तुम दीवाली बन कर -गोपालदास नीरज: Difference between revisions
[unchecked revision] | [unchecked revision] |
('{| style="background:transparent; float:right" |- | {{सूचना बक्सा कविता |चित्र=Gopaldas-Neeraj.jp...' के साथ नया पन्ना बनाया) |
व्यवस्थापन (talk | contribs) m (Text replacement - " दुख " to " दु:ख ") |
||
(One intermediate revision by the same user not shown) | |||
Line 54: | Line 54: | ||
मैं होली बनकर बिछड़े हृदय मिलाऊंगा! | मैं होली बनकर बिछड़े हृदय मिलाऊंगा! | ||
इस | इस क़दर बढ रही है बेबसी बहारों की | ||
फूलों को मुस्काना तक मना हो गया है, | फूलों को मुस्काना तक मना हो गया है, | ||
इस तरह हो रही है पशुता की पशु-क्रीड़ा | इस तरह हो रही है पशुता की पशु-क्रीड़ा | ||
Line 76: | Line 76: | ||
जब खेल रही है सारी धरती लहरों से | जब खेल रही है सारी धरती लहरों से | ||
तब कब तक तट पर अपना रहना सम्भव है! | तब कब तक तट पर अपना रहना सम्भव है! | ||
संसार जल रहा है जब | संसार जल रहा है जब दु:ख की ज्वाला में | ||
तब कैसे अपने सुख को सहना सम्भव है! | तब कैसे अपने सुख को सहना सम्भव है! | ||
मिटते मानव और मानवता की रक्षा में | मिटते मानव और मानवता की रक्षा में |
Latest revision as of 14:00, 2 June 2017
| ||||||||||||||
|
तुम दीवाली बनकर जग का तम दूर करो, |
टीका टिप्पणी और संदर्भसंबंधित लेख |