अंग अंग चंदन वन -कन्हैयालाल नंदन: Difference between revisions

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एक नाम अधरों पर आया
एक नाम अधरों पर आया,
अंग-अंग चन्दन  
अंग-अंग चन्दन वन हो गया।
वन हो गया।


बोल हैं कि वेद की ऋचाएँ?
बोल हैं कि वेद की ऋचाएँ?
साँसों में सूरज उग आए
साँसों में सूरज उग आए,
आँखों में ऋतुपति के छन्द
आँखों में ऋतुपति के छन्द
तैरने लगे
तैरने लगे मन सारा नील गगन हो गया।
मन सारा  
नील गगन हो गया।


गन्ध गुंथी बाहों का घेरा
गन्ध गुंथी बाहों का घेरा,
जैसे मधुमास का सवेरा
जैसे मधुमास का सवेरा,
फूलों की भाषा में
फूलों की भाषा में देह बोलने लगी,
देह बोलने लगी
पूजा का एक जतन हो गया।
पूजा का  
एक जतन हो गया।


पानी पर खींचकर लकींरें
पानी पर खींचकर लकींरें
काट नहीं सकते जंज़ीरें।
काट नहीं सकते जंज़ीरें।
आसपास
आसपास अजनबी अंधेरों के डेरे हैं
अजनबी अंधेरों के डेरे हैं
अग्निबिन्दु और सघन हो गया!
अग्निबिन्दु  
और सघन हो गया!
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Latest revision as of 04:34, 14 December 2011

अंग अंग चंदन वन -कन्हैयालाल नंदन
कवि कन्हैयालाल नंदन
जन्म 1 जुलाई, 1933
जन्म स्थान फतेहपुर ज़िले के परसदेपुर गांव, उत्तर प्रदेश
मृत्यु 25 सितंबर, 2010
मृत्यु स्थान दिल्ली
मुख्य रचनाएँ लुकुआ का शाहनामा, घाट-घाट का पानी, आग के रंग आदि।
बाहरी कड़ियाँ आधिकारिक वेबसाइट
इन्हें भी देखें कवि सूची, साहित्यकार सूची
कन्हैयालाल नंदन की रचनाएँ

एक नाम अधरों पर आया,
अंग-अंग चन्दन वन हो गया।

बोल हैं कि वेद की ऋचाएँ?
साँसों में सूरज उग आए,
आँखों में ऋतुपति के छन्द
तैरने लगे मन सारा नील गगन हो गया।

गन्ध गुंथी बाहों का घेरा,
जैसे मधुमास का सवेरा,
फूलों की भाषा में देह बोलने लगी,
पूजा का एक जतन हो गया।

पानी पर खींचकर लकींरें
काट नहीं सकते जंज़ीरें।
आसपास अजनबी अंधेरों के डेरे हैं
अग्निबिन्दु और सघन हो गया!



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