ऋत्विक: Difference between revisions
[unchecked revision] | [unchecked revision] |
व्यवस्थापन (talk | contribs) m (Text replace - "Category:हिन्दू धर्म कोश" to "Category:हिन्दू धर्म कोशCategory:धर्म कोश") |
व्यवस्थापन (talk | contribs) m (Text replacement - "पश्चात " to "पश्चात् ") |
||
(One intermediate revision by one other user not shown) | |||
Line 3: | Line 3: | ||
<poem>अग्नयाधेयं पाकयज्ञानग्निष्टोमादिकान्यमखान्। | <poem>अग्नयाधेयं पाकयज्ञानग्निष्टोमादिकान्यमखान्। | ||
य: करोति वृतो यस्य स तस्यर्त्विगिहोच्यते।।<ref>मनु (2.143) में कथन है-</ref></poem> | य: करोति वृतो यस्य स तस्यर्त्विगिहोच्यते।।<ref>मनु (2.143) में कथन है-</ref></poem> | ||
[[अग्नि]] की स्थापना, पाकयज्ञ, अग्निष्टोम आदि यज्ञ जो यजमान के लिए करता है, वह उसका ऋत्विक कहा जाता है। उसके पर्याय हैं- | [[अग्नि]] की स्थापना, पाकयज्ञ, [[अग्निष्टोम]] आदि [[यज्ञ]] जो यजमान के लिए करता है, वह उसका ऋत्विक कहा जाता है। उसके पर्याय हैं- | ||
*याजक | *याजक | ||
*[[भरत]] | *[[भरत]] | ||
Line 18: | Line 18: | ||
==ब्राह्मण काल== | ==ब्राह्मण काल== | ||
ऋग्वेद में वर्णित दूसरे पुरोहित साम गान करते थे। उदगाता तथा उसके सहायक प्रशोस्ता एवं दूसरे सहायक प्रतिहर्ता के कार्य यज्ञों के परवर्ती काल की याद दिलाते हैं। ब्राह्मण काल में यज्ञों का रूप जब और भी विकसित एवं जटिल हुआ तब सोलह पुरोहित होने लगे, जिनमें नये ऋत्विक थे अच्छावाक, ग्रावस्तुत, उन्नेता तथा सुब्रह्मण्य, जो औपचारिक तथा कार्यविधि के अनुसार चार-चार भागों में बँटे हुए थे-होता, मैत्रावरुण, अच्छावाक, तथा ग्रावस्तुत; उदगाता, प्रस्तोता, प्रतिहर्ता तथा सुब्रह्मण्य, अध्वर्यु, प्रतिस्थाता, नेष्टा तथा उन्नेता और ब्रह्मा, ब्रह्माणच्छांसी, आग्नीध्र तथा पोता। | ऋग्वेद में वर्णित दूसरे पुरोहित साम गान करते थे। उदगाता तथा उसके सहायक प्रशोस्ता एवं दूसरे सहायक प्रतिहर्ता के कार्य यज्ञों के परवर्ती काल की याद दिलाते हैं। ब्राह्मण काल में यज्ञों का रूप जब और भी विकसित एवं जटिल हुआ तब सोलह पुरोहित होने लगे, जिनमें नये ऋत्विक थे अच्छावाक, ग्रावस्तुत, उन्नेता तथा सुब्रह्मण्य, जो औपचारिक तथा कार्यविधि के अनुसार चार-चार भागों में बँटे हुए थे-होता, मैत्रावरुण, अच्छावाक, तथा ग्रावस्तुत; उदगाता, प्रस्तोता, प्रतिहर्ता तथा सुब्रह्मण्य, अध्वर्यु, प्रतिस्थाता, नेष्टा तथा उन्नेता और ब्रह्मा, ब्रह्माणच्छांसी, आग्नीध्र तथा पोता। | ||
इनके अतिरिक्त एक पुरोहित और होता था, जो राजा के सभी धार्मिक कर्तव्यों का आध्यात्मिक परामर्शदाता था। यह पुरोहित बड़े यज्ञों में ब्रह्मा का स्थान ग्रहण करता था तथा सभी याज्ञिक कार्यों का मुख्य निरीक्षक होता था। यह पुरोहित प्रारम्भिक काल में होता था तथा सर्वप्रथम मंत्रों का गान करता था। | इनके अतिरिक्त एक पुरोहित और होता था, जो राजा के सभी धार्मिक कर्तव्यों का आध्यात्मिक परामर्शदाता था। यह पुरोहित बड़े यज्ञों में ब्रह्मा का स्थान ग्रहण करता था तथा सभी याज्ञिक कार्यों का मुख्य निरीक्षक होता था। यह पुरोहित प्रारम्भिक काल में होता था तथा सर्वप्रथम मंत्रों का गान करता था। पश्चात् यही ब्रह्मा का स्थान लेकर यज्ञनिरीक्षक का कार्य करने लगा। | ||
