तैत्तिरीयोपनिषद ब्रह्मानन्दवल्ली अनुवाक-7: Difference between revisions
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Latest revision as of 07:54, 7 November 2017
- तैत्तिरीयोपनिषद के ब्रह्मानन्दवल्ली का यह सातवाँ अनुवाक है।
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- इस अनुवाक में सृष्टि के रचयिता परब्रह्म से 'सृकृत,' अर्थात् पुण्य-स्वरूप कहा गया है।
- प्रारम्भ में वह अव्यक्त ही था, परन्तु बाद में उसने अपनी इच्छा से स्वयं को जगत-रूप में उत्पन्न किया। वही 'जगत-रस' अर्थात् आनन्द है।
- उसी के कारण जीवन है और समस्त चेष्टाएं हैं।
- जब तक जीवात्मा, परमात्मा से अलग रहता है, तभी तक वह दुखी रहता है।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
बाहरी कड़ियाँ
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