जो बड़ेन को लघु कहै -रहीम: Difference between revisions
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बड़े को यदि कोई छोटा कह दे, तो उसका बड़प्पन कम नहीं हो जाता। [[कृष्ण|गिरिधर श्रीकृष्ण]] 'मुरलीधर' कहने पर कहाँ बुरा मानते हैं ? | बड़े को यदि कोई छोटा कह दे, तो उसका बड़प्पन कम नहीं हो जाता। [[कृष्ण|गिरिधर श्रीकृष्ण]] 'मुरलीधर' कहने पर कहाँ बुरा मानते हैं ? | ||
{{लेख क्रम3| पिछला=जो घर ही में गुसि रहे -रहीम|मुख्य शीर्षक=रहीम के दोहे |अगला=जो रहीम | {{लेख क्रम3| पिछला=जो घर ही में गुसि रहे -रहीम|मुख्य शीर्षक=रहीम के दोहे |अगला=जो रहीम मन हाथ है -रहीम}} | ||
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Revision as of 11:54, 18 February 2016
जो बड़ेन को लघु कहै, नहिं ‘रहीम’ घटि जाहिं ।
गिरिधर मुरलीधर कहे, कछु दुख मानत नाहिं ॥
- अर्थ
बड़े को यदि कोई छोटा कह दे, तो उसका बड़प्पन कम नहीं हो जाता। गिरिधर श्रीकृष्ण 'मुरलीधर' कहने पर कहाँ बुरा मानते हैं ?
left|50px|link=जो घर ही में गुसि रहे -रहीम|पीछे जाएँ | रहीम के दोहे | right|50px|link=जो रहीम मन हाथ है -रहीम|आगे जाएँ |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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