अब तो मज़हब -गोपालदास नीरज: Difference between revisions
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<poem>अब तो मज़हब कोई ऐसा भी चलाया जाए। | <poem> | ||
अब तो मज़हब कोई ऐसा भी चलाया जाए। | |||
जिसमें इंसान को इंसान बनाया जाए। | जिसमें इंसान को इंसान बनाया जाए। | ||
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जिस्म दो होके भी दिल एक हों अपने ऐसे | जिस्म दो होके भी दिल एक हों अपने ऐसे | ||
मेरा | मेरा आँसू तेरी पलकों से उठाया जाए। | ||
गीत उन्मन है, ग़ज़ल चुप है, रूबाई है दुखी | गीत उन्मन है, ग़ज़ल चुप है, रूबाई है दुखी |
Revision as of 08:54, 3 November 2011
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अब तो मज़हब कोई ऐसा भी चलाया जाए। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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