गोकरननाथ मिश्र: Difference between revisions

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
Jump to navigation Jump to search
[unchecked revision][unchecked revision]
No edit summary
No edit summary
 
(One intermediate revision by one other user not shown)
Line 12: Line 12:
|संतान=
|संतान=
|गुरु=
|गुरु=
|कर्म भूमि=
|कर्म भूमि=[[भारत]]
|कर्म-क्षेत्र=राजनीतिज्ञ, न्यायविद  
|कर्म-क्षेत्र=राजनीतिज्ञ, न्यायविद
|मुख्य रचनाएँ=
|मुख्य रचनाएँ=
|विषय=
|विषय=
Line 45: Line 45:
'लखनऊ विश्वविद्यालय' से क़ानून की डिग्री प्राप्त करने के बाद गोकरननाथ मिश्र जी ने वकालत शुरू करने के साथ ही व्यावसायिक जीवन में कदम रखा। शीघ्र ही अपनी वकालत से उनकी प्रसिद्धि प्रदेश के प्रमुख वकीलों में होने लगी। इसके साथ ही अब वे [[कांग्रेस]] के कार्यों मे भी भाग लेने लगे।
'लखनऊ विश्वविद्यालय' से क़ानून की डिग्री प्राप्त करने के बाद गोकरननाथ मिश्र जी ने वकालत शुरू करने के साथ ही व्यावसायिक जीवन में कदम रखा। शीघ्र ही अपनी वकालत से उनकी प्रसिद्धि प्रदेश के प्रमुख वकीलों में होने लगी। इसके साथ ही अब वे [[कांग्रेस]] के कार्यों मे भी भाग लेने लगे।
==कांग्रेस का साथ==
==कांग्रेस का साथ==
वर्ष [[1898]] की लखनऊ कांग्रेस में उन्होंने पहली बार भाग लिया। अब उनका सम्बन्ध [[गंगाप्रसाद वर्मा]], [[मदन मोहन मालवीय]], [[मोतीलाल नेहरू]] और विशन नारायण दर जैसे तत्कालीन महान नेताओं से हो गया। [[1920]] तक वे नियमित रूप से कांग्रेस के अधिवेशनों में जाते रहे और लोकहित के प्रश्न उठाते रहे। वर्ष [[1915]] से [[1913]] तक वे [[उत्तर प्रदेश]] में कौंसिल के सदस्य भी रहे। गोकरननाथ मिश्र नरम राजनीतिक विचारों के नेता थे। इसलिये [[महात्मा गाँधी|राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी]] के '[[असहयोग आन्दोलन]]' आरंभ करने पर वे [[कांग्रेस]] से अलग हो गये।<ref name="ab"/>
वर्ष [[1898]] की लखनऊ कांग्रेस में उन्होंने पहली बार भाग लिया। अब उनका सम्बन्ध [[गंगाप्रसाद वर्मा]], [[मदन मोहन मालवीय]], [[मोतीलाल नेहरू]] और विशन नारायण दर जैसे तत्कालीन महान् नेताओं से हो गया। [[1920]] तक वे नियमित रूप से कांग्रेस के अधिवेशनों में जाते रहे और लोकहित के प्रश्न उठाते रहे। वर्ष [[1915]] से [[1913]] तक वे [[उत्तर प्रदेश]] में कौंसिल के सदस्य भी रहे। गोकरननाथ मिश्र नरम राजनीतिक विचारों के नेता थे। इसलिये [[महात्मा गाँधी|राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी]] के '[[असहयोग आन्दोलन]]' आरंभ करने पर वे [[कांग्रेस]] से अलग हो गये।<ref name="ab"/>
====योगदान====
====योगदान====
[[1925]] में उन्हें 'अवध चीफ़ कोर्ट' का न्यायाधीश नियुक्त किया गया। गोकरननाथ मिश्र सदा किसानों और निर्बल वर्गों का पक्ष लेते थे। समस्त विरोधों के बाद भी अपनी विधवा पुत्री का [[विवाह]] करके उन्होंने तत्कालीन रूढ़िवाद से जकड़े समाज के समक्ष एक उच्च उदाहरण प्रस्तुत किया था। शिक्षा के क्षेत्र में [[लखनऊ]] का महिला विद्यालय उनके योगदान का स्मारक है।
[[1925]] में उन्हें 'अवध चीफ़ कोर्ट' का न्यायाधीश नियुक्त किया गया। गोकरननाथ मिश्र सदा किसानों और निर्बल वर्गों का पक्ष लेते थे। समस्त विरोधों के बाद भी अपनी विधवा पुत्री का [[विवाह]] करके उन्होंने तत्कालीन रूढ़िवाद से जकड़े समाज के समक्ष एक उच्च उदाहरण प्रस्तुत किया था। शिक्षा के क्षेत्र में [[लखनऊ]] का महिला विद्यालय उनके योगदान का स्मारक है।
Line 56: Line 56:
==टीका टिप्पणी और संदर्भ==
==टीका टिप्पणी और संदर्भ==
<references/>
<references/>
==बाहरी कड़ियाँ==
==संबंधित लेख==
==संबंधित लेख==


