हिमाद्रि तुंग श्रृंग से: Difference between revisions
Jump to navigation
Jump to search
[unchecked revision] | [unchecked revision] |
No edit summary |
शिल्पी गोयल (talk | contribs) No edit summary |
||
Line 22: | Line 22: | ||
==बाहरी कड़ियाँ== | ==बाहरी कड़ियाँ== | ||
*[http://www.youtube.com/watch?v=eKljP13FZJY हिमाद्रि तुंग श्रृंग से] | *[http://www.youtube.com/watch?v=eKljP13FZJY हिमाद्रि तुंग श्रृंग से] | ||
==संबंधित लेख== | |||
*[[अरुण यह मधुमय देश हमारा]] | |||
__INDEX__ | __INDEX__ | ||
[[Category:कविता]] | [[Category:कविता]] |
Revision as of 13:19, 24 May 2011
प्रसिद्ध साहित्यकार जयशंकर प्रसाद के नाटक चंद्रगुप्त के छठे दृश्य में यह वीर रस का प्रेरणादायक गीत है। जो भारत में बहुत प्रसिद्ध है यह अक्सर विद्यालयों में समूह गान के रूप में गाया जाता है।
हिमाद्री तुंग श्रृंग से,
प्रबुद्ध शुद्ध भारती।
स्वयं प्रभो समुज्ज्वला,
स्वतंत्रता पुकारती॥
अमर्त्य वीर पुत्र हो, दृढ प्रतिज्ञा सोच लो।
प्रशस्त पुण्य पंथ है, बढ़े चलो बढ़े चलो॥
असंख्य कीर्ति रश्मियाँ,
विकीर्ण दिव्य दाह-सी।
सपूत मातृभूमि के,
रुको न शूर साहसी॥
अराती सैन्य सिन्धु में, सुवाढ़ वाग्नी से जलो।
प्रवीर हो जयी बनो, बढ़े चलो बढ़े चलो॥[1]
|
|
|
|
|