कुछ कुण्डलियाँ -त्रिलोक सिंह ठकुरेला: Difference between revisions
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नहीं सताती धूप, शीश पर हो जब छाता । | नहीं सताती धूप, शीश पर हो जब छाता । | ||
'ठकुरेला' कविराय, ताप कम होते मन के । | 'ठकुरेला' कविराय, ताप कम होते मन के । | ||
खुल जाते हैं द्वार, | खुल जाते हैं द्वार, जगत् में नव जीवन के ।। | ||
ताक़त ही सब कुछ नहीं, समय समय की बात । | ताक़त ही सब कुछ नहीं, समय समय की बात । |
Revision as of 13:47, 30 June 2017
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बोता खुद ही आदमी, सुख या दु:ख के बीज । |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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