यह न रहीम सराहिये -रहीम: Difference between revisions
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Latest revision as of 13:21, 15 November 2016
यह न ‘रहीम’ सराहिये, देन-लेन की प्रीति।
प्रानन बाजी राखिये, हार होय कै जीत॥
- अर्थ
ऐसे प्रेम को कौन सराहेगा, जिसमें लेन-देन का नाता जुड़ा हो। प्रेम क्या कोई ख़रीद-फरोख्त की चीज है? उसमें तो लगा दिया जाय प्राणों का दांव, परवा नहीं कि हार हो या जीत।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
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