु 'पिंगलवत्स' को बुलाया था। पिंगलवत्स ने फैसला किया था कि सभी राजकुमारों में अशोक सिंहासन के सबसे उपयुक्त है। इस ग्रंथ के अनुसार अशोक के समर्थन में बिंदुसार के सभी मंत्री खल्लाटक (प्रधानमंत्री) और 500 अन्य मंत्री थे। ध्यान देने की बात यह भी है कि चीनी यात्री इ-त्सिंग ने एक जनश्रुति का उल्लेख किया किया है, जिसमें स्वयं भगवान [[बुद्ध]] ने अशोक के 'चक्रवर्त्तित्व' की भविष्यवाणी की थी। जनश्रुति है कि कपड़े का एक टुकड़ा और सोने की छड़ी दोनों अट्ठारह भागों में विभक्त हो गये थे। इसका भाष्य करते हुए भगवान बुद्ध कह रहे हैं कि "उनके निर्वाण के सौ से अधिक साल बीतने पर उनके उपदेश 18 भागों में विभक्त हो जाएँगे। जब [[अशोक]] नाम का एक राजा पैदा होगा जो सकल [[जंबूद्वीप]] पर शासन करेगा।" तक्कुस का इ-त्सिंग, पृ. 14</ref>
*[[दिव्यावदान]]<ref> [[दिव्यावदान]], 26, पृ. 368 में भी [[अशोक]] के बारे में [[बुद्ध]] की एक भविष्यवाणी का उल्लेख है जिसमें भगवान ने कहा था कि यह धर्मात्मा राजा उनकी धातुओं पर 84000 '''धर्म्राजिक''' बनवायेगा। दिव्यावदान, अध्याय, 26</ref> पर सिंहल की कथाओं में उत्तराधिकार की घटना एक दूसरे ही रूप में वर्णित है। इसमें [[अशोक]] ने [[उज्जैन]] से सिंहासन प्राप्त किया। उसकी नियुक्ति वहीं थी। काफी समय से वह उज्जैन में ही वाइसराय था। अशोक ने उत्तराधिकारके इस युद्ध में [[तिष्य]] को छोड़कर सभी भाइयों का वध कर दिया।
 
 
 
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==टीका टिप्पणी और संदर्भ==
<references/>
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==बाहरी कड़ियाँ==
 
==संबंधित लेख==
{{अशोक}}
[[Category:अशोक]]
[[Category:मौर्य काल]]
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==बाहरी कड़ियाँ==
 
==संबंधित लेख==
 
[[Category:नया पन्ना सितंबर-2011]]
 
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