पिंगला: Difference between revisions

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पिंगला [[उज्जैन]] के शासक राजा [[भर्तृहरि]] की रूपवान पत्नी थी जिसे वे अत्यन्त प्रेम करते थे, जबकि वह महाराजा से अत्यन्त कपटपूर्ण व्यवहार करती थी।  
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एक दिन जब उन्हें पूर्ण रूप से पता चला कि जिस रानी पिंगला को वह अपने प्राणों से भी प्रिय समझते थे, वह कोतवाल के प्रेम में डूबी है, उन्हें वैराग्य हो गया। वह अपार वैभव का त्याग करके अपने भाई [[विक्रमादित्य]] को राज्य देकर उसी क्षण राजमहल से बाहर निकल पड़े।  
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'''पिंगला''' [[उज्जैन]] के शासक राजा [[भर्तृहरि (राजा)|भर्तृहरि]] की रूपवान पत्नी थी जिसे वे अत्यन्त प्रेम करते थे, जबकि वह महाराजा से अत्यन्त कपटपूर्ण व्यवहार करती थी। भर्तृहरि के छोटे भाई [[विक्रमादित्य]] ने राजा भर्तृहरि को अनेक बार सचेष्ट किया था तथापि राजा ने उसके प्रेम जाल में फंसे होने के कारण उसके क्रिया-कलापों पर ध्यान नहीं दिया था। एक दिन जब उन्हें पूर्ण रूप से पता चला कि जिस रानी पिंगला को वह अपने प्राणों से भी प्रिय समझते थे, वह कोतवाल के प्रेम में डूबी है, उन्हें वैराग्य हो गया। वह अपार वैभव का त्याग करके अपने भाई विक्रमादित्य को राज्य देकर उसी क्षण राजमहल से बाहर निकल पड़े।  
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एक समय श्री गुरु गोरखनाथ जी अपने शिष्यों के साथ भ्रमण करते हुए उज्जैयिनी (वर्तमान में उज्जैन) के राजा श्री भर्तृहरि महाराज के दरबार मे पहुंचे। राजा भर्तृहरि ने गुरु गोरखनाथ जी का भव्य स्वागत और अपार सेवा की। राजा की अपुपम सेवा से श्री गुरु गोरखनाथ जी अति प्रसन्न हुए और युवा तेज युक्त राजा के ललाट पर हाथ  रखते हुए गुरु गोरखानाथ ने  दृष्टि डाली, तो देखा कि इस पर तो एक महान संत बनने की रेखाएं हैं। किन्तु अभी तो राजा भर्तृहरि  अपनी सुन्दर पत्नी सहित अनेक स्त्रियों के कामुक प्रेमजाल और राज्य प्रशासन को संभालने  में पूर्ण रूप से फंसा हुआ है। गोरखनाथ जब अपने शिष्यों के साथ जाने लगे तो राजा ने उनको श्रद्धापूर्ण नमन और  प्रणाम किया। गोरखनाथ उसके अभिवादन से बहुत ही गदगद हो गए। तब गुरु गोरखनाथ ने उक एक पल सोचा कि इसे ऐसा क्या दूं, जो अद्भुत हो। तभी उन्होने झोले में से एक फल निकाल कर राजा को दिया और कहा यह अमरफल है। जो इसे खा लेगा, वह कभी बूढ़ा नही होगा, कभी रोगी नही होगा, हमेशा जवान व सुन्दर रहेगा। इसके बाद गुरु गोरखनाथ तो अलख निरंजन कहते हुए अज्ञात  प्रदेशों की यात्रा के लिए आगे बढ़ गए।  
एक समय श्री [[गोरखनाथ|गुरु गोरखनाथ]] जी अपने शिष्यों के साथ भ्रमण करते हुए [[उज्जयिनी]] (वर्तमान में उज्जैन) के राजा श्री भर्तृहरि महाराज के दरबार मे पहुंचे। राजा भर्तृहरि ने गुरु गोरखनाथ जी का भव्य स्वागत और अपार सेवा की। राजा की अपुपम सेवा से श्री गुरु गोरखनाथ जी अति प्रसन्न हुए और युवा तेज युक्त राजा के ललाट पर हाथ  रखते हुए गुरु गोरखानाथ ने  दृष्टि डाली, तो देखा कि इस पर तो एक महान् संत बनने की रेखाएं हैं। किन्तु अभी तो राजा भर्तृहरि  अपनी सुन्दर पत्नी सहित अनेक स्त्रियों के कामुक प्रेमजाल और राज्य प्रशासन को संभालने  में पूर्ण रूप से फंसा हुआ है। गोरखनाथ जब अपने शिष्यों के साथ जाने लगे तो राजा ने उनको श्रद्धापूर्ण नमन और  प्रणाम किया। गोरखनाथ उसके अभिवादन से बहुत ही गदगद हो गए। तब गुरु गोरखनाथ ने उक एक पल सोचा कि इसे ऐसा क्या दूं, जो अद्भुत हो। तभी उन्होंने झोले में से एक फल निकाल कर राजा को दिया और कहा यह अमरफल है। जो इसे खा लेगा, वह कभी बूढ़ा नहीं होगा, कभी रोगी नहीं होगा, हमेशा जवान व सुन्दर रहेगा। इसके बाद गुरु गोरखनाथ तो अलख निरंजन कहते हुए अज्ञात  प्रदेशों की यात्रा के लिए आगे बढ़ गए।  
 
