सरफ़रोशी की तमन्ना: Difference between revisions

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* फ़िल्म : शहीद (1965)
* संगीतकार : प्रेम धवन
* गायक :  [[रफ़ी मुहम्मद|मो. रफ़ी]], [[मन्ना डे]], राजेन्द्र मेहता
* रचनाकार : [[राम प्रसाद बिस्मिल]]
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सरफरोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है,
सरफ़रोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है,
देखना है जोर कितना बाजू-ए-कातिल में है ।
देखना है ज़ोर कितना बाज़ु-ए-कातिल में है।


करता नहीं क्यों दूसरा कुछ बातचीत,
करता नहीं क्यों दूसरा कुछ बातचीत,
देखता हूँ मैं जिसे वो चुप तेरी महफिल मैं है ।
देखता हूँ मैं जिसे वो चुप तेरी महफिल मैं है।


यों खड़ा मक़्तल में कातिल कह रहा है बार-बार
यों खड़ा मक़्तल में क़ातिल कह रहा है बार-बार
क्या तमन्ना-ए-शहादत भी किसी के दिल में है ।
क्या तमन्ना-ए-शहादत भी किसी के दिल में है।


ऐ शहीदे-मुल्को-मिल्लत मैं तेरे ऊपर निसार
ऐ शहीदे-मुल्को-मिल्लत मैं तेरे ऊपर निसार
अब तेरी हिम्मत का चर्चा ग़ैर की महफिल में है ।
अब तेरी हिम्मत का चर्चा ग़ैर की महफिल में है।


वक्त आने दे बता देंगे तुझे ऐ आसमां,
वक्त आने दे बता देंगे तुझे ऐ आसमां,
हम अभी से क्या बतायें क्या हमारे दिल में है ।
हम अभी से क्या बतायें क्या हमारे दिल में है।


खींच कर लाई है सब को कत्ल होने की उम्मीद,
खींच कर लाई है सब को कत्ल होने की उम्मीद,
आशिकों का आज जमघट कूचा-ऐ-कातिल में है ।
आशिक़ों का आज जमघट कूचा-ऐ-क़ातिल में है।


सरफरोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है,
सरफ़रोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है,
देखना है जोर कितना बाजू-ए-कातिल में है ।
देखना है ज़ोर कितना बाज़ु-ए-क़ातिल में है।
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* फिल्म : शहीद भगत सिंह
* संगीतकार :
* गायक : 
* रचनाकार : बिस्मिल अज़ीमाबादी


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==टीका टिप्पणी और संदर्भ==
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==बाहरी कड़ियाँ==
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==संबंधित लेख==
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Latest revision as of 06:41, 5 November 2012

संक्षिप्त परिचय

सरफ़रोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है,
देखना है ज़ोर कितना बाज़ु-ए-कातिल में है।

करता नहीं क्यों दूसरा कुछ बातचीत,
देखता हूँ मैं जिसे वो चुप तेरी महफिल मैं है।

यों खड़ा मक़्तल में क़ातिल कह रहा है बार-बार
क्या तमन्ना-ए-शहादत भी किसी के दिल में है।

ऐ शहीदे-मुल्को-मिल्लत मैं तेरे ऊपर निसार
अब तेरी हिम्मत का चर्चा ग़ैर की महफिल में है।

वक्त आने दे बता देंगे तुझे ऐ आसमां,
हम अभी से क्या बतायें क्या हमारे दिल में है।

खींच कर लाई है सब को कत्ल होने की उम्मीद,
आशिक़ों का आज जमघट कूचा-ऐ-क़ातिल में है।

सरफ़रोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है,
देखना है ज़ोर कितना बाज़ु-ए-क़ातिल में है।


टीका टिप्पणी और संदर्भ

बाहरी कड़ियाँ

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