यम ग्रह: Difference between revisions

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* सौरमंडल के अंतिम छोर पर मौजूद बर्फीला दुनिया प्लूटो हैं । प्लूटो के वातावरण के बारे में बेहद महत्वपूर्ण जानकारियां सामने आई हैं। हमें पहली बार प्लूटो के वातावरण की झलक मिली है। प्लूटो का वायुमंडल मीथेन से भरपूर है, जैसे कि पृथ्वी का वातावरण ऑक्सीजन से। प्लूटो के वायुमंडल में मीथेन के साथ नाइट्रोजन और कार्बन मोनो ऑक्साइड के कुछ अंश भी मौजूद हैं। खास बात ये कि प्लूटो की जमीन के मुकाबले वातावरण का तापमान 40 डिग्री ज्यादा है। लेकिन इसके बावजूद प्लूटो एक ऐसी दुनिया है जो डीप फ्रिज जैसे हालात में है। यहां का सरफेस टेम्परेचटर शून्य से 220 डिग्री सेंटीग्रेड नीचे है। प्लूटो के वातावरण की ये नई झलक दिखाई है चिली में मौजूद ला-सिला-पैरानल ऑब्जरवेटरी के यूरोपियन ऑर्गेनाईजेशन फॉर एस्ट्रोनॉमिकल रिसर्च इन द साउदर्न हेमिस्फियर सेंटर ने।  
* सौरमंडल के अंतिम छोर पर मौजूद बर्फीला दुनिया प्लूटो हैं । प्लूटो के वातावरण के बारे में बेहद महत्वपूर्ण जानकारियां सामने आई हैं। हमें पहली बार प्लूटो के वातावरण की झलक मिली है। प्लूटो का वायुमंडल मीथेन से भरपूर है, जैसे कि पृथ्वी का वातावरण ऑक्सीजन से। प्लूटो के वायुमंडल में मीथेन के साथ नाइट्रोजन और कार्बन मोनो ऑक्साइड के कुछ अंश भी मौजूद हैं। खास बात ये कि प्लूटो की जमीन के मुकाबले वातावरण का तापमान 40 डिग्री ज्यादा है। लेकिन इसके बावजूद प्लूटो एक ऐसी दुनिया है जो डीप फ्रिज जैसे हालात में है। यहां का सरफेस टेम्परेचटर शून्य से 220 डिग्री सेंटीग्रेड नीचे है। प्लूटो के वातावरण की ये नई झलक दिखाई है चिली में मौजूद ला-सिला-पैरानल ऑब्जरवेटरी के यूरोपियन ऑर्गेनाईजेशन फॉर एस्ट्रोनॉमिकल रिसर्च इन द साउदर्न हेमिस्फियर सेंटर ने।  
 
==प्लूटो का ग्रह से बौने ग्रह बनने का सफर==
* प्लूटो सूर्य का नौंवा ग्रह हुआ करता था लेकिन वैज्ञानिकों ने ग्रह का दर्जा छीन लिया है और अब हमारे सौरमंडल में नौ के बजाय सिर्फ आठ ग्रह -- बुध, शुक्र, पृथ्वी, मंगल, बृहस्पति, शनि, यूरेनस और नेपच्यून ही ग्रह रह गए हैं। यह इतना छोटा है कि सौरमंडल के सात चन्द्रमा ( हमारे [[चन्द्रमा ग्रह|चन्द्रमा]] सहित ) इससे बड़े है। प्लूटो से बड़े अन्य चन्द्रमा है, गुरु के चन्द्रमा आयो, युरोपा, गीनीमेड और कैलीस्टो; शनि का चन्द्रमा टाइटन और नेप्च्यून का ट्राइटन। इसकी कक्षा का वृत्ताकार नहीं होना। [[वरुण ग्रह|वरुण]] की कक्षा को काटना। इस वजह से इसे [[ग्रह]] का दर्जा देना हमेशा विवादों के घेरे मे रहा।
* प्लूटो सूर्य का नौंवा ग्रह हुआ करता था लेकिन वैज्ञानिकों ने ग्रह का दर्जा छीन लिया है और अब हमारे सौरमंडल में नौ के बजाय सिर्फ आठ ग्रह -- बुध, शुक्र, पृथ्वी, मंगल, बृहस्पति, शनि, यूरेनस और नेपच्यून ही ग्रह रह गए हैं। यह इतना छोटा है कि सौरमंडल के सात चन्द्रमा ( हमारे [[चन्द्रमा ग्रह|चन्द्रमा]] सहित ) इससे बड़े है। प्लूटो से बड़े अन्य चन्द्रमा है, गुरु के चन्द्रमा आयो, युरोपा, गीनीमेड और कैलीस्टो; शनि का चन्द्रमा टाइटन और नेप्च्यून का ट्राइटन। इसकी कक्षा का वृत्ताकार नहीं होना। [[वरुण ग्रह|वरुण]] की कक्षा को काटना। इस वजह से इसे [[ग्रह]] का दर्जा देना हमेशा विवादों के घेरे मे रहा।
