दत्तहोम: Difference between revisions

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*हिन्दुओं में पुत्रहीन [[पिता]] अपना उत्तराधिकारी एवं वंश परंपरा स्थापित करने के लिए दूसरे के पुत्र को ग्रहण करता है।
*हिन्दुओं में पुत्रहीन [[पिता]] अपना उत्तराधिकारी एवं वंश परंपरा स्थापित करने के लिए दूसरे के पुत्र को ग्रहण करता है।
*इस अवसर पर उसे दूसरी आवश्यक विधियों के करने के पश्चात व्याहृतिहोम अथवा दत्तहोम करना पड़ता है।
*इस अवसर पर उसे दूसरी आवश्यक विधियों के करने के पश्चात् व्याहृतिहोम अथवा दत्तहोम करना पड़ता है।
*दत्तहोम का आशय [[देवता|देवताओं]] का साक्षित्व प्राप्त करना होता है कि उनकी उपस्थिति में पुत्र संग्रह का कार्य सम्पन्न हुआ।
*दत्तहोम का आशय [[देवता|देवताओं]] का साक्षित्व प्राप्त करना होता है कि उनकी उपस्थिति में पुत्र संग्रह का कार्य सम्पन्न हुआ।



Latest revision as of 07:52, 23 June 2017

दत्तहोम हिन्दू धर्म में दत्तक पुत्र ग्रहण करने के समय धार्मिक विधि से किया जाने वाला अनुष्ठान है।[1]

  • हिन्दुओं में पुत्रहीन पिता अपना उत्तराधिकारी एवं वंश परंपरा स्थापित करने के लिए दूसरे के पुत्र को ग्रहण करता है।
  • इस अवसर पर उसे दूसरी आवश्यक विधियों के करने के पश्चात् व्याहृतिहोम अथवा दत्तहोम करना पड़ता है।
  • दत्तहोम का आशय देवताओं का साक्षित्व प्राप्त करना होता है कि उनकी उपस्थिति में पुत्र संग्रह का कार्य सम्पन्न हुआ।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. हिन्दू धर्मकोश |लेखक: डॉ. राजबली पाण्डेय |प्रकाशक: उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान |पृष्ठ संख्या: 311 |

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