तैत्तिरीयोपनिषद ब्रह्मानन्दवल्ली अनुवाक-7: Difference between revisions

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*इस अनुवाक में सृष्टि के रचयिता परब्रह्म से 'सृकृत,' अर्थात पुण्य-स्वरूप कहा गया है।  
*इस अनुवाक में सृष्टि के रचयिता परब्रह्म से 'सृकृत,' अर्थात् पुण्य-स्वरूप कहा गया है।  
*प्रारम्भ में वह अव्यक्त ही था, परन्तु बाद में उसने अपनी इच्छा से स्वयं को जगत-रूप में उत्पन्न किया। वही 'जगत-रस' अर्थात आनन्द है।  
*प्रारम्भ में वह अव्यक्त ही था, परन्तु बाद में उसने अपनी इच्छा से स्वयं को जगत-रूप में उत्पन्न किया। वही 'जगत-रस' अर्थात् आनन्द है।  
*उसी के कारण जीवन है और समस्त चेष्टाएं हैं।  
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*जब तक जीवात्मा, परमात्मा से अलग रहता है, तभी तक वह दुखी रहता है।
*जब तक जीवात्मा, परमात्मा से अलग रहता है, तभी तक वह दुखी रहता है।
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Latest revision as of 07:54, 7 November 2017

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  • इस अनुवाक में सृष्टि के रचयिता परब्रह्म से 'सृकृत,' अर्थात् पुण्य-स्वरूप कहा गया है।
  • प्रारम्भ में वह अव्यक्त ही था, परन्तु बाद में उसने अपनी इच्छा से स्वयं को जगत-रूप में उत्पन्न किया। वही 'जगत-रस' अर्थात् आनन्द है।
  • उसी के कारण जीवन है और समस्त चेष्टाएं हैं।
  • जब तक जीवात्मा, परमात्मा से अलग रहता है, तभी तक वह दुखी रहता है।


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