रमाशंकर यादव 'विद्रोही': Difference between revisions

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*[http://vidrohijimarchon.blogspot.in/  'विद्रोही' की रचनाएँ]
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*[http://www.bbc.com/hindi/india/2015/12/151209_vidrohi_obit_pkp विद्रोही: 'जो बिना डिग्री कोसों आगे निकल गया' ]
*[http://www.bbc.com/hindi/india/2015/12/151209_vidrohi_obit_pkp विद्रोही: 'जो बिना डिग्री कोसों आगे निकल गया' ]
*[http://www.junputh.com/2015/12/blog-post_0.html#.VmmpBEpFnqc.facebook यादों के सहारे : मैं विद्रोही बोल रहा हूं!]
==संबंधित लेख==
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Latest revision as of 14:20, 13 December 2015

रमाशंकर यादव 'विद्रोही'
पूरा नाम रमाशंकर यादव 'विद्रोही'
अन्य नाम 'विद्रोही'
जन्म 3 दिसम्बर, 1957
जन्म भूमि उत्तर प्रदेश
मृत्यु 8 दिसंबर, 2015
मृत्यु स्थान दिल्ली
मुख्य रचनाएँ नई खेती, औरतें, मोहनजोदाड़ो, जन-गण-मन आदि
विषय सामाजिक
भाषा हिन्दी, अवधी
नागरिकता भारतीय़
अन्य जानकारी नितिन पमनानी ने विद्रोही जी के जीवन संघर्ष पर आधारित एक वृत्त वृत्तचित्र आई एम योर पोएट (मैं तुम्हारा कवि हूँ) हिंदी और भोजपुरी में बनाया है। मुंबई अंतर्राष्ट्रीय फिल्म महोत्सव में इस वृत्तचित्र ने अंतर्राष्ट्रीय स्पर्धा श्रेणी में सर्वश्रेष्ठ वृत्तचित्र का गोल्डन कौंच पुरस्कार जीता।
इन्हें भी देखें कवि सूची, साहित्यकार सूची

रमाशंकर यादव 'विद्रोही' (जन्म: 3 दिसम्बर, 1957 - मृत्यु: 8 दिसंबर, 2015) जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय (जेएनयू) में विद्यार्थियों के बीच लोकप्रिय रहे जनकवि थे। नितिन पमनानी ने विद्रोही जी के जीवन संघर्ष पर आधारित एक वृत्त वृत्तचित्र आई एम योर पोएट (मैं तुम्हारा कवि हूँ) हिंदी और भोजपुरी में बनाया है। मुंबई अंतर्राष्ट्रीय फिल्म महोत्सव में इस वृत्तचित्र ने अंतर्राष्ट्रीय स्पर्धा श्रेणी में सर्वश्रेष्ठ वृत्तचित्र का गोल्डन कौंच पुरस्कार जीता।

जीवन परिचय

हिंदी साहित्य के हलकों में रमाशंकर यादव 'विद्रोही' भले ही अनजान हों, दिल्ली स्थित जवाहरलाल नेहरु विश्वविद्यालय (जेएनयू) के छात्रों के बीच इस कवि की कविताएँ ख़ासी लोकप्रिय रही है। प्रगतिशील चेतना और वाम विचारधारा का गढ़ माने जाने वाले जेएनयू कैंपस में 'विद्रोही' ने जीवन के कई वसंत गुज़ारे। उत्तर प्रदेश के सुलतानपुर ज़िले के रहने वाले विद्रोही का अपना घर-परिवार है, लेकिन अपनी कविता की धुन में छात्र जीवन के बाद भी उन्होंने जेएनयू कैंपस को ही अपना बसेरा माना।

प्रगतिशील चेतना

वे कहते थे कि "जेएनयू मेरी कर्मस्थली है, मैंने यहाँ के हॉस्टलों में, पहाड़ियों और जंगलों में अपने दिन गुज़ारे हैं।" वाम आंदोलन से जुड़ने की ख़्वाहिश और जेएनयू के अंदर के लोकतांत्रिक माहौल ने वर्षों से 'विद्रोही' को कैंपस में रोक रखा है। शरीर से कमज़ोर लेकिन मन से सचेत और मज़बूत इस कवि ने अपनी कविताओं को कभी कागज़ पर नहीं उतारा। मौखिक रूप से वे अपनी कविताओं को छात्रों के बीच सुनाते रहे हैं। जेएनयू के एक शोध छात्र बृजेश का कहना है, "मैं पिछले पाँच वर्षों से विद्रोही जी को जानता हूँ. उनकी कविता का भाव बोध और तेवर हिंदी के कई समकालीन कवियों से बेहतर है।" उनकी कविताओं में वाम रुझान और प्रगतिशील चेतना साफ़ झलकती है। वाचिक पंरपरा के कवि होने की वजह से उनकी कविता में मुक्त छंद और लय का अनोखा मेल दिखता है। विद्रोही कहते थे कि "मेरे पास क़रीब तीन-चार सौ कविताएँ हैं। कुछ पत्रिकाओं में फुटकर मेरी कविता छपी है लेकिन मैंने ज्यादातर दिल्ली और बाहर के विश्वविद्यालयों में ही घूम-घूम कर अपनी कविताएँ सुनाई हैं।" 'विद्रोही' बिना किसी आय के स्रोत के छात्रों के सहयोग से किसी तरह कैंपस के अंदर जीवन बसर करते रहे। हालांकि कैंपस के पुराने छात्र उनकी मानसिक अस्वस्थता के बारे में भी जिक्र करते हैं, पर उनका कहना है कि कभी भी उन्होंने किसी व्यक्ति को क्षति नहीं पहुँचाई है, न हीं अपशब्द कहे।[1]

प्रमुख रचनाएँ

  • नई खेती
  • औरतें
  • मोहनजोदाड़ो
  • जन-गण-मन
  • दुनिया मेरी भैंस
  • बीडी पीते बाघ
  • नूर मियां
  • धरम
  • पुरखे
  • कथा देश की
  • तुम्हारा भगवान
  • कवि
  • कविता और लाठी

निधन

रमाशंकर यादव 'विद्रोही' का नाम एक किसान-कवि के रूप में दो-तीन दशक तक जीवित किंवदंती बना रहा और अंतत: अपने पीछे अपनी फक्कड़ी के तमाम किस्से छोड़कर यह शख्स चुपचाप चला गया। 8 दिसंबर, 2015 को विद्रोही ने ‘ऑक्यूपाई यूजीसी’ के आंदोलनकारियों के बीच अंतिम सांस ली।




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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. आशियाने की तलाश में एक कवि (हिन्दी) (html) बीबीसी हिन्दी। अभिगमन तिथि: 11 दिसम्बर, 2015।

बाहरी कड़ियाँ

संबंधित लेख