जनार्दन तीर्थस्थल: Difference between revisions
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मंदिर से थोड़ी दूर पर [[समुद्र]] है। पास से आती एक छोटी नदी समुद्र में मिलती है। उसके संगम पर स्नान किया जाता है। यहाँ लहरों का वेग अधिक रहता है। पास में कगार से कई झरने गिरते हैं, उनमें भी स्नान किया जाता है। ये 5 मीठे पानी के झरने थोड़ी-थोड़ी दूर हैं। इन्हें पापमोचन, ऋणमोचन, सावित्री, गायत्री और सरस्वती तीर्थ कहा जाता है। समुद्र स्नान के | मंदिर से थोड़ी दूर पर [[समुद्र]] है। पास से आती एक छोटी नदी समुद्र में मिलती है। उसके संगम पर स्नान किया जाता है। यहाँ लहरों का वेग अधिक रहता है। पास में कगार से कई झरने गिरते हैं, उनमें भी स्नान किया जाता है। ये 5 मीठे पानी के झरने थोड़ी-थोड़ी दूर हैं। इन्हें पापमोचन, ऋणमोचन, सावित्री, गायत्री और सरस्वती तीर्थ कहा जाता है। समुद्र स्नान के पश्चात् इनमें स्नान होता है। यहाँ लौटने पर मंदिर के समीप एक सरोवर है। सीढ़ियों के पास चक्रतीर्थ कुंड है। इनमें भी स्नान मार्जन होता है। सीढ़ियों से ऊपर जनार्दन मंदिर है। इसकी परिक्रमा में शास्ता तथा [[शंकर|शंकरजी]] की मूर्तियाँ तथा वटवृक्ष है। नीचे उतरने पर शास्ता का पृथक् मंदिर है। बाज़ार से दो फर्लांग पर [[वल्लभाचार्य|श्रीवल्लभाचार्य महाप्रभु]] की बैठक है। | ||
===पौराणिक कथा=== | ===पौराणिक कथा=== | ||
यहाँ [[ब्रह्मा|ब्रह्माजी]] [[यज्ञ]] कर रहे थे। साधु वेश में [[नारायण]] ने आकर भोजन मांगा। ब्रह्मा भोजन देने लगे और साधु अंजलि में लेकर खाने लगे। भोजन सामग्री समाप्त होने पर ब्रह्मा चोंके और अतिथि के चरणों पर गिर पड़े। भगवान प्रगट हो गये। ब्रह्मा ने उनसे यहीं स्थित रहने का वरदान लिया। यहाँ ब्रह्मा के यज्ञस्थल से ही धूप निकलती है। | यहाँ [[ब्रह्मा|ब्रह्माजी]] [[यज्ञ]] कर रहे थे। साधु वेश में [[नारायण]] ने आकर भोजन मांगा। ब्रह्मा भोजन देने लगे और साधु अंजलि में लेकर खाने लगे। भोजन सामग्री समाप्त होने पर ब्रह्मा चोंके और अतिथि के चरणों पर गिर पड़े। भगवान प्रगट हो गये। ब्रह्मा ने उनसे यहीं स्थित रहने का वरदान लिया। यहाँ ब्रह्मा के यज्ञस्थल से ही धूप निकलती है। |
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चित्र:Disamb2.jpg जनार्दन | एक बहुविकल्पी शब्द है अन्य अर्थों के लिए देखें:- जनार्दन (बहुविकल्पी) |
जनार्दन तीर्थस्थल केरल राज्य के बरकला में स्थित प्रसिद्ध तीर्थ स्थान है। त्रिवेन्द्रम से 26 मील पर बरकला स्टेशन है। स्टेशन से जनार्दन बस्ती दो मील है। यहाँ तांगे जाते हैं। यहाँ ठहरने के लिए गुजराती धर्मशाला है।
जनार्दन में धूप की खदान है। यह धूप रामेश्वर तक बिकती है। कहते हैं कि इसे जलाने से प्रैत बाधा, बच्चों को नजर लगाना आदि दूर हो जाते हैं। मंदिर से थोड़ी दूर पर समुद्र है। पास से आती एक छोटी नदी समुद्र में मिलती है। उसके संगम पर स्नान किया जाता है। यहाँ लहरों का वेग अधिक रहता है। पास में कगार से कई झरने गिरते हैं, उनमें भी स्नान किया जाता है। ये 5 मीठे पानी के झरने थोड़ी-थोड़ी दूर हैं। इन्हें पापमोचन, ऋणमोचन, सावित्री, गायत्री और सरस्वती तीर्थ कहा जाता है। समुद्र स्नान के पश्चात् इनमें स्नान होता है। यहाँ लौटने पर मंदिर के समीप एक सरोवर है। सीढ़ियों के पास चक्रतीर्थ कुंड है। इनमें भी स्नान मार्जन होता है। सीढ़ियों से ऊपर जनार्दन मंदिर है। इसकी परिक्रमा में शास्ता तथा शंकरजी की मूर्तियाँ तथा वटवृक्ष है। नीचे उतरने पर शास्ता का पृथक् मंदिर है। बाज़ार से दो फर्लांग पर श्रीवल्लभाचार्य महाप्रभु की बैठक है।
पौराणिक कथा
यहाँ ब्रह्माजी यज्ञ कर रहे थे। साधु वेश में नारायण ने आकर भोजन मांगा। ब्रह्मा भोजन देने लगे और साधु अंजलि में लेकर खाने लगे। भोजन सामग्री समाप्त होने पर ब्रह्मा चोंके और अतिथि के चरणों पर गिर पड़े। भगवान प्रगट हो गये। ब्रह्मा ने उनसे यहीं स्थित रहने का वरदान लिया। यहाँ ब्रह्मा के यज्ञस्थल से ही धूप निकलती है।
टीका टिप्पणी और संदर्भ
हिन्दूओं के तीर्थ स्थान |लेखक: सुदर्शन सिंह 'चक्र' |पृष्ठ संख्या: 158 |