ख़ुद अपने ही ख़िलाफ़ -अजेय: Difference between revisions

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
Jump to navigation Jump to search
[unchecked revision][unchecked revision]
('{| style="background:transparent; float:right" |- | {{सूचना बक्सा कविता |चित्र=Ajey.JPG |चि...' के साथ नया पन्ना बनाया)
 
m (Text replace - "ज्यादा" to "ज़्यादा")
Line 42: Line 42:
मेरे स्मृति पुंज में
मेरे स्मृति पुंज में
एक खत्म न होने वाली अवधि की तरह है  
एक खत्म न होने वाली अवधि की तरह है  
उसे माँ पुकारने से कहीं ज्यादा लंबी
उसे माँ पुकारने से कहीं ज़्यादा लंबी
जबकि माँ पुकारना तो अंतरालों में रहा
जबकि माँ पुकारना तो अंतरालों में रहा
वक्फ़ा-वक्फ़ा / जैसे
वक्फ़ा-वक्फ़ा / जैसे

Revision as of 07:40, 5 March 2012

ख़ुद अपने ही ख़िलाफ़ -अजेय
कवि अजेय
जन्म स्थान (सुमनम, केलंग, हिमाचल प्रदेश)
बाहरी कड़ियाँ आधिकारिक वेबसाइट
इन्हें भी देखें कवि सूची, साहित्यकार सूची
अजेय् की रचनाएँ

ठीक ठीक नहीं बता सकता
कि कितना सही-सही जानता हूँ
मैं उस औरत को
जब कि उसे माँ पुकारने के समय से ही
उसके साथ हूँ

आंचल पकड़ता
छातियों से चिपकता कभी
उचक कर पीठ पर उसकी गर्दन सूंघता......

उस औरत को प्यार करना
मेरे स्मृति पुंज में
एक खत्म न होने वाली अवधि की तरह है
उसे माँ पुकारने से कहीं ज़्यादा लंबी
जबकि माँ पुकारना तो अंतरालों में रहा
वक्फ़ा-वक्फ़ा / जैसे
कौंधें होती है पल दो पल की

मैंने देखा है उसे
बचाती हुई खुद को
एक अंत हीन दबी हुई रुलाई से
हार कर टूट जाने से
 

इस भीषण समय में
बाल बाल बचती हुई विक्षिप्त हो जाने से
ढोती हुई संतुलित होकर
पीठ पर अपना वह पुत्र
और तमाम अनाप शनाप संस्कार

चुपचाप प्रार्थनाएं करती हुई
उन सभी की बेहतरी के लिए
जो क्रूर हुए हर -बार
खुद उसी के लिए

नहीं बता सकता
कि कहाँ था
उस औरत का अपना आकाश

नहीं बता सकता
कि क्या था
कि उस औरत की चांदनी रातों पर
सदा ही लगा रहता था ग्रहण

बहुत असहज हो जाता हूँ यह कहते हुए
कि इस बीमार औरत ने
अपने साथ सब कुछ हो जाने दिया
उन मौकों पर भी ,
जब कि वह लड़ सकती थी

बहुत डर जाता हूँ
इस सच को सच मानते हुए
कि यह औरत उन पापों का फल भोग रही है
जो उस ने खुद अपने साथ किए
खुद अपने ही खिलाफ !!


पी.जी.आई चंडीगढ़ मई 2007


टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख