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1987-88 ई. में यह स्थल प्रकाश में आया। डीपाडीह के उत्खनन से प्राप्त सामग्रियों के अध्ययन से ज्ञात होता है कि डीपाडीह एक सांस्कृतिक गतिविधियों का केन्द्र था जहाँ नरेशों ने अपनी कलाप्रियता के उद्गार को अभिव्यक्त करने के लिए मूर्तिकला के माध्यम से मूर्तिशिल्प निर्माण को प्रश्रय दिया था। छत्तीसगढ़ में डीपाडीह एक ऐसा पुरातात्त्विक स्थल है, जहाँ उत्खनन से मन्दिरों का एक समूह प्राप्त हुआ है। मन्दिर 5 किमी. क्षेत्र में बिखरे पड़े हैं। इसके अवशेषों के अध्ययन से ज्ञात होता है कि ये सभी शैव मन्दिरों के समूह थे जो पूरे क्षेत्र में अलग-अलग ढंग से निर्मित किए गए होंगे। | 1987-88 ई. में यह स्थल प्रकाश में आया। डीपाडीह के उत्खनन से प्राप्त सामग्रियों के अध्ययन से ज्ञात होता है कि डीपाडीह एक सांस्कृतिक गतिविधियों का केन्द्र था जहाँ नरेशों ने अपनी कलाप्रियता के उद्गार को अभिव्यक्त करने के लिए मूर्तिकला के माध्यम से मूर्तिशिल्प निर्माण को प्रश्रय दिया था। छत्तीसगढ़ में डीपाडीह एक ऐसा पुरातात्त्विक स्थल है, जहाँ उत्खनन से मन्दिरों का एक समूह प्राप्त हुआ है। मन्दिर 5 किमी. क्षेत्र में बिखरे पड़े हैं। इसके अवशेषों के अध्ययन से ज्ञात होता है कि ये सभी शैव मन्दिरों के समूह थे जो पूरे क्षेत्र में अलग-अलग ढंग से निर्मित किए गए होंगे। | ||
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डीपाडीह/डीपराडीह
डीपाडीह एक ऐतिहासिक स्थान जो छत्तीसगढ़ राज्य में अम्बिका से 75 किमी की दूरी पर सामरी तहसील के अंतर्गत राजपुर-कुसमी मार्ग पर स्थित है।
उत्खनन
1987-88 ई. में यह स्थल प्रकाश में आया। डीपाडीह के उत्खनन से प्राप्त सामग्रियों के अध्ययन से ज्ञात होता है कि डीपाडीह एक सांस्कृतिक गतिविधियों का केन्द्र था जहाँ नरेशों ने अपनी कलाप्रियता के उद्गार को अभिव्यक्त करने के लिए मूर्तिकला के माध्यम से मूर्तिशिल्प निर्माण को प्रश्रय दिया था। छत्तीसगढ़ में डीपाडीह एक ऐसा पुरातात्त्विक स्थल है, जहाँ उत्खनन से मन्दिरों का एक समूह प्राप्त हुआ है। मन्दिर 5 किमी. क्षेत्र में बिखरे पड़े हैं। इसके अवशेषों के अध्ययन से ज्ञात होता है कि ये सभी शैव मन्दिरों के समूह थे जो पूरे क्षेत्र में अलग-अलग ढंग से निर्मित किए गए होंगे।
डीपाडीह से प्राप्त पुरातात्त्विक कलाकृतियों से गौरवमय अतीत एवं समृद्धशाली कला प्रतिभा का परिचय प्राप्त होता है। डीपाडीह क्षेत्र से प्राप्त शैव संप्रदाय, वैष्णव सम्प्रदाय, क्षात्र, सूर्य आदि प्रमुख सम्प्रदायों की प्रतिभाओं के निर्माण एवं उसके प्रचार-प्रसार से ज्ञात होता है कि डीपाडीह के तत्कालीन शासकों ने अपनी अपनी आस्था और विश्वास की अभ्यर्धन हेतु सभी धर्मों के विकास एवं विस्तार हेतु समान अवसर प्रदान किए गये थे। डीपाडीह क्षेत्र बिहार की भूमि से जुड़ा होने के कारण इस पर बिहार की संस्कृति का भी प्रभाव परिलक्षित होता है।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
बाहरी कड़ियाँ
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