प्रयोग:दीपिका3: Difference between revisions
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{'प्रतिनिधि सरकार' नामक पुस्तक किसने लिखी? (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-202,प्रश्न-7 | |||
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-[[प्लेटो]] | |||
-बेंथम | |||
+जे.एस. मिल | |||
-टी.एच. ग्रीन | |||
||'प्रतिनिध्यात्मक शासन पर विचार' (Considerations on Reprasen tetiva Govarnmrnt) नामक ग्रंथ के लेखक जॉन स्टुअर्ट मिल हैं जो वर्ष 1861 में प्रकाशित किया गया। | |||
{[[अरस्तू]] ने राज्यों और संविधानों का वर्गीकरण किस प्रकार किया है? (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-9,प्रश्न-30 | |||
|type="()"} | |||
-निर्मित और पारंपरित रचना के आधार पर | |||
+शासकों की संख्या और शासन की गुणवत्ता के आधार पर | |||
-धार्मिक प्रभाव के आधार पर | |||
-आर्थिक प्रभुत्व के आधार पर | |||
||[[अरस्तू]] ने राज्यों एवं संविधानों का वर्गीकरण शासकों की गुणवत्ता (राज्य का उद्देश्य सार्वजनिक हित) के आधार पर किया है। अरस्तू ने [[प्लेटो]] द्वारा 'स्टेट्समेन' में किए गए राज्यों के वर्गीकरण को ही अपना आधार बनाया है। | |||
{"राजनीतिक चेतना राज्य की उत्पत्ति के सिद्धांत का एक कारण है।" यह किस सिद्धांत से संबंधित है? (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-21,प्रश्न-27 | |||
|type="()"} | |||
-शक्ति का सिद्धांत | |||
-दैवीय उत्पत्ति का सिद्धांत | |||
-सामाजिक समझौते का सिद्धांत | |||
+विकासवादी सिद्धांत | |||
||राज्य की उत्पत्ति का 'विकासवादी सिद्धांत' वर्तमान समय में सर्वाधिक मान्य सिद्धांत है। इसके अनुसार राज्य क्रमिक रूप से विकास का परिणाम है। इसके विकास में अनेक कारकों यथा रक्त संबंध, मनुष्य की स्वाभाविक सामाजिक प्रवृत्तियां, [[धर्म]], शक्ति, राजनीतिक चेतना आदि ने योगदान दिया है, परंतु [[राज्य]] के विकास में राजनीति चेतना सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण कारक है। गिलक्राइस्ट ने कहा है कि "राज्य के निर्माण के सभी तत्त्वों के तह में, जिसमें रक्त संबंध व धर्म सम्मिलित है, राजनीतिक चेतना है, जो सबसे मुख्य तत्व है। इसी प्रकार ब्लंटश्ती ने कहा है कि मनुष्य में सामाजिक जीवन की इच्छा ही राज्य निर्माण का कारण बनती है।" | |||
{भाषण की स्वतंत्रता किस शासन के लिए आवश्यक है? (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-47,प्रश्न-19 | |||
|type="()"} | |||
+लोकतंत्र | |||
-अधिनायकवाद | |||
-राजतंत्र | |||
-वर्गतंत्र | |||
||'भाषण की स्वतंत्रता' लोकतंत्र का प्राण है। लोकतंत्र में व्यक्तियों को राजनीतिक एवं नागरिक स्वतंत्रताएं प्राप्त होती हैं। राजनीतिक स्वतंत्रता के अंतर्गत मत देने का अधिकार, सार्वजनिक पद ग्रहण करने का अधिकार एवं शासन की आलोचना करने का अधिकार अंतर्निहित है तथा नागरिक स्वतंत्रता के अंतर्गत विचार एवं अभिव्यक्ति या भाषण की स्वतंत्रता, प्रेस की स्वतंत्रता, सम्मेलन की स्वतंत्रता, राजनीतिक दल व अन्य संगठन स्थापित करने की स्वतंत्रता, निवास-स्थान, आवागमन, व्यापार-व्यवसाय, सीमित मात्रा में संपत्ति की स्वतंत्रता आदि आते हैं। | |||
{संप्रभुता की आधुनिक अवधारणा का प्रतिपादन किसने किया? (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-23,प्रश्न-7 | |||
|type="()"} | |||
-हीगल | |||
-मैकियावेली | |||
-हॉब्स | |||
+बोदां | |||
||संप्रभुता की आधुनिक अवधारणा का सर्वप्रथम प्रयोग व प्रतिपादन बोदां ने राजतंत्र को औचित्यपूर्ण बनाने तथा पोप एवं सामंतों की सत्ता को सीमित करने के उद्देश्य से वर्ष 1756 में अपनी कृति 'Six Books Concerning Ripublic' (द रिपब्लिक) में किया। बोदां ने राज्य को परिवारों एवं उनकी मिली-जुली संपदा का ऐसा संगठन कहा जहां एक सर्वोच्च शक्ति और उसके विवेक का शासन चलता है। | |||
