लघु उद्योग: Difference between revisions
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[[भारतीय अर्थव्यवस्था]] में लघु एवं कुटीर उद्योगों का अत्यंत महत्त्वपूर्ण स्थान रहा है। प्राचीन काल से ही [[भारत]] के लघु व कुटीर उद्योगों में उत्तम गुणवत्ता वाली वस्तुओं का उत्पादन होता रहा है। यद्यपि ब्रिटिश शासन में अन्य भारतीय उद्योगों के समान इस क्षेत्र का भी भारी ह्रास हुआ था, परंतु स्वतंत्रता के पश्चात इसका अत्यधिक तीव्र गति से विकास हुआ है। सरकार ने समय-समय पर लघु तथा कुटीर उद्योगों की परिभाषा की है। लघु उद्योग वे उद्योग हैं जो छोटे पैमाने पर किये जाते हैं तथा सामान्य रूप से मजदूरों व श्रमिकों की सहायता से मुख्य धन्धे के रूप में चलाए जाते हैं। वे उद्योग जिनमें 10 से 50 लोग मजदूरी के बदले में काम करते हो, लघु उद्योग के अंतर्गत आते हैं। लघु उद्योग एक औद्योगिक उपक्रम हैं जिसमें निवेश संयंत्र एवं मशीनरी में नियत परिसंपत्ति होती है। यह निवेश सीमा सरकार द्वारा समय-समय पर बदलता रहता है। लघु उद्योग में माल बाहर से मंगाया जाता है और तकनीकी कुशलता को भी बाहर से प्राप्त किया जा सकता है। | [[भारतीय अर्थव्यवस्था]] में लघु एवं कुटीर उद्योगों का अत्यंत महत्त्वपूर्ण स्थान रहा है। प्राचीन काल से ही [[भारत]] के लघु व कुटीर उद्योगों में उत्तम गुणवत्ता वाली वस्तुओं का उत्पादन होता रहा है। यद्यपि ब्रिटिश शासन में अन्य भारतीय उद्योगों के समान इस क्षेत्र का भी भारी ह्रास हुआ था, परंतु स्वतंत्रता के पश्चात इसका अत्यधिक तीव्र गति से विकास हुआ है। सरकार ने समय-समय पर लघु तथा कुटीर उद्योगों की परिभाषा की है। लघु उद्योग वे उद्योग हैं जो छोटे पैमाने पर किये जाते हैं तथा सामान्य रूप से मजदूरों व श्रमिकों की सहायता से मुख्य धन्धे के रूप में चलाए जाते हैं। वे उद्योग जिनमें 10 से 50 लोग मजदूरी के बदले में काम करते हो, लघु उद्योग के अंतर्गत आते हैं। लघु उद्योग एक औद्योगिक उपक्रम हैं जिसमें निवेश संयंत्र एवं मशीनरी में नियत परिसंपत्ति होती है। यह निवेश सीमा सरकार द्वारा समय-समय पर बदलता रहता है। लघु उद्योग में माल बाहर से मंगाया जाता है और तकनीकी कुशलता को भी बाहर से प्राप्त किया जा सकता है। | ||
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भारत जैसे विकासशील देश में देश के आर्थिक विकास में लघु उद्योगों की महत्त्वपूर्ण भूमिका है। देश का औद्योगिक उत्पादन, निर्यात, रोजगार और उद्यम संबंधी आधार सृजन में लिए उनके योगदान के आधार पर भारतीय अर्थव्यवस्था के महत्त्वपूर्ण खण्ड हैं। मोटे तौर पर ये उद्योग अर्थव्यवस्था के पारम्परिक अवस्था से प्रौद्योगिकीय अवस्था में पारगमन को प्रदर्शित करते हैं। उद्यम आधार के विस्तार के लिए लघु उद्योग महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। लघु उद्योगों का विकास उद्योग के विस्तृत आधार का स्वामित्व प्राप्त करने, उद्यम का अपविस्तार और औद्योगिक क्षेत्र में पहल करने के लिए सरल और प्रभावी साधन प्रदान करता है। उनके महत्त्व के कारण पहली पंचवर्षीय योजना से ही सरकारी नीति ढाँचा ने [[भारत]] के समग्र आर्थिक विकास में कार्यनीति महत्त्व को ध्यान में रखते हुए लघु उद्योग क्षेत्र के विकास के लिए आवश्यकता पर विशेष बल दिया है। तदानुसार लघु उद्योगों के लिए सरकार से नीति समर्थन की प्रवृत्ति लघु उद्यम वर्ग के विकास हेतु सहायक और अनुकूल रही है। सरकार उपयुक्त नीतियाँ बनाकर और क्रियान्वित करने एवं संवर्धनात्मक योजनाओं के जरिए लघु उद्योगों के विकास को सबसे अधिक तरजीह देती है। | भारत जैसे विकासशील देश में देश के आर्थिक विकास में लघु उद्योगों की महत्त्वपूर्ण भूमिका है। देश का औद्योगिक उत्पादन, निर्यात, रोजगार और उद्यम संबंधी आधार सृजन में लिए उनके योगदान के आधार पर भारतीय अर्थव्यवस्था के महत्त्वपूर्ण खण्ड हैं। मोटे तौर पर ये उद्योग अर्थव्यवस्था के पारम्परिक अवस्था से प्रौद्योगिकीय अवस्था में पारगमन को प्रदर्शित करते हैं। उद्यम आधार के विस्तार के लिए लघु उद्योग महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। लघु उद्योगों का विकास उद्योग के विस्तृत आधार का स्वामित्व प्राप्त करने, उद्यम का अपविस्तार और औद्योगिक क्षेत्र में पहल करने के लिए सरल और प्रभावी साधन प्रदान करता है। उनके महत्त्व के कारण पहली पंचवर्षीय योजना से ही सरकारी नीति ढाँचा ने [[भारत]] के समग्र आर्थिक विकास में कार्यनीति महत्त्व को ध्यान में रखते हुए लघु उद्योग क्षेत्र के विकास के लिए आवश्यकता पर विशेष बल दिया है। तदानुसार लघु उद्योगों के लिए सरकार से नीति समर्थन की प्रवृत्ति लघु उद्यम वर्ग के विकास हेतु सहायक और अनुकूल रही है। सरकार उपयुक्त नीतियाँ बनाकर और क्रियान्वित करने एवं संवर्धनात्मक योजनाओं के जरिए लघु उद्योगों के विकास को सबसे अधिक तरजीह देती है। | ||
लघु उद्योगों के लिए सरकार की सबसे महत्त्वपूर्ण संवर्धनात्मक नीति कर रियायत और उत्पादों एवं लाभों पर लगाए गए प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष कर से छूट देने के रूप में राजकोषीय प्रोत्साहन है।<ref>{{cite web |url=http://business.gov.in/hindi/manage_business/small_scale_industries.php |title=लघु उद्योग |accessmonthday=[[5 अप्रॅल]] |accessyear=[[2011]] |last= |first= |authorlink= |format= |publisher=व्यापार ज्ञान संसाधन |language=[[हिन्दी]] }}</ref> | लघु उद्योगों के लिए सरकार की सबसे महत्त्वपूर्ण संवर्धनात्मक नीति कर रियायत और उत्पादों एवं लाभों पर लगाए गए प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष कर से छूट देने के रूप में राजकोषीय प्रोत्साहन है।<ref>{{cite web |url=http://business.gov.in/hindi/manage_business/small_scale_industries.php |title=लघु उद्योग |accessmonthday=[[5 अप्रॅल]] |accessyear=[[2011]] |last= |first= |authorlink= |format= |publisher=व्यापार ज्ञान संसाधन |language=[[हिन्दी]] }}</ref> | ||
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Revision as of 10:27, 20 June 2011
भारतीय अर्थव्यवस्था में लघु एवं कुटीर उद्योगों का अत्यंत महत्त्वपूर्ण स्थान रहा है। प्राचीन काल से ही भारत के लघु व कुटीर उद्योगों में उत्तम गुणवत्ता वाली वस्तुओं का उत्पादन होता रहा है। यद्यपि ब्रिटिश शासन में अन्य भारतीय उद्योगों के समान इस क्षेत्र का भी भारी ह्रास हुआ था, परंतु स्वतंत्रता के पश्चात इसका अत्यधिक तीव्र गति से विकास हुआ है। सरकार ने समय-समय पर लघु तथा कुटीर उद्योगों की परिभाषा की है। लघु उद्योग वे उद्योग हैं जो छोटे पैमाने पर किये जाते हैं तथा सामान्य रूप से मजदूरों व श्रमिकों की सहायता से मुख्य धन्धे के रूप में चलाए जाते हैं। वे उद्योग जिनमें 10 से 50 लोग मजदूरी के बदले में काम करते हो, लघु उद्योग के अंतर्गत आते हैं। लघु उद्योग एक औद्योगिक उपक्रम हैं जिसमें निवेश संयंत्र एवं मशीनरी में नियत परिसंपत्ति होती है। यह निवेश सीमा सरकार द्वारा समय-समय पर बदलता रहता है। लघु उद्योग में माल बाहर से मंगाया जाता है और तकनीकी कुशलता को भी बाहर से प्राप्त किया जा सकता है।
पुरानी परिभाषा
- लघु उद्योग
लघु उद्योग इकाई ऐसा औद्योगिक उपक्रम है जहाँ संयंत्र एवं मशीनरी में निवेश 1 करोड़ रुपए से अधिक न हो, किन्तु कुछ मद जैसे कि हौजरी, हस्त-औजार, दवाइयों व औषधि, लेखन सामग्री मदें और खेलकूद का सामान आदि में निवेश की सीमा 5 करोड़ रु. तक थी। लघु उद्योग श्रेणी को नया नाम लघु उद्यम दिया गया है।
- मझौले उद्यम
ऐसी इकाई जहाँ संयंत्र और मशीनरी में निवेश लघु उद्योग की सीमा से अधिक किंतु 10 करोड़ रु. तक हो, मझौला उद्यम कहा जाता है।
संशोधित परिभाषा
2 अक्टूबर, 2006 से प्रभावी छोटे, लघु एवं मझौले उपक्रम विकास अधिनियम, 2006 उद्यमों के लिए तीन स्तरों अर्थात छोटे, लघु एवं मझौले के एकीकरण के लिए अपनी तरह की पहली कानूनी रूपरेखा विहित करता है। संशोधित परिभाषा के अंतर्गत उद्यमों को मुख्य रूप से दो श्रेणियों में विभक्त किया गया है जैसे:-
- विनिर्माण
- सेवाएँ
इन दोनों श्रेणियों को इसके अतिरिक्त संयंत्र एवं मशीनों में निवेश[1] अथवा उपस्करों[2] के आधार पर छोटे, लघु एवं मझौले उद्यमों के रूप में वर्गीकृत किया गया है।
विनिर्माण उद्यम
वस्तुओं का उत्पादन, संसाधन अथवा संरक्षण करने वाले उद्यम विनिर्माण उद्यम के अंतर्गत आते हैं जो निम्नलिखित हैं:-
छोटे उद्यम - छोटे उद्यम ऐसे उद्यम है जहाँ संयंत्र व मशीनरी में मूल निवेश 25 लाख रु. से अधिक न हो।
लघु उद्यम - लघु उद्यम ऐसे उद्यम है जहाँ संयंत्र व मशीनरी में मूल निवेश 25 लाख रु. से अधिक हो किंतु 5 करोड़ रु. से अधिक न हो।
मझौला उद्यम - मझौले उद्यम ऐसे उद्यम है जहाँ संयंत्र व मशीनरी में मूल निवेश 5 करोड़ रु. से अधिक हो किंतु 10 करोड़ रु. से अधिक न हो।
सेवा उद्यम
सेवाएँ प्रदान करने वाले अथवा सेवा करने वाले उद्यम जहाँ उपकरणों में निवेश निम्नानुसार हो:-
छोटे उद्यम - जहाँ संयंत्र व मशीनरी में मूल निवेश 10 लाख रु. से अधिक न हो ।
लघु उद्यम - जहाँ संयंत्र व मशीनरी में मूल निवेश 10 लाख रु. से अधिक हो किंतु 2 करोड़ से अधिक न हो।
मझौला उद्यम - ऐसा उद्यम है जहाँ संयंत्र व मशीनरी में मूल निवेश 2 करोड़ रु. से अधिक हो किंतु 5 करोड़ रु. से अधिक न हो।[3]
पंजीकरण
लघु उद्योग क्षेत्र में उद्यमी को देश के किसी भी भाग में यूनिट की स्थापना करने के लिए केंद्रीय सरकार या राज्य सरकार से लाइसेंस प्राप्त करने की आवश्यकता नहीं होती हैं। लघु यूनिटों का पंजीकरण भी अनिवार्य नहीं है। परन्तु इसका राज्य निदेशालय या उद्योग आयुक्त या डीआईसी में पंजीकरण यूनिट को विभिन्न प्रकार की सरकारी सहायता लेने के लिए अर्हक बनाता है जैसे उद्योग विभाग से वित्तीय सहायता, राज्य वित्त निगम से और अन्य वाणिज्यिक बैंकों से मध्यकालीन और दीर्घकालीन ऋण राष्ट्रीय लघु उद्योग निगम से किराया ख़रीद के आधार पर मशीनरी आदि। लघु उद्योगों के संवर्धन के लिए विशेष योजनाओं जैसे ऋण गारंटी योजना, पूंजी आर्थिक सहायता, चुनिंदा मदों पर कम सीमा शुल्क, आईएसओ 9000 प्रमाणपत्र प्रतिपूर्ति एवं राज्य सरकार द्वारा दिए जाने वाले अनेकानेक दूसरे लाभों का लाभ प्राप्त करने के लिए पंजीकरण भी अनिवार्य रूप से आवश्यक है।