* 1930 में प्लूटो की खोज से लेकर अगस्त 2006 तक अर्थात 76 वर्ष तक इसे हमारे सौरमंडल का नौवां ग्रह होने का गौरव हासिल था। लेकिन [[24 अगस्त]] [[2006]] को इससे वो गौरव छीन लिया गया। सभी ग्रहों, चंद्रमाओं और दूसरे आसमानी पिंडों की परिभाषाएं तय करने और उनके नाम निर्धारित करने वाली अतंरराष्ट्रीय अंतरिक्ष विज्ञान संघ ( आई. ए. यू. / इंटरनेशनल एस्ट्रोनॉमिकल यूनियन ) की चेक गणराज्य की राजधानी प्राग के बैठक में अगस्त 2006 में दुनियाभर 75 देशों के 2500 वैज्ञानिकों के साथ मिलकर बहस छेड़ी कि आखिर किसे हम ग्रह मानें और किसे नहीं? इस बहस की वजह ये थी कि सौरमंडल के बाहर लगातार नए पिंड खोजे जा रहे थे और ये तय करना बेहद जरूरी हो गया था कि आखिर एक ग्रह की परिभाषा क्या हो ? ग्रहों की परिभाषा को तय करने की ये बहस एक हफ्ते तक चली और इस बहस में एक मौका ये भी आया कि हमारा चंद्रमा भी ग्रह के ओहदे का दावेदार बन गया। इस बहस का अंत ड्वार्फ प्लेनेट्स यानि छुद्र ग्रहों के एक नए वर्ग के साथ हुआ। ये स्वीकार किया गया कि हमारे सौरमंडल में ग्रह और चंद्रमाओं के साथ बौने ग्रह यानि ड्वार्फ प्लेनेट्स भी हैं। प्लूटो ग्रह की परिभाषा पर खरा नहीं उतरा और इंटरनेशनल एस्ट्रोनॉमिकल यूनियन ने प्लूटो को ग्रह का दर्जा दिए जाने को एतिहासिक भूल मानते हुए प्लूटो को ड्वार्फ प्लेनेट ( Dwarf Planet ) यानि बौने ग्रह का दर्जा दिया। इस तरह हमारा सौरमंडल एकबार फिर तय किया गया और अंतिम रूप से घोषित किया गया कि हमारे सौरमंडल में ग्रहों की संख्या 9 नहीं बल्कि 8 है। आईएयू ने प्लूटो का नया नाम 134340 रखा है और पहली बार ग्रह की ऐसी परिभाषा तय की गई है, जिसमें ग्रहों के चयन को लेकर साफ-साफ बात कही गई है। ग्रह की नयी परिभाषा में सौरमंडल के किसी पिंड के ग्रह होने के लिए तीन मानक तय किए गए हैं, इसके मुताबिक -- (1) ऐसा ठोस अंतरिक्ष पिंड जो इतना बड़ा ज़रूर हो कि अपने गुरुत्व बल के कारण इसका आकार लगभग गोलाकार हो जाए। (2) सूर्य की परिक्रमा करता हो। (3) इसमें इतना ज़ोर हो कि ये बाक़ी पिंडों से अलग अपनी स्वतंत्र कक्षा बना सके, साथ ही, इसकी कक्षा पड़ोसी ग्रह के रास्ते में नहीं होनी चाहिए। इसमे तीसरी अपेक्षा पर प्लूटो खरा नहीं उतरता है, क्योंकि सूर्य की परिक्रमा के दौरान इसकी कक्षा पड़ोसी नेप्चून की कक्षा से टकराती ( काटती ) है।  
