अमानुल्लाह ख़ान: Difference between revisions

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
Jump to navigation Jump to search
[unchecked revision][unchecked revision]
m (Text replace - " कायम" to " क़ायम")
m (Text replace - "फिल्म" to "फ़िल्म")
Line 7: Line 7:
<blockquote>‘..और इस तरह, मेरे चाहने वाले शहंशाह जलालउद्दीन मोहम्मद अकबर ने अनारकली की जिंदगी बख्श दी और दुनिया की नज़रों में जुल्म और बेरहमी का दाग़ अपने दामन पर ले लिया।
<blockquote>‘..और इस तरह, मेरे चाहने वाले शहंशाह जलालउद्दीन मोहम्मद अकबर ने अनारकली की जिंदगी बख्श दी और दुनिया की नज़रों में जुल्म और बेरहमी का दाग़ अपने दामन पर ले लिया।
मैं उस शहंशाह के इंसाफ की यादगार हूं, जिसे दुनिया मुग़ल-ए-आज़म के नाम से याद करती है।’</blockquote>
मैं उस शहंशाह के इंसाफ की यादगार हूं, जिसे दुनिया मुग़ल-ए-आज़म के नाम से याद करती है।’</blockquote>
ज़माने पर जादू की तरह छा जाने वाली यह बलंद आवाज़ थी अमानुल्लाह ख़ान की। जिसने जमाने की सहूलियत के लिए अपने नाम को छोटा बनाकर कर लिया था- अमान और इस तीन लफ्ज के छोटे से नाम के साथ ही इतना बड़ा काम कर दिखाया कि दुनिया में चाहे तमाम चीज़ें हर रोज बदलती रहें, लेकिन इस एक हक़ीक़त के साथ उनका नाम क़ायम रहेगा कि फिल्म ‘मुग़ल-ए-आजम’ की पटकथा [[के. आसिफ़]] के साथ अकेले उन्होंने ही लिखा था। फिल्म के अमर डायलॉग लिखने में भी वजाहत मिर्ज़ा, एहसान रिज़वी और [[कमाल अमरोही]] के साथ बहुत बड़ा योगदान था।<ref>{{cite web |url=http://filmcrossword.blogspot.in/search/label/%E0%A4%AF%E0%A4%BE%E0%A4%A6%E0%A5%8B%E0%A4%82%20%E0%A4%95%E0%A5%87%20%E0%A4%9D%E0%A4%B0%E0%A5%8B%E0%A4%96%E0%A5%87%20%E0%A4%B8%E0%A5%87 |title=..जिसे दुनिया म़ुग़ले-आजम के नाम से याद करती है |accessmonthday=20 दिसम्बर |accessyear=2012 |last= |first= |authorlink= |format= |publisher=फ़िल्म जगत |language=हिंदी }} </ref>
ज़माने पर जादू की तरह छा जाने वाली यह बलंद आवाज़ थी अमानुल्लाह ख़ान की। जिसने जमाने की सहूलियत के लिए अपने नाम को छोटा बनाकर कर लिया था- अमान और इस तीन लफ्ज के छोटे से नाम के साथ ही इतना बड़ा काम कर दिखाया कि दुनिया में चाहे तमाम चीज़ें हर रोज बदलती रहें, लेकिन इस एक हक़ीक़त के साथ उनका नाम क़ायम रहेगा कि फ़िल्म ‘मुग़ल-ए-आजम’ की पटकथा [[के. आसिफ़]] के साथ अकेले उन्होंने ही लिखा था। फ़िल्म के अमर डायलॉग लिखने में भी वजाहत मिर्ज़ा, एहसान रिज़वी और [[कमाल अमरोही]] के साथ बहुत बड़ा योगदान था।<ref>{{cite web |url=http://filmcrossword.blogspot.in/search/label/%E0%A4%AF%E0%A4%BE%E0%A4%A6%E0%A5%8B%E0%A4%82%20%E0%A4%95%E0%A5%87%20%E0%A4%9D%E0%A4%B0%E0%A5%8B%E0%A4%96%E0%A5%87%20%E0%A4%B8%E0%A5%87 |title=..जिसे दुनिया म़ुग़ले-आजम के नाम से याद करती है |accessmonthday=20 दिसम्बर |accessyear=2012 |last= |first= |authorlink= |format= |publisher=फ़िल्म जगत |language=हिंदी }} </ref>





Revision as of 07:20, 22 July 2013

अमानुल्लाह ख़ान (अंग्रेज़ी: Amanullah Khan) हिंदी सिनेमा के एक संवाद लेखक और प्रसिद्ध अभिनेत्री ज़ीनत अमान के पिता थे। अमानुल्लाह ख़ान ने ऐतिहासिक फ़िल्म मुग़ल-ए-आज़म की शुरुआत में एक आवाज़ दी थी। एक ऐसी आवाज़, जो आज तक सिनेमा के आशिकों के कानों में गूंजती है।

‘मैं हिंदोस्तान हूं। हिमालय मेरी सरहदों का निगहबान है। गंगा मेरी पवित्रता की सौगंध। तारीख़ की इब्तदा से मैं अंधेरों और उजालों का साथी हूं। और मेरी ख़ाक पर संगे-मरमर की चादरों में लिपटी हुई ये इमारतें दुनिया से कह रही हैं कि जालिमों ने मुझे लूटा और मेहरबानों ने मुझे संवारा। नादानों ने मुझे जंजीरें पहना दीं और मेरे चाहने वालों ने उन्हें काट फेंका। मेरे इन चाहने वालों में एक इंसान का नाम जलालउद्दीन मोहम्मद अकबर था। अकबर ने मुझसे प्यार किया। मजहब और रस्मो-रिवाज की दीवार से बलंद होकर, इंसान को इंसान से मोहब्बत करना सिखाया। और हमेशा के लिए मुझे सीने से लगा लिया।’

और जब फ़िल्म खत्म होती है तब भी एक आवाज़ आती है-

‘..और इस तरह, मेरे चाहने वाले शहंशाह जलालउद्दीन मोहम्मद अकबर ने अनारकली की जिंदगी बख्श दी और दुनिया की नज़रों में जुल्म और बेरहमी का दाग़ अपने दामन पर ले लिया। मैं उस शहंशाह के इंसाफ की यादगार हूं, जिसे दुनिया मुग़ल-ए-आज़म के नाम से याद करती है।’

ज़माने पर जादू की तरह छा जाने वाली यह बलंद आवाज़ थी अमानुल्लाह ख़ान की। जिसने जमाने की सहूलियत के लिए अपने नाम को छोटा बनाकर कर लिया था- अमान और इस तीन लफ्ज के छोटे से नाम के साथ ही इतना बड़ा काम कर दिखाया कि दुनिया में चाहे तमाम चीज़ें हर रोज बदलती रहें, लेकिन इस एक हक़ीक़त के साथ उनका नाम क़ायम रहेगा कि फ़िल्म ‘मुग़ल-ए-आजम’ की पटकथा के. आसिफ़ के साथ अकेले उन्होंने ही लिखा था। फ़िल्म के अमर डायलॉग लिखने में भी वजाहत मिर्ज़ा, एहसान रिज़वी और कमाल अमरोही के साथ बहुत बड़ा योगदान था।[1]


पन्ने की प्रगति अवस्था
आधार
प्रारम्भिक
माध्यमिक
पूर्णता
शोध

टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. ..जिसे दुनिया म़ुग़ले-आजम के नाम से याद करती है (हिंदी) फ़िल्म जगत। अभिगमन तिथि: 20 दिसम्बर, 2012।

बाहरी कड़ियाँ

संबंधित लेख