माधवराव सिंधिया: Difference between revisions

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==सिंधिया प्रधानमंत्री होते==
==सिंधिया प्रधानमंत्री होते==
माधवराव सिंधिया ने लगातार नौ बार लोकसभा चुनाव जीतकर कीर्तिमान कायम किया। वे लोकसभा में माधवराव सिंधिया कांग्रेस संसदीय दल के उपनेता बनाए गए थे। इस समय श्री सिंधिया कांग्रेस की सर्वेसर्वा श्रीमती सोनिया गाँधी के सबसे विश्वसनीय सहयोगी बन चुके थे तभी 30 सितंबर 2001 को एक विमान दुर्घटना में उनका निधन हो गया।माधवराव सिंधिया जीते रहते तो आज प्रधानमंत्री होते। संघवी ने एक जगह यह भी लिखा है कि यदि वे जनसंघ (भाजपा) में रहते तब भी शायद प्रधानमंत्री बनते।  
माधवराव सिंधिया ने लगातार नौ बार लोकसभा चुनाव जीतकर कीर्तिमान कायम किया। वे लोकसभा में माधवराव सिंधिया कांग्रेस संसदीय दल के उपनेता बनाए गए थे। इस समय श्री सिंधिया कांग्रेस की सर्वेसर्वा श्रीमती [[सोनिया गाँधी]] के सबसे विश्वसनीय सहयोगी बन चुके थे तभी 30 सितंबर 2001 को एक विमान दुर्घटना में उनका निधन हो गया। माधवराव सिंधिया जीवित रहते तो आज प्रधानमंत्री होते। संघवी ने 'माधवराव सिंधिया ए लाइफ' में एक जगह यह भी लिखा है कि यदि वे जनसंघ (भाजपा) में रहते तब भी शायद प्रधानमंत्री बनते।
 
==माधवराव सिंधिया ए लाइफ==
==माधवराव सिंधिया ए लाइफ==
माधवराव सिंधिया के जीवन पर आधारित है। ये किताब पत्रकार वीर संघवी व नमिता भंडारे ने लिखी है। कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी को अपने राजनीतिक जीवन की शुरुआत में सबसे ज्यादा मदद पूर्व केंद्रीय मंत्री दिवंगत माधवराव सिंधिया से मिली थी। सिंधिया के जीवन पर आधारित किताब 'माधवराव सिंधिया : ए लाइफ'  के विमोचन के मौके पर सोनिया गांधी ने उन दिनों की यादों को ताजा किया। सोनिया ने कहा कि उन्हें हमेशा इस बात का मलाल रहेगा कि 13 मई, 2004 को जब केंद्र में संप्रग की सरकार बनी तो माधवराव उस संतुष्टि में शरीक होने के लिए वहां नहीं थे। सोनिया ने दिवंगत कांग्रेसी नेता माधवराव की सहृदयता और जोश को याद करते हुए कहा कि एक सहकर्मी के तौर पर वे बिल्कुल स्पष्ट बात करते थे, सही सलाह देते थे। उनके बारे में कभी ये नहीं सोचना पड़ता था कि उनकी बातों का कोई 'गुप्त अर्थ' तो नहीं।  
माधवराव सिंधिया के जीवन पर आधारित है। ये किताब पत्रकार वीर संघवी व नमिता भंडारे ने लिखी है। कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी को अपने राजनीतिक जीवन की शुरुआत में सबसे ज्यादा मदद पूर्व केंद्रीय मंत्री दिवंगत माधवराव सिंधिया से मिली थी। सिंधिया के जीवन पर आधारित किताब 'माधवराव सिंधिया : ए लाइफ'  के विमोचन के मौके पर सोनिया गांधी ने उन दिनों की यादों को ताजा किया। सोनिया ने कहा कि उन्हें हमेशा इस बात का मलाल रहेगा कि 13 मई, 2004 को जब केंद्र में संप्रग की सरकार बनी तो माधवराव उस संतुष्टि में शरीक होने के लिए वहां नहीं थे। सोनिया ने दिवंगत कांग्रेसी नेता माधवराव की सहृदयता और जोश को याद करते हुए कहा कि एक सहकर्मी के तौर पर वे बिल्कुल स्पष्ट बात करते थे, सही सलाह देते थे। उनके बारे में कभी ये नहीं सोचना पड़ता था कि उनकी बातों का कोई 'गुप्त अर्थ' तो नहीं।  

Revision as of 07:49, 25 September 2010

माधवराव सिंधिया कांग्रेस के नेता थे। (जन्म- 10 मार्च, 1945 ई. ग्वालियर, मध्य प्रदेश, मृत्यु- 30 सितंबर, 2001 मैनपुरी, उत्तर प्रदेश)। माधवराव सिंधिया का कार्यकाल 1961 से 2001 तक रहा।