* 1930 में प्लूटो की खोज से लेकर अगस्त 2006 तक अर्थात 76 वर्ष तक इसे हमारे सौरमंडल का नौवां ग्रह होने का गौरव हासिल था। लेकिन [[24 अगस्त]] [[2006]] को इससे वो गौरव छीन लिया गया। सभी ग्रहों, चंद्रमाओं और दूसरे आसमानी पिंडों की परिभाषाएं तय करने और उनके नाम निर्धारित करने वाली अतंरराष्ट्रीय अंतरिक्ष विज्ञान संघ ( आई. ए. यू. / इंटरनेशनल एस्ट्रोनॉमिकल यूनियन ) की चेक गणराज्य की राजधानी प्राग के बैठक में अगस्त 2006 में दुनियाभर 75 देशों के 2500 वैज्ञानिकों के साथ मिलकर बहस छेड़ी कि आखिर किसे हम ग्रह मानें और किसे नहीं? इस बहस की वजह ये थी कि सौरमंडल के बाहर लगातार नए पिंड खोजे जा रहे थे और ये तय करना बेहद जरूरी हो गया था कि आखिर एक ग्रह की परिभाषा क्या हो ? ग्रहों की परिभाषा को तय करने की ये बहस एक हफ्ते तक चली और इस बहस में एक मौका ये भी आया कि हमारा चंद्रमा भी ग्रह के ओहदे का दावेदार बन गया। इस बहस का अंत ड्वार्फ प्लेनेट्स यानि छुद्र ग्रहों के एक नए वर्ग के साथ हुआ। ये स्वीकार किया गया कि हमारे सौरमंडल में ग्रह और चंद्रमाओं के साथ बौने ग्रह यानि ड्वार्फ प्लेनेट्स भी हैं। प्लूटो ग्रह की परिभाषा पर खरा नहीं उतरा और इंटरनेशनल एस्ट्रोनॉमिकल यूनियन ने प्लूटो को ग्रह का दर्जा दिए जाने को एतिहासिक भूल मानते हुए प्लूटो को ड्वार्फ प्लेनेट ( Dwarf Planet ) यानि बौने ग्रह का दर्जा दिया। इस तरह हमारा सौरमंडल एकबार फिर तय किया गया और अंतिम रूप से घोषित किया गया कि हमारे सौरमंडल में ग्रहों की संख्या 9 नहीं बल्कि 8 है। आईएयू ने प्लूटो का नया नाम 134340 रखा है और पहली बार ग्रह की ऐसी परिभाषा तय की गई है, जिसमें ग्रहों के चयन को लेकर साफ-साफ बात कही गई है। ग्रह की नयी परिभाषा में सौरमंडल के किसी पिंड के ग्रह होने के लिए तीन मानक तय किए गए हैं, इसके मुताबिक -- (1) ऐसा ठोस अंतरिक्ष पिंड जो इतना बड़ा ज़रूर हो कि अपने गुरुत्व बल के कारण इसका आकार लगभग गोलाकार हो जाए। (2) सूर्य की परिक्रमा करता हो। (3) इसमें इतना ज़ोर हो कि ये बाक़ी पिंडों से अलग अपनी स्वतंत्र कक्षा बना सके, साथ ही, इसकी कक्षा पड़ोसी ग्रह के रास्ते में नहीं होनी चाहिए। इसमे तीसरी अपेक्षा पर प्लूटो खरा नहीं उतरता है, क्योंकि सूर्य की परिक्रमा के दौरान इसकी कक्षा पड़ोसी नेप्चून की कक्षा से टकराती ( काटती ) है।  

Revision as of 07:45, 30 January 2011

thumb|यम ग्रह
Pluto

  • रोमन मिथक कथाओं के अनुसार प्लूटो ( ग्रीक मिथक मे हेडस ) पाताल का देवता है। इस नाम के पीछे दो कारण है, एक तो यह कि सूर्य से काफी दूर होने की वजह से यह एक अंधेरा ग्रह ( पाताल ) है, दूसरा यह कि प्लूटो का नाम PL से शुरू होता है जो इसके अन्वेषक पर्सीयल लावेल के आद्याक्षर है।
  • प्लूटो ( अंग्रेज़ी में Pluto ) की खोज की एक लम्बी कहानी है। कुछ गणनाओ के आधार पर युरेनस और नेप्च्यून की गति मे एक विचलन पाया जाता था। इस आधार पर एक ‘क्ष’ ग्रह ( Planet X ) कि भविष्यवाणी की गयी थी, जिसके कारण युरेनस और नेपच्युन की गति प्रभावित हो रही थी। अंतरिक्ष विज्ञानी लावेल / क्लाइड टॉमबॉग इस ‘क्ष’ ग्रह की खोज मे आकाश छान मारा और 1930 मे प्लूटो खोज निकाला। लेकिन प्लूटो इतना छोटा निकला कि यह नेप्च्यून और युरेनस की गति पर कोई प्रभाव नही डाल सकता है। ‘क्ष’ ग्रह की खोज जारी रही। बाद मे वायेजर 2 से प्राप्त आकडो से जब नेप्च्यून और युरेनस की गति की गणना की गयी तब यह विचलन नही पाया गया। इस तरह ‘क्ष’ ग्रह की सारी संभावनाये समाप्त हो गयी।