उनके जाने के बाद राजा ने अमरफल को एक टक देखा, उन्हें अपनी पत्नी से विशेष प्रेम था, इसलिए राजा ने विचार किया कि यह फल मैं अपनी पत्नी को खिला दूं तो वह सुंदर और सदाजवान रहेगी। यह सोचकर राजा ने वह अमरफल रानी को दे दिया और उसे फल की विशेषता भी बता दी। लेकिन  अफसोस! उस  सुन्दर रानी का विशेष लगाव तो नगर के एक  कोतवाल से था। इसलिए रानी ने यह अमरफल कोतवाल को दे दिया और इस फल की विशेषता से अवगत कराते हुए कहा कि तुम इसे खा लेना, ताकि तुम्हारा यौवन और जोश मेरे काम आता रहे। इस अद्भुत अमरफल को लेकर कोतवाल जब महल से बाहर निकला, तो सोचने लगा कि रानी के साथ तो मुझे धन-दौलत के लिए झूठ-मूठ ही प्रेम का नाटक करना पड़ता है, इसलिए यह फल खाकर मैं भी क्या करूंगा। कोतवाल ने सोचा कि इसे मैं अपनी परम मित्र राजनर्तकी को दे देता हूं, वह कभी मेरी कोई बात नहीं टालती और मुझ पर कुर्बान  रहती है। अगर वह युवा रहेगी, तो दूसरों को भी सुख दे पाएगी और मुझे भी। उसने वह आमफल अपनी उस नर्तकी मित्र को दे दिया। राज नर्तकी ने कोई उत्तर नहीं दिया और अमरफल अपने पास रख लिया। कोतवाल के जाने के बाद उसने सोचा कि कौन मूर्ख यह पापी जीवन लंबा जीना चाहेगा। मैं अब जैसी हूं, वैसी ही ठीक हूं। लेकिन  हमारे राज्य का राजा बहुत अच्छा है। धर्मात्मा है, देश की प्रजा के हित के लिए उसे ही लंबा जीवन जीना चाहिए। यह सोचकर उसने किसी प्रकार से राजा से मिलने का समय लिया और एकांत में उस अमरफल की विशेषता सुना कर उसे राजा को दे दिया और कहा,  
उनके जाने के बाद राजा ने अमरफल को एक टक देखा, उन्हें अपनी पत्नी से विशेष प्रेम था, इसलिए राजा ने विचार किया कि यह फल मैं अपनी पत्नी को खिला दूं तो वह सुंदर और सदाजवान रहेगी। यह सोचकर राजा ने वह अमरफल रानी को दे दिया और उसे फल की विशेषता भी बता दी। लेकिन  अफसोस! उस  सुन्दर रानी का विशेष लगाव तो नगर के एक  कोतवाल से था। इसलिए रानी ने यह अमरफल कोतवाल को दे दिया और इस फल की विशेषता से अवगत कराते हुए कहा कि तुम इसे खा लेना, ताकि तुम्हारा यौवन और जोश मेरे काम आता रहे। इस अद्भुत अमरफल को लेकर कोतवाल जब महल से बाहर निकला, तो सोचने लगा कि रानी के साथ तो मुझे धन-दौलत के लिए झूठ-मूठ ही प्रेम का नाटक करना पड़ता है, इसलिए यह फल खाकर मैं भी क्या करूंगा। कोतवाल ने सोचा कि इसे मैं अपनी परम मित्र राजनर्तकी को दे देता हूं, वह कभी मेरी कोई बात नहीं टालती और मुझ पर कुर्बान  रहती है। अगर वह युवा रहेगी, तो दूसरों को भी सुख दे पाएगी और मुझे भी। उसने वह आमफल अपनी उस नर्तकी मित्र को दे दिया। राज नर्तकी ने कोई उत्तर नहीं दिया और अमरफल अपने पास रख लिया। कोतवाल के जाने के बाद उसने सोचा कि कौन मूर्ख यह पापी जीवन लंबा जीना चाहेगा। मैं अब जैसी हूं, वैसी ही ठीक हूं। लेकिन  हमारे राज्य का राजा बहुत अच्छा है। धर्मात्मा है, देश की प्रजा के हित के लिए उसे ही लंबा जीवन जीना चाहिए। यह सोचकर उसने किसी प्रकार से राजा से मिलने का समय लिया और एकांत में उस अमरफल की विशेषता सुना कर उसे राजा को दे दिया और कहा,  
‘महाराज! आप इसे खा लेना क्योंकि आपका  जीवन हमारे लिए अनमोल है।'  
‘महाराज! आप इसे खा लेना क्योंकि आपका  जीवन हमारे लिए अनमोल है।'  
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इस संसार की मायामोह को त्याग कर भर्तृहरि वैरागी हो गए और राज-पाट छोड़ कर गुरु गोरखनाथ की शरण में चले गए।  
इस संसार की मायामोह को त्याग कर भर्तृहरि वैरागी हो गए और राज-पाट छोड़ कर गुरु गोरखनाथ की शरण में चले गए।  
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Latest revision as of 14:03, 30 June 2017

