पश्चिम: Difference between revisions
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|चित्र का नाम=दिशाओं के नाम | |||
|विवरण='''पश्चिम''' एक [[दिशा]] है। ज्योतिष के अनुसार [[शनिदेव]] पश्चिम दिशा के स्वामी हैं। यह दिशा प्रसिद्धि, भाग्य और ख्याति का प्रतीक है। | |||
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|पाठ 1=एक छड़ी लें। उसे सीधा जमीन में गाड़ दें। जहाँ उसकी छाया की नोंक पड़े, वहाँ पर निशान लगा दें। 15 मिनट बाद छाया की नोंक पर दोबारा निशान लगा लें। दोनों निशानों के बीच में रेखा खींच कर उन्हें जोड़ दे। यह रेखा पूर्व से पश्चिम की ओर दिशा ज्ञान कराती है और पहला निशान पश्चिम की ओर और दूसरा निशान पूर्व की ओर होगा। | |||
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|पाठ 3=पश्चिम दिशा [[सौर ऊर्जा]] की विपरित दिशा है अतः इसे अधिक से अधिक बन्द रखना चाहिए। भोजन कक्ष, दुछत्ती, शौचालय आदि इसी दिशा में होने चाहिए। | |||
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|संबंधित लेख= | |||
|अन्य जानकारी=प्राचीनकाल में दिशा निर्धारण प्रातःकाल व मध्याह्न के पश्चात एक बिन्दु पर एक छड़ी लगाकर सूर्य रश्मियों द्वारा पड़ रही छड़ी की परछाई तथा [[उत्तरायण]] व [[दक्षिणायन]] काल की गणना के आधार पर किया जाता था। | |||
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'''पश्चिम''' ([[अंग्रेज़ी]]:''West'') एक [[दिशा]] है। [[वरुण देवता|वरुण]] पश्चिम दिशा के देवता है और ज्योतिष के अनुसार [[शनिदेव]] पश्चिम दिशा के स्वामी हैं। यह दिशा प्रसिद्धि, भाग्य और ख्याति का प्रतीक है। | '''पश्चिम''' ([[अंग्रेज़ी]]:''West'') एक [[दिशा]] है। [[वरुण देवता|वरुण]] पश्चिम दिशा के देवता है और ज्योतिष के अनुसार [[शनिदेव]] पश्चिम दिशा के स्वामी हैं। यह दिशा प्रसिद्धि, भाग्य और ख्याति का प्रतीक है। | ||
==महत्व== | ==वास्तु महत्व== | ||
पश्चिम दिशा [[सौर ऊर्जा]] की विपरित दिशा है अतः इसे अधिक से अधिक बन्द रखना चाहिए। ओवर हेड टेंक इसी दिशा में बनाना चाहिए। भोजन कक्ष, दुछत्ती, | पश्चिम दिशा [[सौर ऊर्जा]] की विपरित दिशा है अतः इसे अधिक से अधिक बन्द रखना चाहिए। ओवर हेड टेंक इसी दिशा में बनाना चाहिए। भोजन कक्ष, दुछत्ती, शौचालय आदि इसी दिशा में होने चाहिए। इस दिशा में भवन और भूमि तुलनात्मक रूप से ऊंची होनी चाहिए। | ||
==दिशाओं के नाम== | ==दिशाओं के नाम== |
Revision as of 14:02, 20 January 2018
पश्चिम
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विवरण | पश्चिम एक दिशा है। ज्योतिष के अनुसार शनिदेव पश्चिम दिशा के स्वामी हैं। यह दिशा प्रसिद्धि, भाग्य और ख्याति का प्रतीक है। |
दिशा ज्ञात करने का तरीक़ा | एक छड़ी लें। उसे सीधा जमीन में गाड़ दें। जहाँ उसकी छाया की नोंक पड़े, वहाँ पर निशान लगा दें। 15 मिनट बाद छाया की नोंक पर दोबारा निशान लगा लें। दोनों निशानों के बीच में रेखा खींच कर उन्हें जोड़ दे। यह रेखा पूर्व से पश्चिम की ओर दिशा ज्ञान कराती है और पहला निशान पश्चिम की ओर और दूसरा निशान पूर्व की ओर होगा। |
देवता | वरुण |
वास्तु महत्व | पश्चिम दिशा सौर ऊर्जा की विपरित दिशा है अतः इसे अधिक से अधिक बन्द रखना चाहिए। भोजन कक्ष, दुछत्ती, शौचालय आदि इसी दिशा में होने चाहिए। |
अन्य जानकारी | प्राचीनकाल में दिशा निर्धारण प्रातःकाल व मध्याह्न के पश्चात एक बिन्दु पर एक छड़ी लगाकर सूर्य रश्मियों द्वारा पड़ रही छड़ी की परछाई तथा उत्तरायण व दक्षिणायन काल की गणना के आधार पर किया जाता था। |
पश्चिम (अंग्रेज़ी:West) एक दिशा है। वरुण पश्चिम दिशा के देवता है और ज्योतिष के अनुसार शनिदेव पश्चिम दिशा के स्वामी हैं। यह दिशा प्रसिद्धि, भाग्य और ख्याति का प्रतीक है।
वास्तु महत्व
पश्चिम दिशा सौर ऊर्जा की विपरित दिशा है अतः इसे अधिक से अधिक बन्द रखना चाहिए। ओवर हेड टेंक इसी दिशा में बनाना चाहिए। भोजन कक्ष, दुछत्ती, शौचालय आदि इसी दिशा में होने चाहिए। इस दिशा में भवन और भूमि तुलनात्मक रूप से ऊंची होनी चाहिए।
दिशाओं के नाम
अंग्रेज़ी | संस्कृत (हिन्दी) |
---|---|
East | पूरब, प्राची, प्राक् |
West | पश्चिम, प्रतीचि, अपरा |
North | उत्तर, उदीचि |
South | दक्षिण, अवाचि |
North-East | ईशान्य |
South-East | आग्नेय |
North-West | वायव्य |
South-West | नैऋत्य |
Zenith | ऊर्ध्व |
Nadir | अधो |
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