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गोआ की रूमानियत, पोर्टब्लेयर की हरियाली, मुंबई की चंचलता और चेन्नई की सहजता को अपने में समेटे दिउ भारत का एक ऐसा पर्यटन स्थल है जिसे देखते हुए पर्यटकों का मन कभी तृप्त नहीं होता। यहाँ 14 वीं और 12 वीं सदी एक साथ जीवंत नजर आती हैं। सागर किनारे 21 किलोमीटर तक फैला दिउ एक छोटा सा द्वीप है, जो देश में और कहीं नहीं पाए जाते। यहाँ के जीवन और कला में गुजरात की परंपराओं, पुर्तग़ालियों का वैभव इस तरह घुलमिल गया है कि उस ने एक नई संस्कृति का सृजन कर डाला है। लोक कला, संगीत, नृत्य और साथ ही लगभग सालभर ही सुहावना रहने वाला मौसम एवं इस के 6 तट यहाँ की अलौकिक पूँजी हैं। फरवरी से दिसंबर तक दिउ में कई उत्सव आयोजित होते हैं। दिउ तक सड़क मार्ग के साथ वायु मार्ग भी है। रेल मार्ग 90 किलोमीटर दूर वेरावल तक है। यहाँ हर श्रेणी के होटल मौजूद हैं।

ऐतिहासिक क़िला

यह क़िला दिउ के इतिहास का झरोखा है। पहली नजर में सागरतट पर इस का भव्य विस्तार किसी संतरी के समान दिउ के रक्षक के रूप में नजर आता है। क़िले का द्वार दोहरा है। इस में 7 बुर्ज हैं। 3 बुर्ज बाहरी दिशा के पश्चिमी हिस्से में और 4 अंदर बनाए गए हैं। मुख्यद्वार के बीच लुसिया बुर्ज एवं राजारानी कुडं है। इस का निर्माण 1535 में नुनोद-द-कुन्हा ने कराया था। 1546 में ख्वाजा सफर और उन के पुत्र रूमी खान ने पुर्तग़ालीयों से मुक्ति हेतु इस पर आक्रमण किया किंतु वे पराजित हुए। क़िले के अंदर राज्यपाल निवास, बैरक, शस्त्रागार, चर्च एवं अन्य राजकीय इमारतों के टुटे अवशेष आज भी मौजूद हैं। इसे एशिया का सब से महत्त्वपूर्ण पुर्तग़ाली क़िला होने का गौरव प्राप्त है। 56,738 वर्ग मीटर में फैले इस क़िले में संकटकाल में भागने के लिए भूमिगत सुरंगें हैं, जिन्हें सुरक्षा की दृष्टि से अब बंद कर दिया गया है। क़िले के अंदर सुन्दर डिजाइन पत्थरों पर उकरी गई हैं। क़िले के ऊपरी भागों से सारा द्वीप एवं सामने सागर किनारे बना लाइट हाउस साफ नजर आता है।

सैंट पौल चर्च

दिउ का सैंट पौल चर्च एक बेहद ख़ूबसूरत इमारत है। इस के मेहराब अंदर से सीपी के आकार के हैं और स्तंभों पर लकड़ी का नक्काशादार काम इतना बारीक है कि देखते ही बनता है। इस के अलंकरण में हिन्दू, इस्लाम और ईसाई धर्म के प्रतीक शामिल किए गए हैं।

शैल संग्रहालय

सागर का अपना एक अलग संसार है और इस संसार में हज़ारों जीवजंतु अपनी अलग दुनिया बसाए हुए हैं। ऐसे ही 2,800 से भी अधिक सागर प्राणियों का यह संग्रह है। यहाँ विश्व का प्रथम शैल संग्रहालय है। इसे नागोआ एअरपोर्ट के निकट कैंटेन फुलाबरजा, जिन्हें मास्टर ऑफ़ मेरीन के नाम से जाना जाता है, द्वारा स्थापित किया गया है। इस शैल संग्रहालय में भारत के अरब सागर और बंगाल की खाड़ी के शैल्स तो हैं ही, श्रीलंका, अंडमान-निकोबार, फिलीपींस, सिंगापुर, चीन, आस्ट्रेलिया, ताइवान, कोरिया, वियतनाम, म्यांमार, जापान, अमेरिका, ब्राजील आदि देशों की सागर संपदा भी मौजूद है। यहाँ कई अद्भुत आर्कषण शैलों को मैग्नीफाइंग जार में सहजा हुआ है। इन्हें देखना ही एक रोमांचक अनुभव है।

खुखरी मैमोरियल

खुखरी मैमोरियल दिउ का तीसरा महत्त्वपूर्ण आर्कषण है। सनसेट बीच पर एन. एस. खुखरी मैमोरियल है। 1971 में भारत-पाक युद्ध के मौके पर युद्धपोत एन. एस. खुखरी पर पाक सेना द्वारा 3 तारपीडो दागे गए जिन के कारण इस ने अपने 18 अधिकारियों एवं 176 नौसैनिकों के साथ जलसमाधि ले ली। इस के कमांडिंग अधिकारी कैप्टन महेंद्रनाथ मुल्ला को उन की इस बहादुरी के लिए मरणोपरांत महावीर चक्र से सम्मानित किया गया। इसी घटना की याद को सम्मान देने के लिए इस स्थल का निर्माण किया गया। यहाँ उस युद्धपोत का एक मौडल रखा गया है। यहाँ का नागोआ बीच मुंबई के चौपाटी एवं जुहू जैसा आर्कषक है और अत्यंत स्वच्छ तथा सपाट रेतीले तट के कारण घंटों सैलानियों को बांधे रखने में समर्थ है। घोड़े की नाल के आकार का यह तट दिउ का सर्वाधिक आर्कषक तट माना जाता है।


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