गुनाहों का देवता -धर्मवीर भारती: Difference between revisions

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‘गुनाहों का देवता ’ उपन्यास मुख्य रूप से 4 खंडो में विभक्त है। पहला खंड आरंभ करने से पूर्व डॉ धर्मवीर भारती ने इस उपन्यास का समर्पण इन शब्दों में किया है-
‘गुनाहों का देवता ’ उपन्यास मुख्य रूप से 4 खंडो में विभक्त है। पहला खंड आरंभ करने से पूर्व डॉ धर्मवीर भारती ने इस उपन्यास का समर्पण इन शब्दों में किया है-


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भारती जी के द्वारा अंकित उपन्यास का समर्पण और नये संस्करण की भूमिका में लिखे गये उपरोक्त वाक्यांश स्वयं में इस उपन्यास की संजीदगी के साक्ष्य हैं। इस उपन्यास के संबंध में यह मिथक कहा जाता है कि सत्तर के दशक के बाद की एक पूरी पीढ़ी इसे पढ़कर ही जवान हुयी है। आज भी विश्वविद्यालयीय छात्रों की निजी लाइब्रेरी का यह प्रमुख उपन्यास है।
भारती जी के द्वारा अंकित उपन्यास का समर्पण और नये संस्करण की भूमिका में लिखे गये उपरोक्त वाक्यांश स्वयं में इस उपन्यास की संजीदगी के साक्ष्य हैं। इस उपन्यास के संबंध में यह मिथक कहा जाता है कि सत्तर के दशक के बाद की एक पूरी पीढ़ी इसे पढ़कर ही जवान हुई है। आज भी विश्वविद्यालयीय छात्रों की निजी पुस्तकालय का यह प्रमुख उपन्यास है।
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Latest revision as of 13:36, 20 April 2018

गुनाहों का देवता -धर्मवीर भारती
लेखक धर्मवीर भारती
मूल शीर्षक गुनाहों का देवता
प्रकाशक भारतकोश पर संकलित
देश भारत
पृष्ठ: 80
भाषा हिन्दी
टिप्पणी आलेख संकलक: अशोक कुमार शुक्ला

उपन्यास का समर्पण

‘गुनाहों का देवता ’ उपन्यास मुख्य रूप से 4 खंडो में विभक्त है। पहला खंड आरंभ करने से पूर्व डॉ धर्मवीर भारती ने इस उपन्यास का समर्पण इन शब्दों में किया है-

मामाजी , लल्ली और अपनी पद्मा जिज्जी को

कालान्तर में इस लोकप्रिय उपन्यास के संस्करणों पर संस्करण प्रकाशित होते रहे जिसके लिये भूमिका के दो शब्द उन्होंने इस प्रकार अंकित किये-

.....इस उपन्यास के नये संस्करण पर दो शब्द लिखते समय मैं समझ नहीं पा रहा हूँ कि क्या लिखूँ ? अधिक से अधिक मैं अपनी हार्दिक कृतज्ञता उन सभी पाठकों के प्रति व्यक्त कर सकता हूँ जिन्होंने इसकी कलात्मक अपरिपक्वता के बावजूद इसको पसन्द किया है। मेरे लिये इस उपन्यास केा लिखना वैसा ही रहा है जैसा पीड़ा के क्षणों में पूरी आस्था से प्रार्थना करना, और इस समय भी मुझे ऐसा लग रहा है जैसे मैं वह प्रार्थना मन ही मन दोहरा रहा हूँ बस.......

-धर्मवीर भारती

भारती जी के द्वारा अंकित उपन्यास का समर्पण और नये संस्करण की भूमिका में लिखे गये उपरोक्त वाक्यांश स्वयं में इस उपन्यास की संजीदगी के साक्ष्य हैं। इस उपन्यास के संबंध में यह मिथक कहा जाता है कि सत्तर के दशक के बाद की एक पूरी पीढ़ी इसे पढ़कर ही जवान हुई है। आज भी विश्वविद्यालयीय छात्रों की निजी पुस्तकालय का यह प्रमुख उपन्यास है।

आगे पढ़ने के लिए गुनाहों का देवता-1 पर जाएँ



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