  • नयी खोजों से अब हम जानते है कि प्लूटो के बाद भी सूर्य की परिक्रमा करने वाले अनेक पिंड है लेकिन उनमें कोई भी इतना बड़ा नही है जिसे ग्रह का दर्जा दिया जा सके। इसका एक उदाहरण हाल ही मेखोज निकाला गया बौना ग्रह जेना है।
  • प्लूटो सामान्यतः नेप्च्यून की कक्षा के बाहर सूर्य की परिक्रमा करता है लेकिन इसकी कक्षा नेप्च्यून की कक्षा के अंदर से होकर गुजरती है। जनवरी 1979 से फरवरी 1999 तक इसकी कक्षा नेप्च्यून की कक्षा के अंदर थी। यह अन्य ग्रहों के विपरीत दिशा मे सूर्य की परिक्रमा करता है। इसका घूर्णन अक्ष भी युरेनस की तरह इसके परिक्रमा प्रतल से लंबवत है, दूसरे शब्दों मे यह भी सूर्य की परिक्रमा लुढकते हुये करता है। इसकी कक्षा की एक और विशेषता यह है कि इसकी कक्षा अन्य ग्रहों की कक्षा के प्रतल से लगभग 15 अंश के कोण पर है।
  • इसकी और नेप्च्यून के चन्द्रमा ट्राइटन की असामान्य कक्षाओं के कारण इन दोनो मे किसी ऐतिहासिक रिश्ते का अनुमान है। एक समय यह भी अनुमान लगाया गया था कि प्लूटो नेप्च्यून का भटका हुआ चन्द्रमा है। एक अन्य अनुमान यह है कि ट्राइटन यह प्लूटो की तरह स्वतंत्र था लेकिन बाद मे नेप्च्यून के गुरुत्वाकर्षण की चपेट मे आ गया।
  • प्लूटो तक अभी तक कोई अंतरिक्ष यान नही गया है। एक यान 'न्यू हारीझोंस' जिसे जनवरी 2006 मे छोड़ा गया है लगभग 2015 तक प्लूटो तक पहुंचेगा।
  • प्लूटो पर तापमान -235 सेल्सीयस और -210 सेलसीयस के मध्य रहता है। इसकी सरंचना अभी तक ज्ञात नही है। इसका घनत्व 2 ग्राम / घन सेमी होने से अनुमान है कि इसका 70% भाग सीलीका और 30% भाग पानी की बर्फ से बना होनी चाहिये। सतह पर हाइड्रोजन, मिथेन, इथेन और कार्बन मोनोक्साईड की बर्फ का संभावना है।
  • प्लूटो के तीन उपग्रह भी है, शेरॉन, निक्स और हायड्रा निक्स का व्यास लगभग 60 किमी और हायड्रा का व्यास लगभग 200 किमी अनुमानित है जबकि प्लूटो का व्यास 2274 किमी अनुमानित है।
  • सौरमंडल के अंतिम छोर पर मौजूद बर्फीला दुनिया प्लूटो हैं । प्लूटो के वातावरण के बारे में बेहद महत्वपूर्ण जानकारियां सामने आई हैं। हमें पहली बार प्लूटो के वातावरण की झलक मिली है। प्लूटो का वायुमंडल मीथेन से भरपूर है, जैसे कि पृथ्वी का वातावरण ऑक्सीजन से। प्लूटो के वायुमंडल में मीथेन के साथ नाइट्रोजन और कार्बन मोनो ऑक्साइड के कुछ अंश भी मौजूद हैं। खास बात ये कि प्लूटो की जमीन के मुकाबले वातावरण का तापमान 40 डिग्री ज्यादा है। लेकिन इसके बावजूद प्लूटो एक ऐसी दुनिया है जो डीप फ्रिज जैसे हालात में है। यहां का सरफेस टेम्परेचटर शून्य से 220 डिग्री सेंटीग्रेड नीचे है। प्लूटो के वातावरण की ये नई झलक दिखाई है चिली में मौजूद ला-सिला-पैरानल ऑब्जरवेटरी के यूरोपियन ऑर्गेनाईजेशन फॉर एस्ट्रोनॉमिकल रिसर्च इन द साउदर्न हेमिस्फियर सेंटर ने।