{फॉसीवादियों के अनुसार जनतंत्र का सर्वाधिक वास्तविक रूप निम्न में से किसके द्वारा चलाई जाने वाली सरकार में पाया जाता है? (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-42,प्रश्न-17 | |||
|type="()"} | |||
+अभिजात दर्ग | |||
-जंगखोर | |||
-जनतंत्रवादी | |||
-अराजकतावादी | |||
||फॉसीवाद समानता विरोधी और विशिष्ट वर्ग के सिद्धांत तथा नेतृत्व पूजा में विश्वास रखते हैं। इनके अनुसार फ्रांस के पश्चात लोकतंत्रवाद आया पर वह वास्तविक रूप में जनता के शासन की स्थापना में कर सका। इनके अनुसार लोकतंत्र में शक्ति कुछ चतुर और स्वार्थी लोगों के हाथों में अव्यावहारिक शासन व्यवस्था मानते हैं। | |||
{बेंथम के अनुसार विधि का लक्ष्य क्या होना चाहिए? (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-69,प्रश्न-38 | |||
|type="()"} | |||
+अधिकतम व्यक्तियों का अधिकतम सुख | |||
-अधिकतम व्यक्तियों का नैतिक विकास | |||
-अधिकतम व्यक्तियों का आर्थिक विकास | |||
-अधिकतम व्यक्तियों की अधिकतम | |||
||बेंथम के अनुसार, विधि का लक्ष्य अधिकतम व्यक्तियों का अधिकतम सुख होना चाहिए। बेंथम के अनुसार, कानून बनाने वालों को केवल वहीं कानून बनाने चाहिए जो 'अधिकतम लोगों के अधिकतम सुख' को बढ़ाया देते हों। सरकार का कार्य भी इसी उद्देश्य की पूर्ति करना है। | |||
{[[भारत]] में महान्यायवादी के पद के संबंध में निम्नलिखित में से कौन-सा एक कथन नहीं है- (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-191,प्रश्न-9 | |||
|type="()"} | |||
+उसे [[भारत]] के राज्यक्षेत्र के अंतर्गत सभी न्यायालयों में सुने जाने का अधिकार होगा। | |||
-वह अपने कर्त्तव्य का निष्पादन सिर्फ [[सर्वोच्च न्यायालय]] में करेगा। | |||
-उसका एक निश्चित कार्यकाल होता है। | |||
-[[भारत]] के [[राष्ट्रपति]] उस व्यक्ति को महान्यायवादी नियुक्त करते हैं जिसे [[उच्च न्यायालय]] में न्यायाधीश बन सकने के लिए योग्यता प्राप्त है। | |||
||[[संविधान]] के अनुच्छेद 76(1) के अनुसार, [[राष्ट्रपति]], उच्चतम न्यायालय का महान्यायावादी नियुक्त करेगा तथा अनुच्छेद 76(3) के अनुसार, महान्यायवादी को अपने कर्त्तव्यों के पालन में भारत के राज्यक्षेत्र में सभी न्यायालयों में सुनवाई का अधिकार होगा। | |||
{[[पाकिस्तान]] के खुफिया संगठन ISI का अर्थ है- (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-200,प्रश्न-47 | |||
|type="()"} | |||
+इंटर सर्विसेज इंटिलिजेंस | |||
-इंटरनेशनल सर्विसेज ऑफ़ इंटिलिजेंस | |||
-इंटरनेशनल स्टेट इंटिलिजेंस | |||
-इंस्टीच्यूशनल स्ट्रक्चर फॉर इंटिलिजेंस | |||
{[[फ्रांस]] में सरकार और [[राष्ट्रपति]] के बीच जटिल संबंध हैं। इसका कारण है: (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-194,प्रश्न-11 | |||
|type="()"} | |||
-[[राष्ट्रपति]] का प्रत्यक्ष चुनाव | |||
-शक्तियों का केंद्रीकरण | |||
+एक मिली-जुली राष्ट्रपति-संसदीय प्रणाली की सरकार | |||
-सरकार को नियंत्रित करने की [[संसद]] की लघुकृत शक्तियां | |||
||फ्रांस के संविधान में न तो अध्यक्षात्मक सरकार का प्रावधान है और न ही संसदीय सरकार का। बल्कि इसमें इन दोनों ही तत्वों का मिश्रण हैं। एक ओर तो इसमें शक्तिशाली राष्ट्रपति का प्रावधान किया गया है जिसका प्रत्यक्ष निर्वाचन सात साल के कार्यकाल के लिए किया जाता है और दूसरी ओर [[प्रधानमंत्री]] के नेतृत्व में एक मनोनीत मंत्रिपरिषद होती है जिसका उत्तरदायित्व [[संसद]] के प्रति होता है, परंतु मंत्री संसद के सदस्य नहीं होते हैं। इस प्रकार फ्रांस में सरकार और [[राष्ट्रपति]] के मध्य जटिल संबंध का कारण 'अर्द्ध-अध्यक्षात्मक और अर्द्ध-संसदीय' प्रणाली है। | |||
