असिकुण्ड तीर्थ मथुरा: Difference between revisions

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#मंगलमयी लांगली, इन चार मूर्तियों के साथ जो व्यक्ति असिकुण्ड में स्नान करते है, उन्हें चारों तरफ से घिरा हुआ, [[पृथ्वी देवी|पृथ्वी]] की परिक्रमा एंव [[मथुरा]] के समस्त तीर्थों के दर्शन लाभ का फल प्राप्त होता है।


==इतिहास==
==इतिहास==

Revision as of 05:51, 2 May 2010

असिकुण्ड तीर्थ / Asikund Tirth
एका वराहसंज्ञा च तथा नारायणी परा ।
वामना च तृतीया वै चतुर्थी लांगली शुभा ॥
एताश्चस्त्रो य: पश्येत् स्नात्वा कुण्डेSसिसंज्ञके ।
चतु: सागरपर्यान्ता क्रानता तेन धरा ध्रुवम् ।
तीर्थानां माथुराणाञच सर्वेषां फलमश्नुते ॥

  1. श्रीवाराह,
  2. श्रीनारायण,
  3. श्रीवामन,
  4. मंगलमयी लांगली, इन चार मूर्तियों के साथ जो व्यक्ति असिकुण्ड में स्नान करते है, उन्हें चारों तरफ से घिरा हुआ, पृथ्वी की परिक्रमा एंव मथुरा के समस्त तीर्थों के दर्शन लाभ का फल प्राप्त होता है।

इतिहास

दुष्ट राजा विमाति का वध करने हेतु भगवान विष्णु ने वराह रूप धारण किया था । उसी दौरान उनकी पवित्र तलवार जिसका नाम ‘असि’ था धरती पर गिरी । अतः यह घाट उसी स्थान का संकेत देता है व इसका नाम भी उसी तलवार के नाम से प्रेरित है ।

वास्तु

यहाँ अब बारजे और दो बुर्ज मात्र ही बचे हैं । इसे बनाने में लखोरी ईंट व चूने, लाल एवं बलुआ पत्थर का इस्तेमाल किया गया है ।

अन्य लिंक

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