जीवन परिचय

माधवराव सिंधिया का जन्म ग्वालियर के सिंधिया परिवार में हुआ था। माधवराव सिंधिया के पिता ग्वालियर के महाराजा जीवाजी राव सिंधिया थे। माधवराव सिंधिया की माता राजमाता विजया राजे सिंधिया थी, जो सत्तर के दशक में जनसंघ की बड़ी नेता रही थी। माधवराव सिंधिया का नाम मध्यप्रदेश के चुनिंदा राष्ट्रीय राजनीतिज्ञों में काफ़ी ऊपर है। सिंधिया खांटी राजनीति के लिए ही नहीं बल्कि कई अन्य रुचियों के लिए भी विख्यात रहे हैं। क्रिकेट, गोल्फ, घुड़सवारी और हर चीज़ के शौक़ीन होते हुए भी उन्होंने सामान्य व्यक्ति जैसा जीवन व्यतीत किया था।

प्रशासकीय काबलियत

सिंधिया अपनी ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी से पढ़ाई पूरी करके वापस आने के बाद ज्यादातर समय मुंबई में ही व्यतीत करते थे। राजमाता विजया राजे सिंधिया उन्हें जनसंघ में लाना चाहती थीं। हिंदूवादी नेता सरदार आंग्रे का राजमाता पर गज़ब का प्रभाव था। उन्हीं के चलते माधवराव भी जनसंघ में गए। 39 वर्ष की आयु में माधवराव को राजीव गांधी ने रेल मंत्री बनाया तब देश को उनकी प्रशासकीय क़ाबलियत पता चली।

राजनीति सफ़र

रियासतों का वज़ूद देश में भले ही खत्म हो गया हो, राजा आम लोगों के निशाने पर रहे हों लेकिन मध्य प्रदेश की ग्वालियर रियासत एक ऐसी रियासत है जिसके लोग आज भी सिंधिया राज परिवार के साथ खड़े दिखाई देते हैं। चुनाव चाहे लोकसभा का हो या विधानसभा का हो। यदि प्रत्याशी सिंधिया परिवार का है तो उसकी जीत लगभग तय रहती है। हालांकि चुनावी मुक़ाबले कड़े होते हैं, पर पार्टी लाइन से हटकर लोग सिंधिया परिवार को ही समर्थन देते हैं।

सिंधिया राज परिवार का समर्थन जिस प्रत्याशी को रहा है वह चाहे जिस भी दल में हो उसे लोगों ने जिताया है। 1952 से यही परंपरा चली आ रही है। हालांकि सिंधिया परिवार ने अपनी राजनैतिक पारी जनसंघ के साथ शुरू की थी। लेकिन बाद में विजया राजे बीजेपी के साथ रह गईं और उनके पुत्र माधवराव सिंधिया कांग्रेस से जुड़ गए।

माधवराव सिंधिया के कांग्रेस में जाने के बाद ग्वालियर उस समय चर्चा में आया था जब 1984 के आम चुनाव में उन्होंने बीजेपी के दिग्गज नेता अटल बिहारी वाजपेयी को हराया था। वह चुनाव चर्चा का विषय इसलिए बना था कि जनसंघ और बीजेपी का गढ़ माने जाने वाला ग्वालियर सिंधिया के गढ़ के रूप में सामने आया था। माधवराव सिंधिया ने 1984 के बाद 1998 तक सभी चुनाव ग्वालियर से ही लड़े और जीत भी हासिल की। 1996 में तो कांग्रेस से अलग होकर भी वह भारी बहुमत से जीते थे। जबकि राजमाता गुना से लगातार बीजेपी प्रत्याशी के तौर पर जीतती रही थीं। राजमाता की मौत के बाद माधवराव ने ग्वालियर छोड़कर गुना से चुनाव लड़ा था। सिंधिया परिवार के इस अजेय गढ़ को तोड़ने की कोशिश लगातार होती रही है।

मध्यावधि चुनाव

मध्यावधि चुनाव की सन 1999 में फिर शुरुआत हुई। यह तीन साल की अवधि में दूसरा मध्यावधि चुनाव था। माधवराव सिंधिया एक बार फिर गुना से मैदान में थे। सिंधिया को वहाँ की जनता ने सिर आँखों पर बिठा लिया। विकास कार्यों की बदौलत उनकी छवि विकास के मसीहा की थी, और यह छवि लोगों के सिर चढ़कर बोल रही थी। देशराज सिंह को भाजपा ने उम्मीदवार बनाया, लेकिन वे सिंधिया के समक्ष कमजोर प्रत्याशी साबित हुए थे। चुनाव-प्रचार से लेकर परिणाम तक सिंधिया ने जो बढ़त बनाई, वो उनके करिश्मे को साबित करने वाली थी। वे करीब ढाई लाख वोटों से जीते। शिवपुरी ज़िले की चारों विधानसभा सीटों पर उनकी बढ़त 141000 से ज्यादा रही। गुना ज़िले की चार विधान सभा सीटों पर भी उन्हें अधिक वोट मिले। यह सिंधिया की लगातार नवीं जीत थी।

