तानाजी: Difference between revisions

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#REDIRECT [[तानाजी मालुसरे]]
ताना जी मालुसरे [[शिवाजी]] महाराज के एक सेनापति थे जो वीरता के कारण सिंह के नाम से प्रसिद्ध थे। शिवाजी उनको सिंह ही कहा करते थे। 1670 ई॰ में कोढाणा का क़िले (सिंह गढ़) को जीतने में ताना जी ने वीरगति पायी। जब शिवाजी सिंह गढ़ को जीतने निकले तो तानाजी अपनी बेटी की शादी में व्यस्त थे, किन्तु समाचार मिलते ही वो शादी छोड़ कर युद्ध में चले गये। तानाजी के पास एक [[गोह]] थी। जिसका नाम यशवंती था। इसकी कमर में रस्सी बाँध कर तानाजी क़िले की दीवार पर ऊपर की ओर फेंकते थे और यह गोह छिपकली की तरह दीवार से चिपक जाती थी। इस रस्सी को पकड़ कर वे क़िले की दीवार चढ़ जाते थे। लेकिन इस रात पहली बार में यशवंती सही ढंग से दीवार पर पकड़ नहीं बना पायी और वापस नीचे गिर गयी। सभी ने इसे अपशकुन माना और तानाजी से वापस लौटने के लिए कहा लेकिन तानाजी ने इस बात को अन्धविश्वास कहकर ठुकरा दिया। दोबारा गोह फेंकी गयी और चिपक गयी। इस प्रकार क़िले के द्वार खोल दिए गये और शिवाजी की जीत हो गयी। ताना जी के इस बलिदान पर शिवाजी ने विकल हो कर कहा '''गढ़ आला पण सिंह गेला''' अर्थात गढ़ तो आ गया पर सिंह चला गया। ३ अगस्त १९८४ को भारत के क़िले शीर्षक से निकले ४ विशेष डाक टिकटों में १५० पैसे वाला डाक टिकट सिंहगढ़ को ही समर्पित है।
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Latest revision as of 13:41, 30 July 2017