पिंगला
पूरा नाम रानी पिंगला
पति/पत्नी राजा भर्तृहरि
विवरण उज्जैन के शासक राजा भर्तृहरि की रूपवान पत्नी थी जिसे वे अत्यन्त प्रेम करते थे, जबकि वह महाराजा से अत्यन्त कपटपूर्ण व्यवहार करती थी।

पिंगला उज्जैन के शासक राजा भर्तृहरि की रूपवान पत्नी थी जिसे वे अत्यन्त प्रेम करते थे, जबकि वह महाराजा से अत्यन्त कपटपूर्ण व्यवहार करती थी। भर्तृहरि के छोटे भाई विक्रमादित्य ने राजा भर्तृहरि को अनेक बार सचेष्ट किया था तथापि राजा ने उसके प्रेम जाल में फंसे होने के कारण उसके क्रिया-कलापों पर ध्यान नहीं दिया था। एक दिन जब उन्हें पूर्ण रूप से पता चला कि जिस रानी पिंगला को वह अपने प्राणों से भी प्रिय समझते थे, वह कोतवाल के प्रेम में डूबी है, उन्हें वैराग्य हो गया। वह अपार वैभव का त्याग करके अपने भाई विक्रमादित्य को राज्य देकर उसी क्षण राजमहल से बाहर निकल पड़े।

