चीवर: Difference between revisions
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*चीवर पहले वस्त्र का एक छोटा टुकड़ा होता था। वैराग्य और त्याग के सिद्धांतो के कारण से, परिव्राजक निजी उपभोग के लिए जितना हो सके कम से कम सांसारिक वस्तुओं पर निर्भर रहने का प्रयास करते थे। इसीलिए सिले हुए वस्त्र पहनने जैसी विलासिता भी वे नहीं दिखाते थे। | *चीवर पहले वस्त्र का एक छोटा टुकड़ा होता था। वैराग्य और त्याग के सिद्धांतो के कारण से, परिव्राजक निजी उपभोग के लिए जितना हो सके कम से कम सांसारिक वस्तुओं पर निर्भर रहने का प्रयास करते थे। इसीलिए सिले हुए वस्त्र पहनने जैसी विलासिता भी वे नहीं दिखाते थे। | ||
*वस्त्र के छोटे टुकड़े को ही कंधे से उपर गर्दन की पीछे से गठान बांध कर लटका लिया जाता था जो भिक्षुकों के घुटनों तक शरीर को ढक लेता था। यही चीवर कहलाता था। [[बुद्ध]] की मूर्तियों में यही चीवर परिलक्षित होता है। | *वस्त्र के छोटे टुकड़े को ही कंधे से उपर गर्दन की पीछे से गठान बांध कर लटका लिया जाता था जो भिक्षुकों के घुटनों तक शरीर को ढक लेता था। यही चीवर कहलाता था। [[बुद्ध]] की मूर्तियों में यही चीवर परिलक्षित होता है। | ||
==संबंधित लेख== | |||
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Revision as of 10:01, 13 February 2011
[[चित्र:Buddha-3.jpg|पारदर्शी चीवर धारण किए हुए बुद्ध
भिक्षु यशदिन्न द्वारा निर्मित स्थापित बुद्ध प्रतिमा, मथुरा
Buddha|thumb|200px]]
- संस्कृत में चीवर शब्द प्रायः साधु-सन्यासियों और भिक्षुकों के परिधान को कहते हैं।
- चीवर पहले वस्त्र का एक छोटा टुकड़ा होता था। वैराग्य और त्याग के सिद्धांतो के कारण से, परिव्राजक निजी उपभोग के लिए जितना हो सके कम से कम सांसारिक वस्तुओं पर निर्भर रहने का प्रयास करते थे। इसीलिए सिले हुए वस्त्र पहनने जैसी विलासिता भी वे नहीं दिखाते थे।
- वस्त्र के छोटे टुकड़े को ही कंधे से उपर गर्दन की पीछे से गठान बांध कर लटका लिया जाता था जो भिक्षुकों के घुटनों तक शरीर को ढक लेता था। यही चीवर कहलाता था। बुद्ध की मूर्तियों में यही चीवर परिलक्षित होता है।