सत्यभामा: Difference between revisions

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
Jump to navigation Jump to search
[unchecked revision][unchecked revision]
m (Text replace - "सूर्य" to "सूर्य")
No edit summary
Line 1: Line 1:
'''सत्यभामा / Satyabhama'''


==सत्यभामा / Satyabhama==
*सत्यभामा, राजा [[सत्राजित]] की पुत्री व [[कृष्ण|श्रीकृष्ण]] की तीन महारानियों में से एक हैं।
*सत्यभामा, राजा [[सत्राजित]] की पुत्री व [[कृष्ण|श्रीकृष्ण]] की तीन महारानियों में से एक हैं।
*सत्राजित [[सूर्य देवता|सूर्य]] का भक्त था। उसे सूर्य ने [[स्यमंतक मणि]] प्रदान की थी। मणि अत्यंत चमकीली तथा प्रतिदिन आठ भार (तोल माप) स्वर्ण प्रदान करती थी।  
*सत्राजित [[सूर्य देवता|सूर्य]] का भक्त था। उसे सूर्य ने [[स्यमंतक मणि]] प्रदान की थी। मणि अत्यंत चमकीली तथा प्रतिदिन आठ भार (तोल माप) स्वर्ण प्रदान करती थी।  

Revision as of 12:58, 27 April 2010

सत्यभामा / Satyabhama

  • सत्यभामा, राजा सत्राजित की पुत्री व श्रीकृष्ण की तीन महारानियों में से एक हैं।
  • सत्राजित सूर्य का भक्त था। उसे सूर्य ने स्यमंतक मणि प्रदान की थी। मणि अत्यंत चमकीली तथा प्रतिदिन आठ भार (तोल माप) स्वर्ण प्रदान करती थी।
  • कृष्ण ने सत्राजित से कहा कि वह मणि उग्रसेन को प्रदान कर दे, किंतु वह नहीं माना। एक दिन सत्राजित का भाई प्रसेन उस मणि को धारण कर शिकार खेलने चला गया।
  • दीर्घकाल तक उसके वापस न आने पर सत्राजित को लगा कि कृष्ण ने उसे मारकर मणि हस्तगत कर ली होगी। ऐसी कानाफूसी सुनकर कृष्ण को बहुत बुरा लगा। वे प्रसेन को ढूंढ़ते स्वयं जंगल गये। प्रसेन और घोड़े को मरा देख तथा उसके पास ही सिंह के पैरों के निशान देखकर उन लोगों ने अनुमान लगाया कि उसे शेर ने मार डाला है। तदनंतर सिंह के पैरों के निशानों का अनुगमन कर ऐसे स्थान पर पहुंचे जहां शेर मरा पड़ा था तथा रीछ के पांव के निशान थे। वे निशान उन्हें एक अंधेरी गुफ़ा तक ले गये।
  • वह ऋक्षराज जांबवान की गुफ़ा थीं कृष्ण अकेले ही उसमें घुसे तो देखा कि एक बालक स्यमंतक मणि से खेल रहा है। अनजान व्यक्ति को देखकर बालक की धाय ने शोर मचाया। जांबवान ने वहां पहुंचकर कृष्ण से युद्ध आरंभ कर दिया।
  • कालांतर में कृष्ण को पहचानकर जांबवान वह मणि तो उन्हें भेंट कर ही दी, साथ-ही-साथ अपनी कन्या जांबवती का विवाह भी कृष्ण से कर दिया। उग्रसेन की सभा में पहुंचकर कृष्ण ने सत्राजित को बुलवाकर मणि लौटा दी, साथ ही उसे प्राप्त करने में घटित समस्त घटनाएं भी सुना दीं। सत्राजित अत्यंत लज्जित हो गया। उसने अपनी पुत्री सत्यभामा का विवाह कृष्ण से कर दिया, साथ ही वह मणि भी देनी चाही। कृष्ण ने कहा कि सत्राजित सूर्य का मित्र है तथा वह मित्र की भेंट है। अत वही उस मणि को अपने पास रखे, किंतु उससे उत्पन्न हुआ स्वर्ण उग्रसेन को दे दिया करे।<balloon title="श्रीमद् भागवत, 10।56," style=color:blue>*</balloon>