तैत्तिरीयोपनिषद भृगुवल्ली अनुवाक-8: Difference between revisions

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*जो साधक इस रहस्य को जान लेता है, वह अन्न रूप ब्रह्म में प्रतिष्ठत हो जाता है।  
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*उसे सभी सुख, वैभव और यश प्राप्त हो जाते हैं और वह महान हो जाता है।
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Latest revision as of 14:05, 30 June 2017

  1. REDIRECTसाँचा:मुख्य
  • अन्न का कभी तिरस्कार न करें। यह व्रत है। जल अन्न है।
  • तेजस अन्न का भोग करता है।
  • तेजस जल में स्थित है और तेजस में जल की स्थिति है।
  • इस प्रकार अन्न में ही अन्न प्रतिष्ठित है।
  • जो साधक इस रहस्य को जान लेता है, वह अन्न रूप ब्रह्म में प्रतिष्ठत हो जाता है।
  • उसे सभी सुख, वैभव और यश प्राप्त हो जाते हैं और वह महान् हो जाता है।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ


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