Latest revision as of 07:42, 23 June 2017
ऋत्विक (ऋत्विज) भी कहा जाता है। जो ऋतु में यज्ञ करता है उसे ऋत्विक कहा जाता है। जैसे- याज्ञिक या पुरोहित।
अग्नयाधेयं पाकयज्ञानग्निष्टोमादिकान्यमखान्।
य: करोति वृतो यस्य स तस्यर्त्विगिहोच्यते।।[1]
अग्नि की स्थापना, पाकयज्ञ, अग्निष्टोम आदि यज्ञ जो यजमान के लिए करता है, वह उसका ऋत्विक कहा जाता है। उसके पर्याय हैं-
यज्ञकार्य
यज्ञकार्य में योगदान करने वाले सभी पुरोहित ब्राह्मण होते हैं। पुरातन और यज्ञों में कार्य करने वालों की निश्चित संख्या सात होती थी। ऋग्वेद की एक पुरानी तालिका में इन्हें होता, पोता, नेष्टा, आग्नीध्र, प्रशास्ता, अध्वर्यु और ब्रह्मा कहा गया है। सातों में प्रधान 'होता' माना जाता था, जो ऋचाओं का गान करता था। वह प्रारम्भिक काल में ऋचाओं की रचना भी (ऊह विधि से) करता था। अर्ध्वयु सभी यज्ञकार्य (हाथ से किये जाने वाले) करता था। उसकी सहायता मुख्य रूप से आग्नीध्र करता था, ये ही दोनों छोटे यज्ञों को स्वतंत्र रूप से कराते थे। प्रशास्ता जिसे उपवक्ता तथा मैत्रावरुण भी कहते हैं, केवल बड़े यज्ञों में भाग लेता था और 'होता' को परामर्श देता था। कुछ प्रार्थनाएँ इसके अधीन होती थीं। पोता, नेष्टा एवं ब्रह्मा का सम्बन्ध सोमयज्ञों से था। बाद में ब्रह्मा को ब्राह्माच्छंसी कहने लगे जो कि यज्ञों में निरीक्षक का कार्य करने लगा।
ब्राह्मण काल
ऋग्वेद में वर्णित दूसरे पुरोहित साम गान करते थे। उदगाता तथा उसके सहायक प्रशोस्ता एवं दूसरे सहायक प्रतिहर्ता के कार्य यज्ञों के परवर्ती काल की याद दिलाते हैं। ब्राह्मण काल में यज्ञों का रूप जब और भी विकसित एवं जटिल हुआ तब सोलह पुरोहित होने लगे, जिनमें नये ऋत्विक थे अच्छावाक, ग्रावस्तुत, उन्नेता तथा सुब्रह्मण्य, जो औपचारिक तथा कार्यविधि के अनुसार चार-चार भागों में बँटे हुए थे-होता, मैत्रावरुण, अच्छावाक, तथा ग्रावस्तुत; उदगाता, प्रस्तोता, प्रतिहर्ता तथा सुब्रह्मण्य, अध्वर्यु, प्रतिस्थाता, नेष्टा तथा उन्नेता और ब्रह्मा, ब्रह्माणच्छांसी, आग्नीध्र तथा पोता। इनके अतिरिक्त एक पुरोहित और होता था, जो राजा के सभी धार्मिक कर्तव्यों का आध्यात्मिक परामर्शदाता था। यह पुरोहित बड़े यज्ञों में ब्रह्मा का स्थान ग्रहण करता था तथा सभी याज्ञिक कार्यों का मुख्य निरीक्षक होता था। यह पुरोहित प्रारम्भिक काल में होता था तथा सर्वप्रथम मंत्रों का गान करता था। पश्चात् यही ब्रह्मा का स्थान लेकर यज्ञनिरीक्षक का कार्य करने लगा।
|
|
|
|
|
टीका टिप्पणी और संदर्भ
पाण्डेय, डॉ. राजबली हिन्दू धर्मकोश (हिन्दी)। भारतडिस्कवरी पुस्तकालय: उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान, लखनऊ, पृष्ठ सं 137।
- ↑ मनु (2.143) में कथन है-