चौंको मत मेरे दोस्त -कन्हैयालाल नंदन: Difference between revisions

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
Jump to navigation Jump to search
[unchecked revision][unchecked revision]
No edit summary
m (Text replace - " जमीन" to " ज़मीन")
 
(2 intermediate revisions by the same user not shown)
Line 32: Line 32:
<poem>
<poem>
चौंको मत मेरे दोस्त
चौंको मत मेरे दोस्त
अब जमीन किसी का इंतजार नहीं करती।
अब ज़मीन किसी का इंतज़ार नहीं करती।
पांच साल का रहा होऊँगा मैं,
पांच साल का रहा होऊँगा मैं,
जब मैंने चलती हुई रेलगाड़ी पर से
जब मैंने चलती हुई रेलगाड़ी पर से
Line 42: Line 42:
मेरे पिताजी की आँखें चमकी थीं।
मेरे पिताजी की आँखें चमकी थीं।
और वे मुस्करा कर बोले थे, बेटा!
और वे मुस्करा कर बोले थे, बेटा!
पेड़ अपनी जमीन नहीं छोड़ते।
पेड़ अपनी ज़मीन नहीं छोड़ते।
और तब मेरे बालमन में एक दूसरा सवाल उछला था
और तब मेरे बालमन में एक दूसरा सवाल उछला था
कि पेड़ ज़मीन को नहीं छोड़ते
कि पेड़ ज़मीन को नहीं छोड़ते
Line 79: Line 79:
विरसे में मैंने यात्राएँ ही पाया है
विरसे में मैंने यात्राएँ ही पाया है
और पिता का वचन जब-जब मुझे याद आया है
और पिता का वचन जब-जब मुझे याद आया है
मैंने अपनी जमीन के मोह में सहा है
मैंने अपनी ज़मीन के मोह में सहा है
वापसी यात्राओं का दर्द।
वापसी यात्राओं का दर्द।
और देखा
और देखा
Line 116: Line 116:
{{समकालीन कवि}}
{{समकालीन कवि}}
[[Category:समकालीन साहित्य]][[Category:पद्य साहित्य]][[Category:कविता]][[Category:हिन्दी कविता]][[Category:काव्य कोश]]
[[Category:समकालीन साहित्य]][[Category:पद्य साहित्य]][[Category:कविता]][[Category:हिन्दी कविता]][[Category:काव्य कोश]]
[[Category:कन्हैयालाल नंदन]][[Category:इतिहास कोश]]
[[Category:कन्हैयालाल नंदन]][[Category:साहित्य कोश]]
__INDEX__
__INDEX__
__NOTOC__
__NOTOC__
__NOEDITSECTION__
__NOEDITSECTION__

Latest revision as of 13:30, 1 October 2012

चौंको मत मेरे दोस्त -कन्हैयालाल नंदन
कवि कन्हैयालाल नंदन
जन्म 1 जुलाई, 1933
जन्म स्थान फतेहपुर ज़िले के परसदेपुर गांव, उत्तर प्रदेश
मृत्यु 25 सितंबर, 2010
मृत्यु स्थान दिल्ली
मुख्य रचनाएँ लुकुआ का शाहनामा, घाट-घाट का पानी, आग के रंग आदि।
बाहरी कड़ियाँ आधिकारिक वेबसाइट
इन्हें भी देखें कवि सूची, साहित्यकार सूची
कन्हैयालाल नंदन की रचनाएँ

चौंको मत मेरे दोस्त
अब ज़मीन किसी का इंतज़ार नहीं करती।
पांच साल का रहा होऊँगा मैं,
जब मैंने चलती हुई रेलगाड़ी पर से
ज़मीन को दूर-दूर तक कई रफ्तारों में सरकते हुये देखकर
अपने जवान पिता से सवाल किया था
कि पिताजी पेड़ पीछे क्यों भाग रहे हैं?
हमारे साथ क्यों नहीं चलते?
जवाब में मैंने देखा था कि
मेरे पिताजी की आँखें चमकी थीं।
और वे मुस्करा कर बोले थे, बेटा!
पेड़ अपनी ज़मीन नहीं छोड़ते।
और तब मेरे बालमन में एक दूसरा सवाल उछला था
कि पेड़ ज़मीन को नहीं छोड़ते
या ज़मीन उन्हें नहीं छोड़ती?

सवाल बस सवाल बना रह गया था,
और मैं जवाब पाये बगैर
खिड़की से बाहर
तार के खंभों को पास आते और सर्र से पीछे
सरक जाते देखने में डूब गया था।
तब शायद यह पता नहीं था
कि पेड़ पीछे भले छूट जायेंगे
सवाल से पीछा नहीं छूट पायेगा।
हर नयी यात्रा में अपने को दुहरायेग।

बूढ़े होते होते मेरे पिता ने
एक बार,
मुझसे और कहा था कि
बेटा, मैंने अपने जीवन भर
अपनी ज़मीन नहीं छोड़ी
हो सके तो तुम भी न छोड़ना।
और इस बार चमक मेरी आँखों में थी
जिसे मेरे पिता ने देखा था।

रफ़्तार की उस पहली साक्षी से लेकर
इन पचास सालों के बीच की यात्राओं में
मैंने हज़ारों किलोमीटर ज़मीन अपने पैरों
के नीचे से सरकते देखी है।

हवा-पानी के रास्तों से चलते दूर,
ज़मीन का दामन थामकर दौड़ते हुए भी
अपनी यात्रा के हर पड़ाव पर नयी ज़मीन से ही पड़ा है पाला
ज़मीन जिसे अपनी कह सके,
उसने कोई रास्ता नहीं निकाला।
कैसे कहूँ कि
विरसे में मैंने यात्राएँ ही पाया है
और पिता का वचन जब-जब मुझे याद आया है
मैंने अपनी ज़मीन के मोह में सहा है
वापसी यात्राओं का दर्द।
और देखा
कि अपनी बाँह पर
लिखा हुआ अपना नाम अजनबी की तरह
मुझे घूरने लगा,
अपनी ही नसों का खून
मुझे ही शक्ति से देने से इंकार करने लगा।
तब पाया
कि निर्रथक गयीं वे सारी यात्राएँ।
अनेक बार बिखरे हैं ज़मीन से जुड़े रहने के सपने
और जब भी वहाँ से लौटा हूँ,
हाथों में अपना चूरा बटोर कर लौटा हूँ!

सुनकर चौंको मत मेरे दोस्त!
अब ज़मीन किसी का इंतज़ार नहीं करती।
खुद ब खुद खिसक जाने के इंतज़ार में रहती है
ज़मीन की इयत्ता अब इसी में सिमट गयी है
कि कैसे वह
पैरों के नीचे से खिसके
ज़मीन अब टिकाऊ नहीं
बिकाऊ हो गयी है!
टिकाऊ रह गयी है
ज़मीन से जुड़ने की टीस
टिकाऊ रह गयी हैं
केवल यात्राएँ…
यात्राएँ…
और यात्राएँ…!



संबंधित लेख