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सुनेत के ऐतिहासिक महत्त्व के दो कारण हैं, एक-यहाँ से 200 ई. पू. से 300 ई. तक के नगरीय तत्त्व मिले हैं तथा दूसरा-सुनेत में सिक्कों का बड़ी संख्या में पाया जाना है। सुनेत से भण्डारगृहों, विस्तृत [[जल]]-निकास व्यवस्था, नौकरों के मकान तथा पानी छिड़कने वाले सुराहीनुमा हज़ारे के अवशेष मिले हैं। कुषाणयुगीन अभिलिखित मृण्मय मुहरें एवं मुहरछापे मिली हैं। सुनेत टकसाल तो था ही | सुनेत के ऐतिहासिक महत्त्व के दो कारण हैं, एक-यहाँ से 200 ई. पू. से 300 ई. तक के नगरीय तत्त्व मिले हैं तथा दूसरा-सुनेत में सिक्कों का बड़ी संख्या में पाया जाना है। सुनेत से भण्डारगृहों, विस्तृत [[जल]]-निकास व्यवस्था, नौकरों के मकान तथा पानी छिड़कने वाले सुराहीनुमा हज़ारे के अवशेष मिले हैं। कुषाणयुगीन अभिलिखित मृण्मय मुहरें एवं मुहरछापे मिली हैं। सुनेत टकसाल तो था ही सिक्के ढालने के साँचों को बनाने का केन्द्र भी था। यहाँ से कुषाण शासक [[वासुदेव (कुषाण)|वासुदेव]] तथा [[हुविष्क]] के सिक्के मिले हैं। | ||
Latest revision as of 11:05, 3 March 2013
सुनेत एक प्राचीन नगर जो पंजाब राज्य के लुधियाना ज़िले में स्थित था।
इतिहास
सुनेत के ऐतिहासिक महत्त्व के दो कारण हैं, एक-यहाँ से 200 ई. पू. से 300 ई. तक के नगरीय तत्त्व मिले हैं तथा दूसरा-सुनेत में सिक्कों का बड़ी संख्या में पाया जाना है। सुनेत से भण्डारगृहों, विस्तृत जल-निकास व्यवस्था, नौकरों के मकान तथा पानी छिड़कने वाले सुराहीनुमा हज़ारे के अवशेष मिले हैं। कुषाणयुगीन अभिलिखित मृण्मय मुहरें एवं मुहरछापे मिली हैं। सुनेत टकसाल तो था ही सिक्के ढालने के साँचों को बनाने का केन्द्र भी था। यहाँ से कुषाण शासक वासुदेव तथा हुविष्क के सिक्के मिले हैं।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
बाहरी कड़ियाँ
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