दिया जलता रहा -गोपालदास नीरज: Difference between revisions
[unchecked revision] | [unchecked revision] |
('{| style="background:transparent; float:right" |- | {{सूचना बक्सा कविता |चित्र=Gopaldas-Neeraj.jp...' के साथ नया पन्ना बनाया) |
व्यवस्थापन (talk | contribs) m (Text replacement - " शृंगार " to " श्रृंगार ") |
||
(2 intermediate revisions by 2 users not shown) | |||
Line 30: | Line 30: | ||
{{Poemopen}} | {{Poemopen}} | ||
<poem>जी उठे शायद शलभ इस आस में | <poem> | ||
जी उठे शायद शलभ इस आस में | |||
रात भर रो रो, दिया जलता रहा। | रात भर रो रो, दिया जलता रहा। | ||
Line 56: | Line 57: | ||
आग अपनी भी न जाती थी सही, | आग अपनी भी न जाती थी सही, | ||
लग रहा था कल्प-सा हर एक पल | लग रहा था कल्प-सा हर एक पल | ||
बन गयी थीं सिसकियाँ | बन गयी थीं सिसकियाँ साँसें विकल, | ||
पर न जाने क्यों उमर की डोर में | पर न जाने क्यों उमर की डोर में | ||
प्राण बँध तिल तिल सदा गलता रहा ? | प्राण बँध तिल तिल सदा गलता रहा ? |
Latest revision as of 08:52, 17 July 2017
| ||||||||||||||
|
जी उठे शायद शलभ इस आस में |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
संबंधित लेख