इनसे मिलिए -दुष्यंत कुमार: Difference between revisions

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Latest revision as of 08:08, 30 December 2012

इनसे मिलिए -दुष्यंत कुमार
कवि दुष्यंत कुमार
मूल शीर्षक सूर्य का स्वागत
प्रकाशक राजकमल प्रकाशन, इलाहाबाद
प्रकाशन तिथि 1957
देश भारत
पृष्ठ: 84
भाषा हिन्दी
शैली छंदमुक्त
विषय कविताएँ
दुष्यंत कुमार की रचनाएँ

पाँवों से सिर तक जैसे एक जनून
बेतरतीबी से बढ़े हुए नाख़ून

        कुछ टेढ़े-मेढ़े बैंगे दाग़िल पाँव
        जैसे कोई एटम से उजड़ा गाँव

टखने ज्यों मिले हुए रक्खे हों बाँस
पिण्डलियाँ कि जैसे हिलती-डुलती काँस

        कुछ ऐसे लगते हैं घुटनों के जोड़
        जैसे ऊबड़-खाबड़ राहों के मोड़

गट्टों-सी जंघाएँ निष्प्राण मलीन
कटि, रीतिकाल की सुधियों से भी क्षीण

        छाती के नाम महज़ हड्डी दस-बीस
        जिस पर गिन-चुन कर बाल खड़े इक्कीस

पुट्ठे हों जैसे सूख गए अमरूद
चुकता करते-करते जीवन का सूद

        बाँहें ढीली-ढाली ज्यों टूटी डाल
        अँगुलियाँ जैसे सूखी हुई पुआल

छोटी-सी गरदन रंग बेहद बदरंग
हरवक़्त पसीने का बदबू का संग

        पिचकी अमियों से गाल लटे से कान
        आँखें जैसे तरकश के खुट्टल बान

माथे पर चिन्ताओं का एक समूह
भौंहों पर बैठी हरदम यम की रूह

        तिनकों से उड़ते रहने वाले बाल
        विद्युत परिचालित मखनातीसी चाल

बैठे तो फिर घण्टों जाते हैं बीत
सोचते प्यार की रीत भविष्य अतीत

        कितने अजीब हैं इनके भी व्यापार
        इनसे मिलिए ये हैं दुष्यन्त कुमार।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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