स्थिरमति बौद्धाचार्य: Difference between revisions

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
Jump to navigation Jump to search
[unchecked revision][unchecked revision]
No edit summary
m (Text replace - "{{महायान के आचार्य}}" to "==सम्बंधित लिंक== {{महायान के आचार्य2}} {{महायान के आचार्य}}")
Line 13: Line 13:
(6) त्रिंशिकाभाष्य। <br />
(6) त्रिंशिकाभाष्य। <br />
इनके समस्त ग्रन्थ टीका या भाष्य के रूप में ही हैं। इनका कोई स्वतन्त्र ग्रन्थ उपलब्ध नहीं है। इनके माध्यम से आचार्य वसुबन्धु का अभिप्राय पूर्ण रूप से प्रकट हुआ है।  
इनके समस्त ग्रन्थ टीका या भाष्य के रूप में ही हैं। इनका कोई स्वतन्त्र ग्रन्थ उपलब्ध नहीं है। इनके माध्यम से आचार्य वसुबन्धु का अभिप्राय पूर्ण रूप से प्रकट हुआ है।  
==सम्बंधित लिंक==
{{महायान के आचार्य2}}
{{महायान के आचार्य}}
{{महायान के आचार्य}}
[[Category:दर्शन कोश]][[Category:दर्शन]][[Category:बौद्ध दर्शन]]
[[Category:दर्शन कोश]][[Category:दर्शन]][[Category:बौद्ध दर्शन]]
[[Category:बौद्ध धर्म]][[Category:बौद्ध धर्म कोश]]
[[Category:बौद्ध धर्म]][[Category:बौद्ध धर्म कोश]]
__INDEX__
__INDEX__

Revision as of 14:51, 2 June 2010

  • आचार्य स्थिरमति आचार्य वसुबन्धु के चार प्रख्यात शिष्यों में से अन्यतम हैं। उनके चार शिष्य अत्यन्त प्रसिद्ध थे। ये अपने विषय में अपने गुरु से भी बढ़-चढ़ कर थे, यथा- अभिधर्म में स्थिरमति, प्रज्ञापारमिता में विमुक्तिसेन, विनय में गुणप्रभ तथा न्यायशास्त्र में दिनांग। आचार्य स्थिरमति का जन्म दण्डकारण्य में एक व्यापारी के घर हुआ था।
  • अन्य विद्वानों के अनुसार वे मध्यभारत के ब्राह्मणकुल में उत्पन्न हुए थे। परम्परा के अनुसार सात वर्ष की आयु में ही वे वसुबन्धु के पास पहुँच गये थे। तारानाथ के अनुसार तारादेवी उनकी इष्ट देवता थीं। वसुबन्धु के समान ये भी दुर्धर्ष शास्त्रार्थी थे।
  • वसुबन्धु के अनन्तर इन्होंने अनेक तैर्थिकों को शास्त्रार्थ करके पराजित किया था। तारानाथ ने लिखा है कि स्थिरमति ने आर्यरत्नकूट और मूलमाध्यमिककारिका की व्याख्या भी लिखी थी तथा उन्होंने मूलमाध्यमिकाकारिका का अभिप्राय विज्ञप्तिमात्रता के अर्थ में लिया था।
  • तारानाथ ने आगे लिखा है कि अभिधर्मकोश पर टीका लिखने वाले स्थिरमति कौन स्थिरमति हैं? यह अज्ञात है। इसका तात्पर्य यह है कि उन्हें अभिधर्मकोश एवं त्रिंशिका की टीका लिखने वाले स्थिरमति के एक होने में सन्देह है। इनका काल पांचवी शताब्दी का उत्तरार्ध माना जाता है।

कृतियाँ

तिब्बती भाषा में स्थिरमति की छह रचनाएं उपलब्ध हैं। ये सभी रचनाएं उच्चकोटि की हैं।
(1) आर्यमहारत्नकूट धर्मपर्यायशतसाहस्त्रिकापरिवर्तकाश्यपपरिवर्त टीका। यह आर्यमहारत्नकूट की टीका है, जिसका उल्लेख तारानाथ ने किया है। यह बहुत ही विस्तृत एवं स्थूलकाय ग्रन्थ है।
(2) सूत्रालङ्कारवृत्तिभाष्य- यह वसुबन्धु की सूत्रालङ्कारवृत्ति पर भाष्य है।
(3) पञ्चस्कन्धप्रकरण- वैभाष्य- यह वसुबन्धु के पञ्चस्कन्धप्रकरण पर भाष्य है।
(4) मध्यान्तविभङ्ग-टीका- यह मैत्रेयनाथ के मध्यान्तविभङ्ग टीका है।
(5) अभिधर्मकोशभाष्यटीका- यह अभिधर्मकोश भाष्य पर तात्पर्य नाम की टीका है।
(6) त्रिंशिकाभाष्य।
इनके समस्त ग्रन्थ टीका या भाष्य के रूप में ही हैं। इनका कोई स्वतन्त्र ग्रन्थ उपलब्ध नहीं है। इनके माध्यम से आचार्य वसुबन्धु का अभिप्राय पूर्ण रूप से प्रकट हुआ है।

सम्बंधित लिंक