प्रशिक्षण संस्थान

सांसद श्री ज्योतिरादित्य सिंधिया ने संस्थान के समारोह को सम्बोधित करते हुये कहा कि इस संस्था की स्थापना में जहाँ जीवाजीराव सिंधिया ने सहयोग दिया वहीं माधवराव सिंधिया ने इस संस्था को राष्ट्रीय स्तर के विश्वविद्यालय का दर्ज़ा दिलाया। इस संस्था ने देश में ही नहीं बल्कि अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर भी खेलों के क्षेत्रों में अनेकों प्रतिभाऐं दी हैं। ज्योतिरादित्य सिंधिया ने कहा कि इस संस्था में अधोसंरचना एवं विकास के साथ-साथ परम्परा एवं आधुनिकता के समन्वय की भी आवश्यकता है। उन्होंने कहा कि लक्ष्मीबाई राष्ट्रीय शारीरिक प्रशिक्षण संस्थान ग्वालियर शारीरिक शिक्षा की दिशा में उल्लेखनीय योगदान देने के साथ-साथ अंचल का नाम रोशन करेगा।

सिंधिया प्रधानमंत्री होते

माधवराव सिंधिया ने लगातार नौ बार लोकसभा चुनाव जीतकर कीर्तिमान कायम किया। वे लोकसभा में माधवराव सिंधिया कांग्रेस संसदीय दल के उपनेता बनाए गए थे। इस समय श्री सिंधिया कांग्रेस की सर्वेसर्वा श्रीमती सोनिया गाँधी के सबसे विश्वसनीय सहयोगी बन चुके थे तभी 30 सितंबर 2001 को एक विमान दुर्घटना में उनका निधन हो गया। माधवराव सिंधिया जीवित रहते तो आज प्रधानमंत्री होते। संघवी ने 'माधवराव सिंधिया ए लाइफ' में एक जगह यह भी लिखा है कि यदि वे जनसंघ (भाजपा) में रहते तब भी शायद प्रधानमंत्री बनते।

माधवराव सिंधिया ए लाइफ

माधवराव सिंधिया के जीवन पर आधारित है। ये किताब पत्रकार वीर संघवी व नमिता भंडारे ने लिखी है। कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी को अपने राजनीतिक जीवन की शुरुआत में सबसे ज्यादा मदद पूर्व केंद्रीय मंत्री दिवंगत माधवराव सिंधिया से मिली थी। सिंधिया के जीवन पर आधारित किताब 'माधवराव सिंधिया : ए लाइफ' के विमोचन के मौके पर सोनिया गांधी ने उन दिनों की यादों को ताजा किया। सोनिया ने कहा कि उन्हें हमेशा इस बात का मलाल रहेगा कि 13 मई, 2004 को जब केंद्र में संप्रग की सरकार बनी तो माधवराव उस संतुष्टि में शरीक होने के लिए वहां नहीं थे। सोनिया ने दिवंगत कांग्रेसी नेता माधवराव की सहृदयता और जोश को याद करते हुए कहा कि एक सहकर्मी के तौर पर वे बिल्कुल स्पष्ट बात करते थे, सही सलाह देते थे। उनके बारे में कभी ये नहीं सोचना पड़ता था कि उनकी बातों का कोई 'गुप्त अर्थ' तो नहीं।

सोनिया गांधी ने कहा, 'मैं पहली बार 1999 में लोकसभा पहुंची थी। मुझ पर नेता प्रतिपक्ष की जिम्मेदारी थी। यह मेरे लिए नया और कठिन अनुभव था।' सोनिया ने कहा कि प्रतिपक्ष के उपनेता के तौर पर सिंधिया ने उनकी काफी मदद की और कई जिम्मेदारियां उठाई। सोनिया गांधी ने बताया कि राजनीतिक जीवन शुरू होने से पहले वे सिंधिया को थोड़ा-बहुत ही जानती थीं। सिंधिया उनके पति [राजीव गांधी] के काफी करीबी थे। सोनिया ने कहा कि वे उन्हें एक ऐसे मंत्री के रूप में जानती थीं जिनका विभाग पांच साल में एक बार भी नहीं बदला। माधवराव सिंधिया से उनका परिचय राजनीतिक जीवन शुरू होने के बाद ही हुआ। वो कांग्रेस के लिए मुश्किल वक्त था, लेकिन माधवराव सिंधिया जानते थे पार्टी के समक्ष हारने का विकल्प ही नहीं था।

मृत्यु

माधवराव सिंधिया का निधन सितंबर 2001 में उत्तरप्रदेश के मैनपुरी ज़िले में विमान दुर्घटना में हुआ था। माधवराव सिंधिया की यात्रा भी शायद टल जाती, यदि वे आखिरी वक्त पर अपना गुना का कार्यक्रम नहीं बदलते।

जनसेवा के लिए प्रेरणा स्रोत

माधवराव सिंधिया को जनसेवा के लिए प्रेरणा स्रोत थे। उन्होंने जीवन भर गरीबों की मदद की है। सिंधिया विचारमंच के प्रदेश अध्यक्ष डा. अनिल मिश्रा ने सिंधिया जी के जीवन पर प्रकाश डालते हुआ कहा कि देश के विकास के लिए कई कार्य किए हैं। उन्हें भुलाया नहीं जा सकता है।


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