{'रिप्रेजेंटेटिव गवर्नमेंट' नामक पुस्तक के लेखक कौन हैं? (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-202,प्रश्न-8 | |||
|type="()"} | |||
-एच.जी. बेल्स | |||
-सी.डी. बर्न्स | |||
+जे.एस. मिल | |||
-अरस्तू | |||
||'प्रतिनिध्यात्मक शासन पर विचार' (Considerations on Reprasen tetiva Govarnmrnt) नामक ग्रंथ के लेखक जॉन स्टुअर्ट मिल हैं जो वर्ष 1861 में प्रकाशित किया गया। | |||
{[[अरस्तू]] के अनुसार, राज्य का अस्तित्व- (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-9,प्रश्न-31 | |||
|type="()"} | |||
-दैवी इच्छा का परिणाम है | |||
-बल और भय का परिणाम है | |||
-केवल राजनैतिक और धार्मिक अंयोग है | |||
+विकास का परिणाम है | |||
||अरस्तू के अनुसार, राज्य का अस्तित्व विकास का परिणाम है। [[अरस्तू]] के अनुसार, राज्य का निर्माण व्यक्ति या व्यक्ति समूह ने सोच समझकर नहीं किया बल्कि राज्य एक प्राकृतिक संस्था है, जिसका जन्म विकास के कारण हुआ है। यह एक स्वाभाविक संस्था है। इसके उद्देश्य और कार्य नैतिक है और यह सभी संस्थाओं में श्रेष्ठ है। | |||
{सामाजिक समझौता सिद्धांत वर्णन करता है- (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-21,प्रश्न-28 | |||
|type="()"} | |||
-राज्य के स्वरूप का | |||
-राज्यों के कार्यों का | |||
+राज्य की उत्पत्ति का | |||
-इनमें से कोई नहीं | |||
||सामाजिक समझौता सिद्धांत राज्य की उत्पत्ति के संबंध में प्रचलित सिद्धांतों महत्त्वपूर्ण सिद्धांत है। इस सिद्धांत की स्पष्ट व व्यापक अभिव्यक्ति 17वीं सदी में [[इंग्लैण्ड]] के हॉब्स व लॉक तथा 18वीं सदी में [[फ्रांस]] के रूसों के विचारों में हुई। 17वीं और 18वीं सदी की राजनीतिक विचारधारा में तो इस सिद्धांत का पूर्ण प्राधान्य था। इस सिद्धांत के अनुसार, राज्य दैवीय न होकर एक मानवीय संस्था है, जिसका निर्माण व्यक्तियों द्वारा पारस्पतिक समझौते के आधार पर किया गया है। | |||
{निम्नलिखित में से कौन-सी दल पद्धति लोकतंत्र के स्थायित्व के लिए सबसे उपयुक्त है? (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-47,प्रश्न-20 | |||
|type="()"} | |||
-एक दल प्रधानता | |||
-दल रहित | |||
-बहुदलीय | |||
+द्विदलीय | |||
||द्विदलीय दल पद्धति लोकतंत्र के स्थायित्व के लिए सबसे उपयुक्त होती है। द्विदलीय दल पद्धति केंद्रीकृत होती है तथा इसमें कुछ श्रेष्ट जनों को आगे बढ़ाने के साथ स्थान पर व्यक्तिगत गुण अधिक मायने रखते हैं। प्राय: देखा जाता है कि इस दल पद्धति में पार्टियां चुनाव के समय ही सक्रिय होती हैं तथा एक बार सरकार का गठन हो जाने के बाद वह अपना कार्यकाल पूरा कर लेती हैं तथा स्थायित्व बना रहता है। [[संयुक्त राज्य अमेरिका]], [[ब्रिटेन]], [[ऑस्ट्रेलिया]], आयरलैंड आदि लोकतांत्रिक शासन प्रणालियों में स्थायित्व का कारण द्विदलीय दल पद्धति है। | |||
{निम्न में किस वर्ग के विचारकों को संप्रभुता की व्याख्या करने का श्रेय दिया जाता है? (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-23,प्रश्न-8 | |||
|type="()"} | |||
-बोदां, मार्क्स और ऑस्टिन | |||
-बोदां, मार्क्स और हीगेल | |||
-हीगेल, लास्वेल और हस्टन | |||
+बोदां, ग्रोशस और ऑस्टिन | |||
||संप्रभुता की व्याख्या करने का श्रेय ज्यां बोदां, ह्यूगो ग्रोश्यस और जॉन ऑस्टिन को दिया जाता है। संप्रभुता सिद्धांत का निरूपण सोलहवीं शताब्दी में ज्यां बोदां, ह्यूगो ग्रोश्यस और टॉमस हॉब्स तथा अठारहवीं शताब्दी में जे. जे. रूसो और उन्नीसवीं शताब्दी में जॉन ऑस्टिन ने किया। | |||
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Revision as of 11:49, 21 December 2017
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