लघु उद्योग मंत्रालय
देश में लघु उद्योगों की वृद्धि और विकास के लिए नोडल एजेंसी के रूप में कार्य करता है। लघु उद्योगों का संवर्धन करने के लिए मंत्रालय नीतियाँ बनाता है और उन्हें क्रियान्वित करता है व उनकी प्रतिस्पर्धा बढ़ाता है। इसकी सहायता विभिन्न सार्वजनिक क्षेत्र के उद्यम करते हैं, जैसे :-
- लघु उद्योग विकास संगठन (एसआईडीओ) अपनी नीति का निर्माण करने और कार्यान्वयन का पर्यवेक्षण करने, कार्यक्रम, परियोजना, योजनाएँ बनाने में सरकार को सहायता करने वाले शीर्ष निकाय है।
- राष्ट्रीय लघु उद्योग निगम लिमिटेड (एनएसआईसी) की स्थापना सरकार द्वारा देश में लघु उद्योगों का संवर्धन, सहायता और पोषण करने की दृष्टि से की गई थी जिसका संकेन्द्रण उनके कार्यों के वाणिज्यिक पहलुओं पर था।
- मंत्रालय ने तीन राष्ट्रीय उद्यम विकास संस्थानों की स्थापना की है जो प्रशिक्षण केन्द्र, उपक्रम अनुसंधान और लघु उद्योग के क्षेत्र में उद्यम विकास के लिए प्रशिक्षण और परामर्श सेवाएं में लगी हुई हैं। ये इस प्रकार हैं :-
- असंगठित क्षेत्र में राष्ट्रीय उद्यम आयोग (एनसीईयूएस) का गठन असंगाठित क्षेत्र में उद्यमों की समस्याओं की जाँच करना अनिवार्य बनाने और उनसे निजात पाने के उपाय सुझाने की दृष्टि से किया गया है।
- भारतीय लघु उद्योग विकास बैंक (एसआईडीबीआई) विभिन्न ऋण योजनाओं के माध्यम से लघु उद्योगों का वित्त पोषण करने के लिए शीर्ष संस्था के रूप में कार्य करता है।
कराधान से संबंधित प्रावधान
भारत जैसे विकासशील देश में देश के आर्थिक विकास में लघु उद्योगों की महत्त्वपूर्ण भूमिका है। देश का औद्योगिक उत्पादन, निर्यात, रोजगार और उद्यम संबंधी आधार सृजन में लिए उनके योगदान के आधार पर भारतीय अर्थव्यवस्था के महत्त्वपूर्ण खण्ड हैं। मोटे तौर पर ये उद्योग अर्थव्यवस्था के पारम्परिक अवस्था से प्रौद्योगिकीय अवस्था में पारगमन को प्रदर्शित करते हैं। उद्यम आधार के विस्तार के लिए लघु उद्योग महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। लघु उद्योगों का विकास उद्योग के विस्तृत आधार का स्वामित्व प्राप्त करने, उद्यम का अपविस्तार और औद्योगिक क्षेत्र में पहल करने के लिए सरल और प्रभावी साधन प्रदान करता है। उनके महत्त्व के कारण पहली पंचवर्षीय योजना से ही सरकारी नीति ढाँचा ने भारत के समग्र आर्थिक विकास में कार्यनीति महत्त्व को ध्यान में रखते हुए लघु उद्योग क्षेत्र के विकास के लिए आवश्यकता पर विशेष बल दिया है। तदानुसार लघु उद्योगों के लिए सरकार से नीति समर्थन की प्रवृत्ति लघु उद्यम वर्ग के विकास हेतु सहायक और अनुकूल रही है। सरकार उपयुक्त नीतियाँ बनाकर और क्रियान्वित करने एवं संवर्धनात्मक योजनाओं के जरिए लघु उद्योगों के विकास को सबसे अधिक तरजीह देती है। लघु उद्योगों के लिए सरकार की सबसे महत्त्वपूर्ण संवर्धनात्मक नीति कर रियायत और उत्पादों एवं लाभों पर लगाए गए प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष कर से छूट देने के रूप में राजकोषीय प्रोत्साहन है।[4]
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
बाहरी कड़ियाँ