गणेश जी की आरती: Difference between revisions
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<blockquote><span style="color: blue"><poem>व्रकतुंड महाकाय, सूर्यकोटी समप्रभाः | | <blockquote><span style="color: blue"><poem>व्रकतुंड महाकाय, सूर्यकोटी समप्रभाः | | ||
निर्वघ्नं कुरु मे देव, सर्वकार्येरुषु सवर्दा ||</poem></span></blockquote> | निर्वघ्नं कुरु मे देव, सर्वकार्येरुषु सवर्दा ||</poem></span></blockquote> | ||
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'''आरती''' | '''आरती''' | ||
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एकदन्त दयावन्त चार भुजाधारी | एकदन्त दयावन्त चार भुजाधारी | ||
माथे पर तिलक सोहे मूसे की सवारी | माथे पर तिलक सोहे मूसे की सवारी ।। | ||
अन्धन को आँख देत, कोढ़िन को | अन्धन को आँख देत, कोढ़िन को काया। | ||
बाँझन को पुत्र देत, निर्धन को माया | बाँझन को पुत्र देत, निर्धन को माया ।। जय गणेश देवा... | ||
पान चढ़े फल चढ़े और चढ़े मेवा | पान चढ़े फल चढ़े और चढ़े मेवा | ||
लड्डुअन का भोग लगे सन्त करें सेवा ॥ | लड्डुअन का भोग लगे सन्त करें सेवा ॥ | ||
'सूर' श्याम शरण आए सफल कीजे सेवा | 'सूर' श्याम शरण आए सफल कीजे सेवा | ||
जय गणेश जय गणेश जय गणेश देवा ॥</poem></span></blockquote> | जय गणेश जय गणेश जय गणेश देवा ॥</poem></span></blockquote> | ||
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<blockquote><span style="color: blue"><poem>श्री गणेश यह चालीसा पाठ करें धर ध्यान। | <blockquote><span style="color: blue"><poem>श्री गणेश यह चालीसा पाठ करें धर ध्यान। | ||
नित नव मंगल गृह बसै लहे | नित नव मंगल गृह बसै लहे जगत् सन्मान॥ | ||
सम्वत् अपन सहस्र दश ऋषि पंचमी दिनेश। | सम्वत् अपन सहस्र दश ऋषि पंचमी दिनेश। | ||
पूरण चालीसा भयो मंगल मूर्ति गणेश॥</poem></span></blockquote> | पूरण चालीसा भयो मंगल मूर्ति गणेश॥</poem></span></blockquote> | ||
'''स्तुति''' | '''स्तुति''' | ||
<blockquote><span style="color: blue"><poem> | <blockquote><span style="color: blue"><poem> | ||
गणपति की सेवा मंगल मेवा सेवा से सब | गणपति की सेवा मंगल मेवा सेवा से सब विघ्न टरें। | ||
तीन लोक तैंतीस देवता द्वार खड़े सब अर्ज करे | तीन लोक तैंतीस देवता द्वार खड़े सब अर्ज करे ॥ | ||
ऋद्धि-सिद्धि दक्षिण वाम विरजे आनन्द सौं चंवर दुरें | ऋद्धि-सिद्धि दक्षिण वाम विरजे आनन्द सौं चंवर दुरें । | ||
धूप दीप और लिए आरती भक्त खड़े जयकार करें | धूप दीप और लिए आरती भक्त खड़े जयकार करें ॥ | ||
गुड़ के मोदक भोग लगत है मूषक वाहन चढ़े सरें | गुड़ के मोदक भोग लगत है मूषक वाहन चढ़े सरें । | ||
सौम्य सेवा गणपति की | सौम्य सेवा गणपति की विघ्न भागजा दूर परें ॥ | ||
भादों मास शुक्ल चतुर्थी दोपारा भर पूर परें | भादों मास शुक्ल चतुर्थी दोपारा भर पूर परें । | ||
लियो जन्म गणपति प्रभु ने दुर्गा मन आनन्द भरें | लियो जन्म गणपति प्रभु ने दुर्गा मन आनन्द भरें ॥ | ||