लोककथा/अनुश्रुति

एक समय श्री गुरु गोरखनाथ जी अपने शिष्यों के साथ भ्रमण करते हुए उज्जयिनी (वर्तमान में उज्जैन) के राजा श्री भर्तृहरि महाराज के दरबार मे पहुंचे। राजा भर्तृहरि ने गुरु गोरखनाथ जी का भव्य स्वागत और अपार सेवा की। राजा की अपुपम सेवा से श्री गुरु गोरखनाथ जी अति प्रसन्न हुए और युवा तेज युक्त राजा के ललाट पर हाथ रखते हुए गुरु गोरखानाथ ने दृष्टि डाली, तो देखा कि इस पर तो एक महान् संत बनने की रेखाएं हैं। किन्तु अभी तो राजा भर्तृहरि अपनी सुन्दर पत्नी सहित अनेक स्त्रियों के कामुक प्रेमजाल और राज्य प्रशासन को संभालने में पूर्ण रूप से फंसा हुआ है। गोरखनाथ जब अपने शिष्यों के साथ जाने लगे तो राजा ने उनको श्रद्धापूर्ण नमन और प्रणाम किया। गोरखनाथ उसके अभिवादन से बहुत ही गदगद हो गए। तब गुरु गोरखनाथ ने उक एक पल सोचा कि इसे ऐसा क्या दूं, जो अद्भुत हो। तभी उन्होंने झोले में से एक फल निकाल कर राजा को दिया और कहा यह अमरफल है। जो इसे खा लेगा, वह कभी बूढ़ा नहीं होगा, कभी रोगी नहीं होगा, हमेशा जवान व सुन्दर रहेगा। इसके बाद गुरु गोरखनाथ तो अलख निरंजन कहते हुए अज्ञात प्रदेशों की यात्रा के लिए आगे बढ़ गए।
उनके जाने के बाद राजा ने अमरफल को एक टक देखा, उन्हें अपनी पत्नी से विशेष प्रेम था, इसलिए राजा ने विचार किया कि यह फल मैं अपनी पत्नी को खिला दूं तो वह सुंदर और सदाजवान रहेगी। यह सोचकर राजा ने वह अमरफल रानी को दे दिया और उसे फल की विशेषता भी बता दी। लेकिन अफसोस! उस सुन्दर रानी का विशेष लगाव तो नगर के एक कोतवाल से था। इसलिए रानी ने यह अमरफल कोतवाल को दे दिया और इस फल की विशेषता से अवगत कराते हुए कहा कि तुम इसे खा लेना, ताकि तुम्हारा यौवन और जोश मेरे काम आता रहे। इस अद्भुत अमरफल को लेकर कोतवाल जब महल से बाहर निकला, तो सोचने लगा कि रानी के साथ तो मुझे धन-दौलत के लिए झूठ-मूठ ही प्रेम का नाटक करना पड़ता है, इसलिए यह फल खाकर मैं भी क्या करूंगा। कोतवाल ने सोचा कि इसे मैं अपनी परम मित्र राजनर्तकी को दे देता हूं, वह कभी मेरी कोई बात नहीं टालती और मुझ पर कुर्बान रहती है। अगर वह युवा रहेगी, तो दूसरों को भी सुख दे पाएगी और मुझे भी। उसने वह आमफल अपनी उस नर्तकी मित्र को दे दिया। राज नर्तकी ने कोई उत्तर नहीं दिया और अमरफल अपने पास रख लिया। कोतवाल के जाने के बाद उसने सोचा कि कौन मूर्ख यह पापी जीवन लंबा जीना चाहेगा। मैं अब जैसी हूं, वैसी ही ठीक हूं। लेकिन हमारे राज्य का राजा बहुत अच्छा है। धर्मात्मा है, देश की प्रजा के हित के लिए उसे ही लंबा जीवन जीना चाहिए। यह सोचकर उसने किसी प्रकार से राजा से मिलने का समय लिया और एकांत में उस अमरफल की विशेषता सुना कर उसे राजा को दे दिया और कहा,
‘महाराज! आप इसे खा लेना क्योंकि आपका जीवन हमारे लिए अनमोल है।'
राजा फल को देखते ही पहचान गए और सन्न रह गए। गहन पूछताछ करने से जब पूरी बात मालूम हुई, तो राजा को उसी क्षण अपने राजपाट सहित रानियों से विरक्ति हो गयी।
इस संसार की मायामोह को त्याग कर भर्तृहरि वैरागी हो गए और राज-पाट छोड़ कर गुरु गोरखनाथ की शरण में चले गए।

  1. REDIRECTसाँचा:इन्हें भी देखें
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संबंधित लेख

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