प्लूटो का ग्रह से बौने ग्रह बनने का सफर

  • प्लूटो सूर्य का नौंवा ग्रह हुआ करता था लेकिन वैज्ञानिकों ने ग्रह का दर्जा छीन लिया है और अब हमारे सौरमंडल में नौ के बजाय सिर्फ आठ ग्रह -- बुध, शुक्र, पृथ्वी, मंगल, बृहस्पति, शनि, यूरेनस और नेपच्यून ही ग्रह रह गए हैं। यह इतना छोटा है कि सौरमंडल के सात चन्द्रमा ( हमारे चन्द्रमा सहित ) इससे बड़े है। प्लूटो से बड़े अन्य चन्द्रमा है, गुरु के चन्द्रमा आयो, युरोपा, गीनीमेड और कैलीस्टो; शनि का चन्द्रमा टाइटन और नेप्च्यून का ट्राइटन। इसकी कक्षा का वृत्ताकार नहीं होना। वरुण की कक्षा को काटना। इस वजह से इसे ग्रह का दर्जा देना हमेशा विवादों के घेरे मे रहा।
  • 1930 में प्लूटो की खोज से लेकर अगस्त 2006 तक अर्थात 76 वर्ष तक इसे हमारे सौरमंडल का नौवां ग्रह होने का गौरव हासिल था। लेकिन 24 अगस्त 2006 को इससे वो गौरव छीन लिया गया। सभी ग्रहों, चंद्रमाओं और दूसरे आसमानी पिंडों की परिभाषाएं तय करने और उनके नाम निर्धारित करने वाली अतंरराष्ट्रीय अंतरिक्ष विज्ञान संघ ( आई. ए. यू. / इंटरनेशनल एस्ट्रोनॉमिकल यूनियन ) की चेक गणराज्य की राजधानी प्राग के बैठक में अगस्त 2006 में दुनियाभर 75 देशों के 2500 वैज्ञानिकों के साथ मिलकर बहस छेड़ी कि आखिर किसे हम ग्रह मानें और किसे नहीं? इस बहस की वजह ये थी कि सौरमंडल के बाहर लगातार नए पिंड खोजे जा रहे थे और ये तय करना बेहद जरूरी हो गया था कि आखिर एक ग्रह की परिभाषा क्या हो ? ग्रहों की परिभाषा को तय करने की ये बहस एक हफ्ते तक चली और इस बहस में एक मौका ये भी आया कि हमारा चंद्रमा भी ग्रह के ओहदे का दावेदार बन गया। इस बहस का अंत ड्वार्फ प्लेनेट्स यानि छुद्र ग्रहों के एक नए वर्ग के साथ हुआ। ये स्वीकार किया गया कि हमारे सौरमंडल में ग्रह और चंद्रमाओं के साथ बौने ग्रह यानि ड्वार्फ प्लेनेट्स भी हैं। प्लूटो ग्रह की परिभाषा पर खरा नहीं उतरा और इंटरनेशनल एस्ट्रोनॉमिकल यूनियन ने प्लूटो को ग्रह का दर्जा दिए जाने को एतिहासिक भूल मानते हुए प्लूटो को ड्वार्फ प्लेनेट ( Dwarf Planet ) यानि बौने ग्रह का दर्जा दिया। इस तरह हमारा सौरमंडल एकबार फिर तय किया गया और अंतिम रूप से घोषित किया गया कि हमारे सौरमंडल में ग्रहों की संख्या 9 नहीं बल्कि 8 है। आईएयू ने प्लूटो का नया नाम 134340 रखा है और पहली बार ग्रह की ऐसी परिभाषा तय की गई है, जिसमें ग्रहों के चयन को लेकर साफ-साफ बात कही गई है। ग्रह की नयी परिभाषा में सौरमंडल के किसी पिंड के ग्रह होने के लिए तीन मानक तय किए गए हैं, इसके मुताबिक -- (1) ऐसा ठोस अंतरिक्ष पिंड जो इतना बड़ा ज़रूर हो कि अपने गुरुत्व बल के कारण इसका आकार लगभग गोलाकार हो जाए। (2) सूर्य की परिक्रमा करता हो। (3) इसमें इतना ज़ोर हो कि ये बाक़ी पिंडों से अलग अपनी स्वतंत्र कक्षा बना सके, साथ ही, इसकी कक्षा पड़ोसी ग्रह के रास्ते में नहीं होनी चाहिए। इसमे तीसरी अपेक्षा पर प्लूटो खरा नहीं उतरता है, क्योंकि सूर्य की परिक्रमा के दौरान इसकी कक्षा पड़ोसी नेप्चून की कक्षा से टकराती ( काटती ) है।