श्री शंकर के आनन्द उपज्यो, नाम सुमरयां सब | श्री शंकर के आनन्द उपज्यो, नाम सुमरयां सब विघ्न टरें । | ||
आन विधाता बैठे आसन इन्द्र अप्सरा नृत्य करें | आन विधाता बैठे आसन इन्द्र अप्सरा नृत्य करें ॥ | ||
देखि वेद ब्रह्माजी जाको | देखि वेद ब्रह्माजी जाको विघ्न विनाशन रूप अनूप करें। | ||
पग खम्बा सा उदर पुष्ट है चन्द्रमा हास्य करें | पग खम्बा सा उदर पुष्ट है चन्द्रमा हास्य करें । | ||
दे श्राप चन्द्र्देव को कलाहीन तत्काल करें | दे श्राप चन्द्र्देव को कलाहीन तत्काल करें ॥ | ||
चौदह लोक में फिरें गणपति तीन लोक में राज करें | चौदह लोक में फिरें गणपति तीन लोक में राज करें । | ||
उठ प्रभात जो आरती गावे ताके सिर यश छत्र फिरें | उठ प्रभात जो आरती गावे ताके सिर यश छत्र फिरें । | ||
गणपति जी की पूजा पहले करनी काम सभी निर्विध्न करें | गणपति जी की पूजा पहले करनी काम सभी निर्विध्न करें । | ||
श्री गणपति जी की हाथ जोड़कर स्तुति करें | श्री गणपति जी की हाथ जोड़कर स्तुति करें ॥ | ||
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Latest revision as of 11:40, 3 August 2017
[[चित्र:Ganesha.jpg|thumb|250|गणेश]] श्लोक
व्रकतुंड महाकाय, सूर्यकोटी समप्रभाः |
निर्वघ्नं कुरु मे देव, सर्वकार्येरुषु सवर्दा ||
अन्य सम्बंधित लेख |
आरती
जय गणेश जय गणेश जय गणेश देवा ।
माता जा की पार्वती, पिता महादेवा ॥ जय गणेश देवा...
एकदन्त दयावन्त चार भुजाधारी
माथे पर तिलक सोहे मूसे की सवारी ।।
अन्धन को आँख देत, कोढ़िन को काया।
बाँझन को पुत्र देत, निर्धन को माया ।। जय गणेश देवा...
पान चढ़े फल चढ़े और चढ़े मेवा
लड्डुअन का भोग लगे सन्त करें सेवा ॥
'सूर' श्याम शरण आए सफल कीजे सेवा
जय गणेश जय गणेश जय गणेश देवा ॥
दोहा
श्री गणेश यह चालीसा पाठ करें धर ध्यान।
नित नव मंगल गृह बसै लहे जगत् सन्मान॥
सम्वत् अपन सहस्र दश ऋषि पंचमी दिनेश।
पूरण चालीसा भयो मंगल मूर्ति गणेश॥
स्तुति
गणपति की सेवा मंगल मेवा सेवा से सब विघ्न टरें।
तीन लोक तैंतीस देवता द्वार खड़े सब अर्ज करे ॥
ऋद्धि-सिद्धि दक्षिण वाम विरजे आनन्द सौं चंवर दुरें ।
धूप दीप और लिए आरती भक्त खड़े जयकार करें ॥
गुड़ के मोदक भोग लगत है मूषक वाहन चढ़े सरें ।
सौम्य सेवा गणपति की विघ्न भागजा दूर परें ॥
भादों मास शुक्ल चतुर्थी दोपारा भर पूर परें ।
लियो जन्म गणपति प्रभु ने दुर्गा मन आनन्द भरें ॥
श्री शंकर के आनन्द उपज्यो, नाम सुमरयां सब विघ्न टरें ।
आन विधाता बैठे आसन इन्द्र अप्सरा नृत्य करें ॥
देखि वेद ब्रह्माजी जाको विघ्न विनाशन रूप अनूप करें।
पग खम्बा सा उदर पुष्ट है चन्द्रमा हास्य करें ।
दे श्राप चन्द्र्देव को कलाहीन तत्काल करें ॥
चौदह लोक में फिरें गणपति तीन लोक में राज करें ।
उठ प्रभात जो आरती गावे ताके सिर यश छत्र फिरें ।
गणपति जी की पूजा पहले करनी काम सभी निर्विध्न करें ।
श्री गणपति जी की हाथ जोड़कर स्तुति करें ॥
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
संबंधित लेख