[[Category:राजनीतिज्ञ]][[Category:न्यायाधीश]] [[Category:राजनीति कोश]][[Category:चरित कोश]][[Category:जीवनी साहित्य]][[Category:इतिहास कोश]]
[[Category:राजनीतिज्ञ]][[Category:न्यायाधीश]] [[Category:राजनीति कोश]][[Category:चरित कोश]][[Category:जीवनी साहित्य]][[Category:इतिहास कोश]]
__INDEX__
__INDEX__
__NOTOC__

Latest revision as of 05:13, 20 December 2017

गोकरननाथ मिश्र
पूरा नाम गोकरननाथ मिश्र
जन्म 20 दिसम्बर, 1871
जन्म भूमि उत्तर प्रदेश
मृत्यु जुलाई, 1929
कर्म भूमि भारत
कर्म-क्षेत्र राजनीतिज्ञ, न्यायविद
शिक्षा एम.एस.सी. (स्नातकोत्तर)
विद्यालय लखनऊ विश्वविद्यालय
विशेष योगदान वर्ष 1915 से 1913 तक वे उत्तर प्रदेश में कौंसिल के सदस्य रहे।
नागरिकता भारतीय
अन्य जानकारी गोकरननाथ मिश्र सदा किसानों और निर्बल वर्गों का पक्ष लेते थे। समस्त विरोधों के बाद भी अपनी विधवा पुत्री का विवाह करके उन्होंने तत्कालीन रूढ़िवाद से जकड़े समाज के समक्ष एक उच्च उदाहरण प्रस्तुत किया था।

गोकरननाथ मिश्र (अंग्रेज़ी: Gokrannath Mishra जन्म- 20 दिसम्बर, 1871, उत्तर प्रदेश; मृत्यु- जुलाई, 1929) प्रसिद्ध राजनीतिज्ञ, नेता और न्यायविद थे। वर्ष 1898 ई. की लखनऊ कांग्रेस में उन्होंने पहली बार भाग लिया था। इसके बाद उन्होंने वर्ष 1920 तक कांग्रेस के होने वाले हर एक अधिवेशन में भाग लिया। गोकरननाथ मिश्र नरम विचारों वाले व्यक्ति थे, यही कारण था कि जब महात्मा गाँधी ने 'असहयोग आन्दोलन' प्रारम्भ किया, तब वे कांग्रेस से अलग हो गये। उन्होंने शिक्षा के क्षेत्र में भी बहुत योगदान दिया था।

जन्म तथा शिक्षा

गोकरननाथ मिश्र का जन्म 20 दिसम्बर, 1871 ई. में उत्तर प्रदेश के हरदोई ज़िले में हुआ था। वे एक सनातनी ब्राह्मण परिवार से सम्बन्ध रखते थे। गोकरननाथ जी प्रारम्भ से ही प्रखर बुद्धि के प्रतिभाशाली छात्र रहे थे। उन्होंने अपनी स्नातक की परीक्षा बहुत ही अच्छे अंकों के साथ उत्तीर्ण की थी, इसीलिए उन्हें इंग्लैंण्ड जाकर आगे का अध्ययन करने के लिये नियमित छात्रवृत्ति भी मिलनी थी। किंतु प्राचीन रूढ़ीवादी विचारों वाले उनके दादा-दादी ने गोकरननाथ के विदेश जाने का बहुत विरोध किया, जिसके फलस्वरूप गोकरननाथ मिश्र आगे की उच्च शिक्षा के लिए इंग्लैंण्ड नहीं जा सके। बाद में उन्होंने 'लखनऊ विश्वविद्यालय' में प्रवेश ले लिया और यहाँ से एम.एस.सी. की परीक्षा उत्तीर्ण की और फिर यहीं से ही क़ानून की डिग्री भी प्राप्त की।[1]

