बीज- अमृतराय: Difference between revisions

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[[अमृतराय]] के प्रथम उपन्यास '''बीज''' में [[भारतीय स्वतंत्रता संग्राम|आज़ादी]] के कुछ [[वर्ष|वर्षों]] पहले और बाद की कथा है। इसके अनेकानेक पात्रों ने इसे एक  व्यापक फ़लक प्रदान किया है। लेखक ने दिखाया है कि आज़ादी मिलने के बाद भी  लोगों के दृष्टिकोण में कोई विशेष अंतर नहीं आ पाया है। दलितों पर अत्याचार जारी है। अमीर ग़रीब के बीच की खाई और चौड़ी हुई है। उपन्यास में लेखक ने एक वर्गहीन समाज की स्थापना में अपना विश्वास प्रकट किया है। <ref>{{cite web |url=http://sahitya-akademi.gov.in/sahitya-akademi/library/meettheauthor/amrit_rai.pdf|title=लेखक से भेंट |accessmonthday=13 अगस्त |accessyear=2016 |last= |first= |authorlink= |format=html|publisher=साहित्य अकादमी |language=हिन्दी }}</ref>
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*भदन्त आनन्द कौशल्यायन ने इसकी तुलना '''गोर्की के 'मदर' उपन्यास''' से की है।  
*[[भदंत आनंद कौशल्यायन|भदन्त आनन्द कौशल्यायन]] ने इसकी तुलना '''गोर्की के 'मदर' उपन्यास''' से की है।  
*प्रकाशचन्द्र गुप्त का मानना है कि बीज ने "अमृतराय को अनायास ही '''पाँचवे दशक के जीवित उपन्यासकारों की प्रथम पंक्ति''' में ला खड़ा किया।"
*प्रकाशचन्द्र गुप्त का मानना है कि बीज ने "अमृतराय को अनायास ही '''पाँचवे दशक के जीवित उपन्यासकारों की प्रथम पंक्ति''' में ला खड़ा किया।"
==लेखक का वक्तव्य==
==लेखक का वक्तव्य==

Latest revision as of 07:55, 13 August 2016

बीज- अमृतराय
लेखक अमृतराय
मूल शीर्षक बीज
प्रकाशक नेशनल बुक ट्रस्ट
प्रकाशन तिथि 2009
ISBN 00000
देश भारत
पृष्ठ: 403
भाषा हिंदी
विधा उपन्यास

अमृतराय के प्रथम उपन्यास बीज में आज़ादी के कुछ वर्षों पहले और बाद की कथा है। इसके अनेकानेक पात्रों ने इसे एक व्यापक फ़लक प्रदान किया है। लेखक ने दिखाया है कि आज़ादी मिलने के बाद भी लोगों के दृष्टिकोण में कोई विशेष अंतर नहीं आ पाया है। दलितों पर अत्याचार जारी है। अमीर ग़रीब के बीच की खाई और चौड़ी हुई है। उपन्यास में लेखक ने एक वर्गहीन समाज की स्थापना में अपना विश्वास प्रकट किया है। [1]

  • भदन्त आनन्द कौशल्यायन ने इसकी तुलना गोर्की के 'मदर' उपन्यास से की है।
  • प्रकाशचन्द्र गुप्त का मानना है कि बीज ने "अमृतराय को अनायास ही पाँचवे दशक के जीवित उपन्यासकारों की प्रथम पंक्ति में ला खड़ा किया।"

लेखक का वक्तव्य

बीज का पहला संस्करण 1952 में प्रकाशित हुआ था जिन लोगों को उस समय की बातें याद होंगी उन्हें शायद यह भी याद होगा कि इसके प्रकाशन का स्वागत एक छोटी-मोटी साहित्यिक घटना के रूप में हुआ था। इसलिए यह स्वाभाविक ही था कि एक वैचारिक शिविर ने मुक्त कंठ से इसकी प्रशंसा की तो दूसरे बैचारिक शिविर ने उतने ही मुक्त कंठ से इसकी निन्दा की। मैं दोनों का ही ऋणी हूँ क्योंकि एक ने मुझे आत्म-विश्वास और दूसरे ने आत्म-निरीक्षण दिया और उन आलोचनओं में जितना जो कुछ मेरा विवेक स्वीकार कर सका, उसके आलोक मैं मैंने जहाँ-तहाँ कुछ संशोधन भी किया है जिससे मेरा विश्वास है कि उपन्यास में और कसाव आ गया है।[2]

पुस्तक से

पुरूष और स्त्री दो इन्सानों की तरह आपस में मिल ही नहीं सकते। और अगर मिलें तो ज़रूर कुछ दाल में काला है ! सत्य को अगर कोई बतला देता तो कितना अच्छा होता– मगर कोई बतलाता भी कैसे, किसी के सामने सत्य अपने दिल को तो नंगा करने से रहा !– कि स्त्री और पुरुष होने के पहले भी दोनों आदमी है, इन्सान है, और दो इन्सानों के बीच अगर ऐसा प्यार का भाव आ जाय तो न तो वह अनुचित है और न उस पर दाँतों तलें उँगली देने की ज़रूरत है। बेशक मनुष्य के हृदय में अलग-अलग लोगों के लिए अलग-अलग तरह का प्यार होता है, मगर मनुष्य का हृदय कोई मुनीम नहीं है जिसके यहाँ हर हिसाब के लिए अलग-अलग बहियाँ है और हर बही में अलग-अलग मदें बनी हुई है जिनमें रकमों को टाँका जाता है ![3]



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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. लेखक से भेंट (हिन्दी) (html) साहित्य अकादमी। अभिगमन तिथि: 13 अगस्त, 2016।
  2. बीज (Hindi Sahitya): Beej(Hindi Novel) (हिन्दी) (html)। । अभिगमन तिथि: 13 अगस्त, 2016।
  3. बीज अमृतराय (हिन्दी) (html)। । अभिगमन तिथि: 13 अगस्त, 2016।

बाहरी कड़ियाँ

संबंधित लेख