बदनचन्द्र: Difference between revisions

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  • बदनचन्द्र गोहाटी का 1810 ई. से 1820 ई. तक बड़ फ़ूकन (सूबेदार) था।
  • उसने प्रजा का बड़ी निर्दयता से दमन किया और जबरन धन वसूला।
  • अन्त में स्थिति यहाँ तक पहुँची कि बड़ा गोहाई (प्रधान मंत्री) पूर्णानन्द ने, जिसके पुत्र के साथ बदनचन्द्र की लड़की का विवाह हुआ था, बदनचन्द्र को उसके पद से हटा दिया।
  • बदनचन्द्र को पकड़ने के लिए गौहाटी सिपाही भेजे गये। लेकिन बदनचन्द्र को अपनी पुत्री से इसकी सूचना पहले ही मिल गई थी और वह सैनिकों के पहुँचने से पहले ही वहाँ से भाग निकला।
  • बदनचन्द्र ने इसका बदला लेने का निश्चय किया। वह भाग कर कलकत्ता पहुँच गया।
  • कलकत्ता में उसने गवर्नर-जनरल लॉर्ड मिंटो से मिलकर आसाम में अंग्रेज़ी फ़ौज भेजने का अनुरोध किया। लेकिन मिंटो ने हस्तक्षेप करने से इनकार कर दिया।
  • इसके बाद बदनचन्द्र बर्मी शासक के दरबार में गया और उसे आसाम में बर्मी सेना भेजने के लिए राज़ी कर लिया।
  • इस प्रकार 1816 ई. में बर्मी सेना आसाम पर हमला करते हुए जोरहाट तक बढ़ गई और गौहाटी में बदनचन्द्र को फिर से सूबेदार बना दिया।
  • इसी बीच पूर्णानन्द की मृत्यु हो गई और बदनचन्द्र ने बर्मी सेना को आसाम से लौट जाने के लिए राज़ी कर लिया और उसे हर्जाने के रूप में भारी भरकम रक़म अदा की।
  • ऐसी सफलता पाने के बाद बदनचन्द्र अंहकारी और निरंकुश हो गया था।
  • उसने अहोम राजा की माता और अनेक सरदारों को अपना विरोधी बना लिया।
  • बाद के दिनों में अपने विरोधियों की शह पाकर बदनचन्द्र की हत्या कर दी गई।
  • उसने जो नीति अपनाई थी, उसके फलस्वरूप 1819 ई. में बर्मिया ने आसाम को विजय करके उसे अपने राज्य में मिला लिया।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