तहर (पहाड़ी बकरा): Difference between revisions

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'''तहर''' या '''पहाड़ी बकरा''' (वंश हेमीट्रेगस), बोवाइडी कुल (गण ''आर्टिओडैक्टाइला'') के चौकन्ने और संधे पांव वाले जंगली बकरों में से एक है। तहर झुंड में रहते हैं और समान्यतः ढलान वाले पेड़युक्त पहाड़ों में पाए जाते हैं।  
'''तहर''' या 'ताहर' एक प्रकार का पहाड़ी बकरा है। यह वास्तव में भेड़ और बकरे दोनों का ही बहुत क़रीबी रिश्तेदार है। ताहर में भेड़ और बकरे दोनों से अलग कुछ ऐसी विलक्षण विशेषताएं पाई जाती हैं, जो न भेड़ों में और न ही बकरों में होती हैं। इसीलिए इसे सामान्य भेड़ों और बकरों से अलग समझा जाता है।
==लक्षण==
====वर्गीकरण तथा प्रकार====
प्रजाति के अनुसार कंधे तक इनकी ऊँचाई 60 से 100 सेमी होती है। नर और मादा, दोनों के सींग छोटे होते हैं, जो पार्श्व से समतल होते हुए पीछे की ओर मुड़े होते हैं।  
वैज्ञानिक वर्गीकरण के आधार पर ताहर वंश 'हेमीट्रेगस', कुल 'बोवाइडी' और गण 'आर्टिओडैक्टाइला' के अंतर्गत आता है। प्रजाति के अनुसार कंधे तक इनकी ऊँचाई 60 से 100 सेमी होती है। नर और मादा, दोनों के सींग छोटे होते हैं, जो पार्श्व से समतल होते हुए पीछे की ओर मुड़े होते हैं। यह चौकन्ने और संधे पांव वाले जंगली बकरों में से एक है। विश्व में ताहर की तीन जातियाँ पाई जाती हैं-
#अरबी ताहर
#हिमालयी ताहर
#[[नीलगिरि ताहर]]
;संकटकालीन प्रजाति
इनमें से अंतिम दो जातियाँ भारत में पाई जाती हैं। [[भारत]] में ताहर की स्थिति बड़ी ही चिंताजनक है और यह विलुप्त प्राय प्रजातियों में शामिल है। एक समय भारत में इनकी संख्या एक लाख से भी अधिक हुआ करती थी, लेकिन अब इनकी संख्या चार सौ के आस-पास ही रह गई है।
==प्रजातियाँ==
==प्रजातियाँ==
हिमालयी तहर (''हेमीट्रेगस जेम्लेहीकस'') [[कश्मीर]] से [[सिक्किम]] तक पाया जाता है, जो लाल-भूरे से लेकर गहरे [[भूरा रंग|भूरे रंग]] का हो सकता है, नर की गर्दन और आगे के हिस्से में फैली भरी-पूरी अयाल होती है। [[दक्षिण भारत]] का नीलगिरि तहर (जंगली या पहाड़ी बकरा) या नीलगिरि साकिन (''एच.हाइलोक्रिअस'') भूरा, धूसर पीठ वाला होता है। इन तीनों प्रजातियों में सबसे छोटा अरबी तहर (''एच. जयकारी'') स्लेटी-भूरा, नाजुक व अपेक्साकृत छोटी खाल वाला होता है।
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Latest revision as of 08:29, 16 July 2012

thumb|250px|तहर (पहाड़ी बकरा) तहर या 'ताहर' एक प्रकार का पहाड़ी बकरा है। यह वास्तव में भेड़ और बकरे दोनों का ही बहुत क़रीबी रिश्तेदार है। ताहर में भेड़ और बकरे दोनों से अलग कुछ ऐसी विलक्षण विशेषताएं पाई जाती हैं, जो न भेड़ों में और न ही बकरों में होती हैं। इसीलिए इसे सामान्य भेड़ों और बकरों से अलग समझा जाता है।

वर्गीकरण तथा प्रकार

वैज्ञानिक वर्गीकरण के आधार पर ताहर वंश 'हेमीट्रेगस', कुल 'बोवाइडी' और गण 'आर्टिओडैक्टाइला' के अंतर्गत आता है। प्रजाति के अनुसार कंधे तक इनकी ऊँचाई 60 से 100 सेमी होती है। नर और मादा, दोनों के सींग छोटे होते हैं, जो पार्श्व से समतल होते हुए पीछे की ओर मुड़े होते हैं। यह चौकन्ने और संधे पांव वाले जंगली बकरों में से एक है। विश्व में ताहर की तीन जातियाँ पाई जाती हैं-

  1. अरबी ताहर
  2. हिमालयी ताहर
  3. नीलगिरि ताहर
संकटकालीन प्रजाति

इनमें से अंतिम दो जातियाँ भारत में पाई जाती हैं। भारत में ताहर की स्थिति बड़ी ही चिंताजनक है और यह विलुप्त प्राय प्रजातियों में शामिल है। एक समय भारत में इनकी संख्या एक लाख से भी अधिक हुआ करती थी, लेकिन अब इनकी संख्या चार सौ के आस-पास ही रह गई है।

प्रजातियाँ

हिमालयी तहर (हेमीट्रेगस जेम्लेहीकस) कश्मीर से सिक्किम तक पाया जाता है, जो लाल-भूरे से लेकर गहरे भूरे रंग का हो सकता है, नर की गर्दन और आगे के हिस्से में फैली भरी-पूरी अयाल होती है। दक्षिण भारत का नीलगिरि तहर (जंगली या पहाड़ी बकरा) या नीलगिरि साकिन (एच.हाइलोक्रिअस) भूरा, धूसर पीठ वाला होता है। इन तीनों प्रजातियों में सबसे छोटा अरबी तहर (एच. जयकारी) स्लेटी-भूरा, नाजुक व अपेक्साकृत छोटी खाल वाला होता है।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख

  1. REDIRECT साँचा:जीव जन्तु