सिद्धसेन: Difference between revisions
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*इन्हें दिगम्बर और श्वेताम्बर दोनों परम्परायें मानती हैं। | *इन्हें दिगम्बर और श्वेताम्बर दोनों परम्परायें मानती हैं। |
Revision as of 08:32, 22 April 2010
आचार्य सिद्धसेन / Acharya Siddhasen
- आचार्य सिद्धसेन बहुत प्रभावक तार्किक हुए हैं।
- इन्हें दिगम्बर और श्वेताम्बर दोनों परम्परायें मानती हैं।
- इनका समय वि॰ सं॰ 4थी-5वीं शती माना जाता है।
- इनकी महत्त्वपूर्ण रचना 'सन्मति' अथवा 'सन्मतिसूत्र' है।
- इसमें सांख्य, योग आदि सभी वादों की चर्चा और उनका समन्वय बड़े तर्कपूर्ण ढंग से किया गया है।
- इन्होंने ज्ञान व दर्शन के युगपद्वाद और क्रमवाद के स्थान में अभेदवाद की युक्तिपूर्वक सिद्धि की है, यह उल्लेखनीय है।
- इसके अतिरिक्त ग्रन्थान्त में मिथ्यादर्शनों (एकान्तवादों) के समूह को 'अमृतसार', 'भगवान', 'जिनवचन' जैसे विशेषणों के साथ उल्लिखित करके उसे 'भद्र'- सबका कल्याणकारी कहा है।<balloon title="भद्दं मिच्छादंसणसमूहमइयस्म असियसारस्स। जिणवयणस्य भव भगवओ संविग्गसुहाहिगम्मस्स॥ सन्मतिसूत्र 3-70" style=color:blue>*</balloon>
- उन्होंने सापेक्ष (एकान्तों) के समूह को भद्र कहा है, निरपेक्ष (एकान्तों के समूह को नहीं, क्योंकि जैन दर्शन में निरपेक्षता को मिथ्यात्व और सापेक्षता को सम्यक् कहा गया है तथा सापेक्षता ही वस्तु का स्वरूप है, और वह ही अर्थक्रियाकारी है।
- आचार्य समन्तभद्र ने भी, जो उनके पूर्ववर्ती हैं, आप्तमीमांसा<balloon title="का0 108" style=color:blue>*</balloon> में यही प्रतिपादन किया है।