व्यावसायिक जीवन की शुरुआत

'लखनऊ विश्वविद्यालय' से क़ानून की डिग्री प्राप्त करने के बाद गोकरननाथ मिश्र जी ने वकालत शुरू करने के साथ ही व्यावसायिक जीवन में कदम रखा। शीघ्र ही अपनी वकालत से उनकी प्रसिद्धि प्रदेश के प्रमुख वकीलों में होने लगी। इसके साथ ही अब वे कांग्रेस के कार्यों मे भी भाग लेने लगे।

कांग्रेस का साथ

वर्ष 1898 की लखनऊ कांग्रेस में उन्होंने पहली बार भाग लिया। अब उनका सम्बन्ध गंगाप्रसाद वर्मा, मदन मोहन मालवीय, मोतीलाल नेहरू और विशन नारायण दर जैसे तत्कालीन महान् नेताओं से हो गया। 1920 तक वे नियमित रूप से कांग्रेस के अधिवेशनों में जाते रहे और लोकहित के प्रश्न उठाते रहे। वर्ष 1915 से 1913 तक वे उत्तर प्रदेश में कौंसिल के सदस्य भी रहे। गोकरननाथ मिश्र नरम राजनीतिक विचारों के नेता थे। इसलिये राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी के 'असहयोग आन्दोलन' आरंभ करने पर वे कांग्रेस से अलग हो गये।[1]

योगदान

1925 में उन्हें 'अवध चीफ़ कोर्ट' का न्यायाधीश नियुक्त किया गया। गोकरननाथ मिश्र सदा किसानों और निर्बल वर्गों का पक्ष लेते थे। समस्त विरोधों के बाद भी अपनी विधवा पुत्री का विवाह करके उन्होंने तत्कालीन रूढ़िवाद से जकड़े समाज के समक्ष एक उच्च उदाहरण प्रस्तुत किया था। शिक्षा के क्षेत्र में लखनऊ का महिला विद्यालय उनके योगदान का स्मारक है।

'बोर्ड ऑफ़ इण्डिया मेडिसिन' के अध्यक्ष

उत्तर प्रदेश सरकार ने आयुर्वेद तथा यूनानी तिब्बी चिकित्सा पद्धतियों के विकास की व्यवस्था करने तथा उनके व्यवसाय को विनियमित करने, सुव्यवस्थित करने तथा संगठित करने हेतु सन 1925 में जस्टिस गोकरननाथ मिश्र की अध्यक्षता मे एक समिति गठित की थी, जिसकी संस्तुति के आधार पर 1926 में 'बोर्ड ऑफ़ इण्डिया मेडिसिन' की स्थापना कर भारतीय चिकित्सा प्रणालियों के विकास के लिए उपाय तथा साधन प्रस्तुत करने, वैद्यों तथा हकीमों का पंजीकरण करने, आयुर्वेद/यूनानी चिकित्सालयों तथा विद्यालयों को अनुदान देने, भारतीय चिकित्सा प्रणालियों के अध्ययन व अभ्यास के सम्बंध में नियंत्रण करने का कार्यभार सौपा गया। इस बोर्ड के प्रथम अध्यक्ष पंडित गोकरननाथ मिश्र एवं सन 1929 में जस्टिस सर सैय्यद वजीर हसन हुए थे, जो सन 1946 तक इस पद पर कार्यरत रहे।

निधन

ग़रीबों और निर्बलों के मददगार तथा राजनीति में प्रसिद्धि प्राप्त कर चुके गोकरननाथ मिश्र जी का निधन जुलाई, 1929 में हुआ।


पन्ने की प्रगति अवस्था
आधार
प्रारम्भिक
माध्यमिक
पूर्णता
शोध

टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. 1.0 1.1 भारतीय चरित कोश |लेखक: लीलाधर शर्मा 'पर्वतीय' |प्रकाशक: शिक्षा भारती, मदरसा रोड, कश्मीरी गेट, दिल्ली |पृष्ठ संख्या: 241 |

संबंधित लेख