ज़िन्दगी़ चार कविताएँ -कन्हैयालाल नंदन: Difference between revisions

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रूप की जब उजास लगती है
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ज़िन्दगी
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आसपास लगती है
आसपास लगती है।
तुमसे मिलने की चाह
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कुछ ऐसे
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प्यास लगती है।
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न कुछ कहना
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कि जैसे
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रौशनी की
रौशनी की
एक अपनी धमक होती है
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मन की तहों में
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जैसे तारों के नर्म बिस्तर पर
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Latest revision as of 13:46, 25 December 2011

ज़िन्दगी़ चार कविताएँ -कन्हैयालाल नंदन
कवि कन्हैयालाल नंदन
जन्म 1 जुलाई, 1933
जन्म स्थान फतेहपुर ज़िले के परसदेपुर गांव, उत्तर प्रदेश
मृत्यु 25 सितंबर, 2010
मृत्यु स्थान दिल्ली
मुख्य रचनाएँ लुकुआ का शाहनामा, घाट-घाट का पानी, आग के रंग आदि।
बाहरी कड़ियाँ आधिकारिक वेबसाइट
इन्हें भी देखें कवि सूची, साहित्यकार सूची
कन्हैयालाल नंदन की रचनाएँ
एक


रूप की जब उजास लगती है
ज़िन्दगी
आसपास लगती है।
तुमसे मिलने की चाह
कुछ ऐसे
जैसे ख़ुशबू को
प्यास लगती है।

दो


न कुछ कहना
न सुनना
मुस्कराना
और आँखों में ठहर जाना
कि जैसे
रौशनी की
एक अपनी धमक होती है।
वो इस अंदाज़ से
मन की तहों में
घुस गए
उन्हें मन की तहों ने
इस तरह अंबर पिरोया है
सुबह की धूप जैसे
हार में
शबनम पिरोती है।

तीन


जैसे तारों के नर्म बिस्तर पर
खुशनुमा चाँदनी
उतरती है
इस तरह ख्वाब के बगीचे में
ज़िन्दगी
अपने पाँव धरती है

और फिर क़रीने से
ताउम्र
सिर्फ़
सपनों के
पर कुतरती है।

चार


ज़िन्दगी की ये ज़िद है
ख़्वाब बन के
उतरेगी।
नींद अपनी ज़िद पर है
- इस जनम में न आएगी

दो ज़िदों के साहिल पर
मेरा आशियाना है
वो भी ज़िद पे आमादा
-ज़िन्दगी को
कैसे भी
अपने घर
बुलाना है।





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