अभी न जाओ प्राण! -गोपालदास नीरज: Difference between revisions

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
Jump to navigation Jump to search
[unchecked revision][unchecked revision]
No edit summary
No edit summary
 
Line 31: Line 31:
{{Poemopen}}
{{Poemopen}}
<poem>
<poem>
अभी न जाओ प्राण ! प्राण में प्यास शेष है,
अभी न जाओ प्राण !  
प्यास शेष है,
प्राण में प्यास शेष है, प्यास शेष है।


अभी बरुनियों के कुञ्जों मैं छितरी छाया,
अभी बरुनियों के कुञ्जों मैं छितरी छाया,
Line 40: Line 40:
अभी प्राण-बंसीबट में बज रही बंसुरिया,
अभी प्राण-बंसीबट में बज रही बंसुरिया,
अधरों के तट पर चुम्बन का रास शेष है।
अधरों के तट पर चुम्बन का रास शेष है।
अभी न जाओ प्राण ! प्राण में प्यास शेष है।
अभी न जाओ प्राण !  
प्यास शेष है।
प्राण में प्यास शेष है, प्यास शेष है।


अभी स्पर्श से सेज सिहर उठती है, क्षण-क्षण,
अभी स्पर्श से सेज सिहर उठती है, क्षण-क्षण,
Line 49: Line 49:
केलि-भवन के तरुण दीप की रूप-शिखा पर,
केलि-भवन के तरुण दीप की रूप-शिखा पर,
अभी शलभ के जलने का उल्लास शेष है।
अभी शलभ के जलने का उल्लास शेष है।
अभी न जाओ प्राण! प्राण में प्यास शेष है,
अभी न जाओ प्राण!  
प्यास शेष है।
प्राण में प्यास शेष है, प्यास शेष है।


अगरु-गंध में मत्त कक्ष का कोना-कोना,
अगरु-गंध में मत्त कक्ष का कोना-कोना,
सजग द्वार पर निशि-प्रहरी सुकुमार सलोना,
सजग द्वार पर निशि-प्रहरी सुकुमार सलोना,
अभी खोलने से कुनमुन करते गृह के पट
अभी खोलने से कुनमुन करते गृह के पट,
देखो साबित अभी विरह का चन्द्र -खिलौना,
देखो साबित अभी विरह का चन्द्र -खिलौना,
रजत चांदनी के खुमार में अंकित अंजित-
रजत चांदनी के खुमार में अंकित अंजित,
आँगन की आँखों में नीलाकाश शेष है।
आँगन की आँखों में नीलाकाश शेष है।
अभी न जाओ प्राण! प्राण में प्यास शेष है,
अभी न जाओ प्राण!  
प्यास शेष है।
प्राण में प्यास शेष है, प्यास शेष है।


अभी लहर तट के आलिंगन में है सोई,
अभी लहर तट के आलिंगन में है सोई,
Line 67: Line 67:
एक नशा-सा व्याप्त सकल भू के कण-कण पर,
एक नशा-सा व्याप्त सकल भू के कण-कण पर,
अभी सृष्टि में एक अतृप्ति-विलास शेष है।
अभी सृष्टि में एक अतृप्ति-विलास शेष है।
अभी न जाओ प्राण! प्राण में प्यास शेष है,
अभी न जाओ प्राण!  
प्यास शेष है।
प्राण में प्यास शेष है, प्यास शेष है।