  • आईएयू वैज्ञानिकों का यह सम्मेलन जब शुरू हुआ, तो कहा जा रहा था कि सीरीस, कैरन और 2003 यूबी - 313 को भी ग्रह माना जा सकता है। ऐसा होता तो हमारे सौरमंडल में एक दर्जन ग्रह हो जाते। इनमें से कैरन प्लूटो का चंद्रमा है। लेकिन इसके बाद करीब 12 और अंतरिक्ष पिंडों को ग्रह का दर्जा देने की दावेदारी की जा सकती थी। आखिरकार 75 देशों के वैज्ञानिकों ने जो परिभाषा चुनी इससे यह सारा विवाद ही खत्म हो गया है। आईएयू विशेषज्ञों के बीच कराए गए मतदान में अधिकांश ने प्लूटो को ग्रह मानने से इंकार कर दिया था और ग्रहों की संख्या बढ़ा कर 12 करने और तीन झुद्रग्रहों सेरेस, चैरन और 2003 यूबी 313 को इनमें शामिल करने के प्रस्ताव का जम कर विरोध हुआ था। आईएयू की ग्रहों पर गठित विशेषज्ञ समिति की अगुआई कर रहे वैज्ञानिक इवान विलियम्स ने कहा, "मेरी आँखों में आज आँसू छलक पड़े हैं. हाँ, पर हमें तो सौरमंडल की वास्तविकता बतानी होगी न कि हम जैसा चाहते हैं वो बताएँ।" कैंब्रिज के 'इंस्टीट्यूट ऑफ एस्ट्रोनामी' से संबद्ध रॉबिन कैचपॉल का कहना था, "मेरी अपनी राय तो ये थी कि पुरानी व्यवस्था को यथावत रखा जाए, लेकिन नए ग्रहों को शामिल करने का मतलब था और भ्रम की स्थिति कायम करना।"
  • प्लूटो की स्थिति को लेकर चल रहा विवाद दशकों पुराना है और इसकी शुरुआत तब हुई जब यह पता चला कि प्लूटो सौर मंडल के बाकी आठ ग्रहों की तुलना में काफ़ी छोटा है और अपने आकार और सूर्य से दूरी की वजह से इस पर वैज्ञानिकों को ऐतराज रहा। कई खगोलविद प्लूटो को ग्रह मानने से इनकार करते हैं और उनका मानना है कि यह 'कुइपर बेल्ड' के पिंडों में से एक हो सकता है। इस बात को और तूल दिया कैलिफ़ोर्निया के खगोलशास्त्रियों ने जिनकी खोज ने सौरमंडल में प्लूटो को ग्रह के रूप में रखे जाने पर सवाल उठा दिए। तीन वर्ष पहले हुए इस शोध में पहली बार इस बात को सामने लाया गया कि सौरमंडल में सूर्य की परिक्रमा करने वाले कुछ खगोलीय पिंडों का आकार प्लूटो से बड़ा है।
  • वैसे यह पहला मौका नहीं है जब किसी से ग्रह का दर्जा छीना गया है। इससे पहले, 1801 में जब सीरीस को पहली बार खोजा गया था, तो उसे ग्रह के तौर पर लिया गया। लेकिन बाद में जब उसके आकार के बारे में विस्तार से पता चला, तो वह ग्रह नहीं रहा। उसे ऐस्टरॉयड और तारे जैसा पिंड भर मान लिया गया। इस बार अंतर यह है कि वैज्ञानिकों ने एक स्पष्ट परिभाषा तय की है, जिसके आधार पर ही ग्रह का दर्जा तय होगा। अब प्लूटो ग्रह नहीं रहने की सूरत में दुनिया भर के शैक्षिक संस्थानों में भौतिकी की क़िताब में संशोधन करना पड़ेगा क्योंकि अब तक बच्चों को ग्रहों के नौ नाम बताए जाते रहे हैं।


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