ज़िन्दगी़ चार कविताएँ -कन्हैयालाल नंदन: Difference between revisions

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
Jump to navigation Jump to search
[unchecked revision][unchecked revision]
('{| style="background:transparent; float:right" |- | {{सूचना बक्सा कविता |चित्र=Kanhailal Nandan.j...' के साथ नया पन्ना बनाया)
 
No edit summary
Line 31: Line 31:
{{Poemopen}}
{{Poemopen}}
<poem>
<poem>
(एक)
;एक


रूप की जब उजास लगती है
रूप की जब उजास लगती है
Line 41: Line 41:
प्यास लगती है।
प्यास लगती है।


(दो)
;दो


न कुछ कहना
न कुछ कहना
Line 59: Line 59:
शबनम पिरोती है।
शबनम पिरोती है।


(तीन)
;तीन


जैसे तारों के नर्म बिस्तर पर
जैसे तारों के नर्म बिस्तर पर
Line 74: Line 74:
पर कुतरती है।
पर कुतरती है।


(चार)
;चार


ज़िन्दगी की ये ज़िद है
ज़िन्दगी की ये ज़िद है
Line 95: Line 95:




{{संदर्भ ग्रंथ}}
   
==टीका टिप्पणी और संदर्भ==
 
<references/>
 
==बाहरी कड़ियाँ==
 
<br />
 
==संबंधित लेख==
==संबंधित लेख==
{{समकालीन कवि}}
{{समकालीन कवि}}

Revision as of 12:46, 23 August 2011

ज़िन्दगी़ चार कविताएँ -कन्हैयालाल नंदन
कवि कन्हैयालाल नंदन
जन्म 1 जुलाई, 1933
जन्म स्थान फतेहपुर ज़िले के परसदेपुर गांव, उत्तर प्रदेश
मृत्यु 25 सितंबर, 2010
मृत्यु स्थान दिल्ली
मुख्य रचनाएँ लुकुआ का शाहनामा, घाट-घाट का पानी, आग के रंग आदि।
बाहरी कड़ियाँ आधिकारिक वेबसाइट
इन्हें भी देखें कवि सूची, साहित्यकार सूची
कन्हैयालाल नंदन की रचनाएँ
एक


रूप की जब उजास लगती है
ज़िन्दगी
आसपास लगती है
तुमसे मिलने की चाह
कुछ ऐसे
जैसे ख़ुशबू को
प्यास लगती है।

दो


न कुछ कहना
न सुनना
मुस्कराना
और आँखों में ठहर जाना
कि जैसे
रौशनी की
एक अपनी धमक होती है
वो इस अंदाज़ से
मन की तहों में
घुस गए
उन्हें मन की तहों ने
इस तरह अंबर पिरोया है
सुबह की धूप जैसे
हार में
शबनम पिरोती है।

तीन


जैसे तारों के नर्म बिस्तर पर
खुशनुमा चाँदनी
उतरती है
इस तरह ख्वाब के बगीचे में
ज़िन्दगी
अपने पाँव धरती है

और फिर क़रीने से
ताउम्र
सिर्फ़
सपनों के
पर कुतरती है।

चार


ज़िन्दगी की ये ज़िद है
ख़्वाब बन के
उतरेगी।
नींद अपनी ज़िद पर है
- इस जनम में न आएगी

दो ज़िदों के साहिल पर
मेरा आशियाना है
वो भी ज़िद पे आमादा
-ज़िन्दगी को
कैसे भी
अपने घर
बुलाना है।





संबंधित लेख