अभी मृत्यु-सी शांति पड़े सूने पथ सारे,
अभी मृत्यु-सी शांति, पड़े सूने पथ सारे,
अभी न उषा ने खोले प्राची के द्वारे,
अभी न उषा ने खोले प्राची के द्वारे,
अभी मौन तरु-नीड़, सुप्त पनघट, नौकातट,
अभी मौन तरु-नीड़, सुप्त पनघट, नौकातट,
अभी चांदनी के न जगे सपने निंदियारे,
अभी चांदनी के न जगे सपने निंदियारे,
अभी दूर है प्रात:, रात के प्रणय-पत्र में-
अभी दूर है प्रात:, रात के प्रणय-पत्र में,
बहुत सुनाने सुनने को इतिहास शेष है।
बहुत सुनाने सुनने को इतिहास शेष है।
अभी न जाओ प्राण! प्राण में प्यास शेष है,
अभी न जाओ प्राण!  
प्यास शेष है॥  
प्राण में प्यास शेष है, प्यास शेष है॥  


</poem>
</poem>

Latest revision as of 06:14, 14 December 2011

अभी न जाओ प्राण! -गोपालदास नीरज
कवि गोपालदास नीरज
जन्म 4 जनवरी, 1925
मुख्य रचनाएँ दर्द दिया है, प्राण गीत, आसावरी, गीत जो गाए नहीं, बादर बरस गयो, दो गीत, नदी किनारे, नीरज की पाती, लहर पुकारे, मुक्तकी, गीत-अगीत, विभावरी, संघर्ष, अंतरध्वनी, बादलों से सलाम लेता हूँ, कुछ दोहे नीरज के
इन्हें भी देखें कवि सूची, साहित्यकार सूची
गोपालदास नीरज की रचनाएँ

अभी न जाओ प्राण !
प्राण में प्यास शेष है, प्यास शेष है।

अभी बरुनियों के कुञ्जों मैं छितरी छाया,
पलक-पात पर थिरक रही रजनी की माया,
श्यामल यमुना सी पुतली के कालीदह में,
अभी रहा फुफकार नाग बौखल बौराया,
अभी प्राण-बंसीबट में बज रही बंसुरिया,
अधरों के तट पर चुम्बन का रास शेष है।
अभी न जाओ प्राण !
प्राण में प्यास शेष है, प्यास शेष है।

अभी स्पर्श से सेज सिहर उठती है, क्षण-क्षण,
गल-माला के फूल-फूल में पुलकित कम्पन,
खिसक-खिसक जाता उरोज से अभी लाज-पट,
अंग-अंग में अभी अनंग-तरंगित-कर्षण,
केलि-भवन के तरुण दीप की रूप-शिखा पर,
अभी शलभ के जलने का उल्लास शेष है।
अभी न जाओ प्राण!
प्राण में प्यास शेष है, प्यास शेष है।

अगरु-गंध में मत्त कक्ष का कोना-कोना,
सजग द्वार पर निशि-प्रहरी सुकुमार सलोना,
अभी खोलने से कुनमुन करते गृह के पट,
देखो साबित अभी विरह का चन्द्र -खिलौना,
रजत चांदनी के खुमार में अंकित अंजित,
आँगन की आँखों में नीलाकाश शेष है।
अभी न जाओ प्राण!
प्राण में प्यास शेष है, प्यास शेष है।

अभी लहर तट के आलिंगन में है सोई,
अलिनी नील कमल के गन्ध गर्भ में खोई,
पवन पेड़ की बाँहों पर मूर्छित सा गुमसुम,
अभी तारकों से मदिरा ढुलकाता कोई,
एक नशा-सा व्याप्त सकल भू के कण-कण पर,
अभी सृष्टि में एक अतृप्ति-विलास शेष है।
अभी न जाओ प्राण!
प्राण में प्यास शेष है, प्यास शेष है।

अभी मृत्यु-सी शांति, पड़े सूने पथ सारे,
अभी न उषा ने खोले प्राची के द्वारे,
अभी मौन तरु-नीड़, सुप्त पनघट, नौकातट,
अभी चांदनी के न जगे सपने निंदियारे,
अभी दूर है प्रात:, रात के प्रणय-पत्र में,
बहुत सुनाने सुनने को इतिहास शेष है।
अभी न जाओ प्राण!
प्राण में प्यास शेष है, प्यास शेष है॥

टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख